नशा उन्मूलन पर गुरू गोविंद सिंह पब्लिक स्कूल में डालसा का कार्यक्रम

झारखंड
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  • एनडीपीएस एक्ट में हैं मृत्युदंड का प्रावधान  : राजेश कुमार सिन्हा

रांची। झालसा के निर्देश पर न्यायायुक्त-सह-अध्यक्ष, डालसा के मार्गदर्शन में गुरू गोविन्द सिंह स्कूल में नशा मुक्ति पर एक जागरुकता कार्यक्रम का आयोजन गुरुवार को किया। इस अवसर पर एलएडीसीएस अधिवक्ता राजेश कुमार सिन्हा, लाइफ सेवर्स एनजीओ के चीफ अतुल गेरा, मेम्बर कमलजीत कौर, सीआईडी डीएसपी राजकुमार यादव, एनसीबी के एम. मीना, गुरू गोविन्द सिंह स्कूल के प्रधानाध्यापक, शिक्षक-शिक्षिकाएं, छात्र-छात्राएं, डालसा के पीएलवी पुष्पलता देवी, सुनीता देवी, नीतू देवी उपस्थित थे।

इस अवसर पर अतुल गेरा ने बताया कि कि कैसे साधारण खांसी की सिरप जैसी चीज़ों का नशे के लिए उपयोग किया जाता है। झारखंड राज्य ना केवल नशीली दवाओं का उपभोग करता है, बल्कि भारी कार्रवाई के बावजूद इनका उत्पादन भी करता है। नशा करने से व्यक्ति और परिवार के शारीरिक और मानसिक स्वास्थ्य पर नकारात्मक प्रभाव पड़ता है। कुछ लोगों के लिए नशे की यात्रा 16 वर्ष या इससे कम उम्र से ही शुरू हो जाती है। रांची में नशे की समस्या पर नियंत्रण हो जाने पर अपराध दर में लगभग 70 प्रतिशत की कमी आ सकती है।

एलएडीसीएस अधिवक्ता राजेश कुमार सिन्हा ने भारतीय संविधान का अनुच्छेद 47 राज्य को निर्देशित करता है कि वह स्वास्थ्य के लिए हानिकारक मादक पेय और नशीली दवाओं के सेवन को औषधीय उद्देश्यों को छोड़कर, समाप्त करने का प्रयास करेगा। अफीम या पोस्ता के उत्पादन या कब्ज़े पर एनडीपीएस अधिनियम 1985 के तहत मात्रा के आधार पर 20 साल तक के कठोर कारावास की सजा हो सकती है। बार-बार अपराध करने पर मृत्युदंड तक दिया जा सकता है। कांके के पुनर्वास केंद्रों के साथ-साथ एनजीओ भी नशा करने वालों को ठीक करने में मदद करते हैं। उन्होंने आगे कहा कि सीआईपी और रिनपास में जिला विधिक सेवा प्राधिकार का लिगल एड क्लिनिक है, वहां पर वैसे नशा करनेवाले व्यक्तियों को ईलाज किया जाता है। इसमें जिला विधिक सेवा प्राधिकार, रांची सहायता प्रदान करती है। नशा से संबंधित पदार्थों के बारे में विस्तार से बताया।

राजकुमार यादव ने कहा कि झारखंड में इस नशे की समस्या को रोकने के लिए नारकोटिक्स कंट्रोल ब्यूरो (एनसीबी) की भूमिका महत्वपूर्ण है। यह क़ानूनों के कार्यान्वयन और हितधारकों के बीच समन्वय के लिए ज़िम्मेदार है। नशे की दवाओं का उत्पादन और वितरण इस समस्या की जड़ तक पहुंचता है। अधिकांश तस्करी के गिरोह संसाधनों की कमी के कारण पकड़े नहीं जाते। गृह मंत्रालय ने पिछले महीने मादक द्रव्यों के सेवन से संबंधित किसी भी संदेह की जानकारी देने के लिए आम जनता के लिए मानस हेल्पलाइन (टोल फ्री नंबर 1933) स्थापित की है।

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