फसलों की क्षमता और वास्तविक उपज की खाई पाटने के लिए नवीनतम तकनीकों का करें इस्तेमाल : डॉ टीआर शर्मा

कृषि झारखंड
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  • बीएयू में खरीफ अनुसंधान परिषद की दो दिवसीय बैठक का समापन

रांची। भारतीय कृषि अनुसंधान परिषद् के उप महानिदेशक डॉ टीआर शर्मा ने विभिन्न फसलों की क्षमता और वास्तविक उपज के बीच की खाई को पाटने के लिए नवीनतम तकनीकों के इस्तेमाल पर जोर दिया है। कृषि अनुसंधान में जैव प्रौद्योगिकी, जीनोम एडिटिंग, मार्कर असिस्टेड ब्रीडिंग, कृत्रिम बुद्धिमत्ता, इन्टरनेट ऑफ़ थिंग्स, ड्रोन आदि का उपयोग करें। वे 29 जुलाई को बिरसा कृषि विश्वविद्यालय में खरीफ अनुसंधान की बैठक को संबोधित कर रहे थे।

डॉ शर्मा ने कहा कि विभिन्न फसल किस्मों की क्षमता और वास्तविक उपज के बीच 30-40 प्रतिशत का गैप है। कीड़ों, रोगों के कारण एवं उचित पैकेज प्रणाली के अभाव में कटाई के बाद के चरण में उत्पादों की समुचित हैंडलिंग नहीं होने से 25-30 प्रतिशत उत्पादन बर्बाद हो जाता हैI सभी शोध प्रयासों का मूल उद्देश्य उत्पादन में वृद्धि द्वारा किसानों को अधिक संपन्न बनाना है। इसलिए सभी प्रौद्योगिकी को किसानों की जरूरतों के अनुरूप पैकेज प्रणाली के रूप में उपलब्ध करना चाहिए।

डॉ शर्मा ने कुलपति से अनुरोध किया कि अखिल भारतीय समन्वित अनुसंधान परियोजना के रिक्त पदों पर शीघ्र नियुक्तियां की जायें, क्योंकि जिन परियोजनाओं में लंबे समय से रिक्तियां पडी हैं, उन्हें आइसीएआर द्वारा समाप्त की जा सकती हैं। उन्होंने कहा कि झारखंड में आइसीएआर के आधा दर्जन शोध केंद्र कार्यरत हैंI बीएयू को उनकी सहभागिता से परियोजना प्रस्ताव तैयार कर फंडिंग एजेंसियों को समर्पित करना चाहिए, क्योंकि बिना समुचित निधि और आरए, एसआरएफ जैसे परियोजना स्टाफ के गुणवत्तायुक्त अनुसंधान संभव नहीं हो पाता।

कुलपति डॉ एससी दुबे ने स्वागत भाषण करते हुए डीडीजी डॉ टीआर शर्मा के वैज्ञानिक अवदानों को रेखांकित किया। उन्होंने कहा कि अनुसंधान के लिए उपलब्ध राशि को समुचित प्रक्रिया अपनाते हुए यथासमय उपयोग करना होगा। वैज्ञानिकों को करियर में बढ़ने के लिए प्रतिकूलताओं के बावजूद सतत काम करते रहना चाहिए।

भारतीय जैवप्रौद्योगिकी संस्थान, रांची के निदेशक डॉ सुजय रक्षित ने राज्य में सुखाड़ जैसी परिस्थितियों से निबटने के लिए जल एवं अम्लीय मिटटी के समुचित प्रबंधन और वैकल्पिक फसल रणनीति पर जोर दिया। केंद्रीय तसर अनुसंधान एवं प्रशिक्षण संस्थान के निदेशक डॉ एनबी चौधरी ने कृषि उत्पादन लागत घटाने, फसल विविधीकरण, मूल्य संवर्धन तथा किसानों को उद्यमी बनाने की वकालत की।

बीएयू के अनुसंधान निदेशक डॉ पीके सिंह ने खरीफ शोध उपलब्धियों का ब्यौरा और कृत कार्य प्रतिवेदन प्रस्तुत किया। संचालन शशि सिंह और धन्यवाद डॉ सीएस महतो ने किया।

डीडीजी डॉ शर्मा ने डॉ मणिगोपा चक्रवर्ती एवं सहयोगी वैज्ञानिकों द्वारा लिखित पुस्तक ‘मक्का सम्बन्धी जनजातीय उप योजना के माध्यम से झारखंड के किसानों का सामाजिक-आर्थिक विकास’ शीर्षक पुस्तक का लोकार्पण किया।

घाटशिला, पूर्वी सिंहभूम के किसान अनिल कुमार महतो को नवोन्मेषी कृषि के लिए सम्मानित किया गया। विचार विमर्श में भारतीय कृषि अनुसंधान संस्थान, हजारीबाग के ओएसडी डॉ विशाल नाथ, बीएयू के पूर्व कुलपति डॉ जीएस दुबे, कृषि प्रणाली का पहाड़ी एवं पठारी अनुसंधान केंद्र, पलांडू के प्रधान वैज्ञानिक डॉ एके सिंह, डॉ जेडए हैदर, डॉ आरपी सिंह रतन और डॉ ए वदूद ने भी भाग लिया।

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