झारखंड हाईकोर्ट का अहम फैसलाः कहा- प्रमोशन में आरक्षण देना गलत

झारखंड
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राज्य सरकार का 2003 में जारी संकल्प अब नहीं रहेगा प्रभावी, बनानी होगी नियमावली

रांची। मंगलवार को बड़ी खबर आई है, झारखंड हाई कोर्ट ने प्रमोशन में एससी-एसटी को आरक्षण दिए जाने से संबंधित मामले में महत्वपूर्ण आदेश दिया है। हाई कोर्ट के कार्यवाहक मुख्य न्यायाधीश एस चंद्रशेखर व जस्टिस नवनीत कुमार की खंडपीठ ने 21 साल बाद अपने आदेश में कहा है कि, राज्य सरकार का 31 मार्च 2003 को जारी संकल्प अब से प्रभावी नहीं रहेगा। जब तक कि सरकार सुप्रीम कोर्ट के एम नागराज व जनरैल सिंह के मामले में जारी गाइडलाइन के तहत नियमावली नहीं बना लेती है।

एम नागराज और जनरैल सिंह के मामले में सुप्रीम कोर्ट ने संविधान के 85वें संशोधन को सही माना था, लेकिन कहा था कि सभी राज्य सरकारों को इसको लेकर एक कानून बनाना होगा। सुप्रीम कोर्ट ने स्पष्ट किया था कि अगर किसी कैडर के प्रोन्नति पद पर एससी-एसटी का उपयुक्त भागीदारी है, तो फिर उन्हें प्रोन्नति में आरक्षण दे सकते हैं।

छह मार्च को सुनवाई पूरी होने के बाद अदालत ने अपना फैसला सुरक्षित रख लिया था। यह मामला वर्ष 2003 से चल रहा था। सरकार ने 31 मार्च 2003 को एक संकल्प जारी कर प्रोन्नति में एससी-एसटी को आरक्षण देने का निर्णय लिया था। इसके बाद रघुवंश प्रसाद सिंह सहित कई अन्य याचिकाएं दाखिल की गई थीं।

प्रार्थियों की ओर से अधिवक्ता मनोज टंडन ने अदालत को बताया कि वर्ष 2003 में सरकार की ओर से सिर्फ संकल्प लाकर ही प्रोन्नति पद पर एससी-एसटी को आरक्षण देना गलत है।

इस मामले में सुप्रीम कोर्ट ने वर्ष 2006 में एम नागराज और जनरैल सिंह के मामले में अपना फैसला सुनाया था, लेकिन सरकार की ओर से इसको लेकर कानून नहीं बनाया गया है। यह सुप्रीम कोर्ट की गाइडलाइन का उल्लंघन है। इसलिए प्रोन्नति में एससी-एसटी को आरक्षण प्रदान करना गलत है।

इसके बाद अदालत ने प्रार्थियों की दलील को सही मानते हुए सरकार के वर्ष 2003 में जारी संकल्प को निष्प्रभावी घोषित किया है। अदालत ने कहा है कि अब से सरकार तब तक प्रोन्नति में एससी-एसटी को आरक्षण नहीं दे सकती है। जब तक की सुप्रीम कोर्ट के आदेश के आलोक में नियमावली नहीं बना ली जाए।