- वक्ताओं ने कहा, उनकी परिकल्पना को साकार रूप देना होगा
रांची। रांची विश्वविद्यालय के जनजातीय एवं क्षेत्रीय संकाय (टीआरएल) के स्नातकोत्तर मुंडारी विभाग में पद्मश्री डॉ रामदयाल मुंडा की 85वीं जयंती 23 अगस्त को मनाई गई। इस अवसर पर विभाग के प्राध्यापक, शोधकर्ता एवं छात्रों ने डॉ मुंडा की तस्वीर पर माल्यार्पण व पुष्प अर्पित कर उन्हें श्रद्धांजलि दी।
कार्यक्रम की अध्यक्षता करते हुए मुख्य अतिथि पूर्व कुलपति प्रो. (डॉ) सत्यनारायण मुंडा ने कहा कि उनकी सोच व परिकल्पना को साकार रूप देना होगा। आज हमें झारखंड को संभालने की जरूरत है। अपने रिसर्च, अपनी लेखनी के माध्यम से अपने अधिकारों को साकार रूप दीजिए। उन्होंने कहा कि हमें अपनी भाषा में अधिक से अधिक साहित्य रचकर अपनी भाषा व संस्कृति की रक्षा करनी होगी।
पूर्व समंवयक डॉ हरि उरांव ने कहा कि बहुमुखी प्रतिभा के धनी पद्मश्री डॉ रामदयाल मुंडा जैसे महान व्यक्ति का सानिध्य मिलना बहुत बड़ी बात है। डॉ उरांव ने डॉ मुंडा के सानिध्य में एक छात्र के रूप में बिताये पलों को साझा किया। उन्होंने कहा कि डॉ मुंडा ने झारखंड में सामाजिक-सांस्कृतिक और राजनीतिक क्रांति का बिगुल फूंका था।
डॉ नारायण भगत ने कहा कि डॉ मुंडा ने झारखंड का मान सम्मान पूरे विश्व में बढ़ाया। हमें झारखंड के हर एक व्यक्ति को उनकी संघर्ष गाथा बता कर उनके बताये हुए डहर पर निडर होकर चलना होगा। अपनी भाषा, साहित्य व संस्कृति को विश्व पटल पर दर्ज कराना होगा।
विशिष्ट अतिथि पूर्व सहायक निदेशक डॉ सोमा सिंह मुंडा ने दिवंगत डॉ मुंडा के संघर्षों से अवगत कराते हुए कहा कि वे झारखंड के सिपाही थे। कुमारी शशि ने कहा कि डॉ मुंडा में बांसुरी बजाने की एक अद्भुत कला थी। वे समग्र झारखंड के बारे में सोचते थे।
संकाय के मुंडारी विभाग के अध्यक्ष मनय मुंडा, डॉ मेरी एस सोरेंग, डॉ किशोर सुरीन, करम सिंह मुंडा, डॉ दमयंती सिंकु, तारकेश्वर सिंह, अनुराधा मुंडा, दिनेश कुमार आदि ने भी अपनी बातें रखीं।
कार्यक्रम का संचालन प्राध्यापक डॉ बीरेन्द्र कुमार सोय और स्वागत प्राध्यापक डॉ उमेश नन्द तिवारी ने किया। मौके पर संकाय के प्राध्यापक, शोध छात्र, कर्मचारी के अलावा छात्र छात्राएं उपस्थित थे।
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