पूर्ववर्ती विद्यार्थियों की टीआरएल की मधुर स्मृति हुई ताजी, सम्मेलन में झूमे, देखें वीडियो

झारखंड
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  • रांची विवि के कुलपति ने कहा : बनेगा संग्रहालय, प्राचीन कला, संस्कृति और भाषा को किया जाएगा संरक्षित

कनक पाठक/सोनू सपरवार

रांची। जनजातीय एवं क्षेत्रीय भाषा संकाय (टीआरएल) के पूर्ववर्ती विद्यार्थियों की कैंपस की पुरानी यादें रविवार को ताजी हो गई। अवसर था संकाय में आयोजित कार्यक्रम ‘मधु स्मृति’ का। कार्यक्रम के मुख्य अतिथि रांची विवि के कुलपति डॉ अजीत कुमार सिन्हा, डॉ श्यामा प्रसाद मुखर्जी विवि के कुलपति डॉ तपन कुमार शांडिल्य और झारखंड ओपन यूनविर्सिटी के कुलपति डॉ त्रिवेणी नाथ साहू थे। वर्ष 1980 में विभाग शुरू होने के बाद पहली बार पूर्ववर्ती छात्र-छात्राओं मिलन समारोह का आयोजन किया गया। नागाड़े की गूंज और मांदर की थाप के साथ आदिवासी लोक गीत एवं संगीत से अतिथियों का स्वागत किया गया। छात्र-छात्राओं ने एक से बढ़कर एक कार्यक्रम प्रस्तुत किए।

संग्रहालय बनाने पर भी विचार

रांची विवि के कुलपति डॉ अजीत कुमार सिन्हा ने कहा कि इस विभाग के पूर्ववर्ती छात्र-छात्राओं का अहम योगदान है, जिन्होंने विपरीत परिस्थितियों में भी अध्ययन जारी रखा। विभाग को मुकाम हासिल करने में सहयोग प्रदान किया। उन्होंने कहा कि झारखंड की बहुत सी प्रचानी भाषाएं अब विलुप्त होने के कगार पर है। पूर्ववर्ती विद्यार्थियों का यह कर्तव्य है कि वे प्राचीन कला, संस्कृति और भाषा अक्षुण्ण कैसे रखें, इस पर सहयोग करें। कुलपति ने कहा कि विवि प्रशासन जनजातीय एवं क्षेत्रीय भाषा संकाय में एक संग्रहालय बनाने पर भी विचार कर रहा है, जिससे यहां की कला, संस्कृति, सभ्यता और भाषा को संरक्षित करने में सहयोग मिलेगा।

विद्वानों का अभूतपूर्व योगदान

डॉ श्यामा प्रसाद विवि के कुलपति डॉ तपन कुमार शांडिल्य ने कहा कि भाषा और संस्कृति को संरक्षित करने में यहां के विद्वानों का अभूतपूर्व योगदान है। झारखंड आंदोलन के बौद्धिक जागरण में भी इस विभाग के शिक्षक, विद्यार्थियों के योगदान के हमेशा याद किया जाएगा।

झारखंड की संस्कृति का प्रतिबिंब

झारखंड ओपन यूनिवर्सिटी के कुलपति डॉ त्रिवेणी नाथ साहू ने कहा कि जनजातीय एवं क्षेत्रीय भाषा विभाग झारखंड की संस्कृति का प्रतिबिंब है। यहां पढ़ाई जाने वाली नौ भाषाएं यहां के नवरत्न है। भाषायी विविधता के बावजूद हम एक हैं।

विभाग की पहचान स्थापित करा रहे

जनजातीय एवं क्षेत्रीय भाषा संकाय के समन्वयक सह आयोजन के अध्यक्ष डॉ हरि उरांव ने कहा कि जनजातीय एवं क्षेत्रीय भाषा संकाय से पढ़कर दूर-दूर तक विद्यार्थी अपनी और विभाग की पहचान स्थापित करा रहे हैं। राजनीति, प्रशासन, समाजसेवा और शिक्षक सहित अन्य क्षेत्रों में यहां के विद्यार्थी परचम लहरा रहे हैं। भविष्य में समाजहित के लिए भी यह संगठन मधुस्मृति कार्य करेगा।

गौरव स्‍थापित करने की जरूरत

रांची विवि के प्रथम बैच के विद्यार्थी और रामलखन सिंह यादव कॉलेज के जनजातीय एवं क्षेत्रीय भाषा विभाग के पूर्व विभागाध्यक्ष डॉ खालिक अहमद ने कहा कि अपने हक और हकूक के लिए हमेशा आगे रहना चाहिए। जनजातीय एवं क्षेत्रीय भाषा विभाग ही एक ऐसा स्थान था, जहां के विद्यार्थियों से लोग लोहा नहीं लेना चाहते थे। विभाग के प्रचीन गौरव को पुनः स्थापित करने की जरूरत है।

आईपीएस और विधायक भी पहुंचे

आईपीएस अधिकारी और पूर्ववर्ती छात्र विजय आशीष कुजूर और विधायक डॉ लंबोदर महतो (पूर्ववर्ती छात्र) देर शाम पहुंचे। कार्यक्रम में उपस्थित विद्यार्थियों की हौसला अफजाई की। आगे बढ़ने की प्रेरणा दी।

देर शाम तक चला कार्यक्रम

कार्यक्रम में डॉ उमेश नंद तिवारी, डॉ वृंदावन महतो, पुष्कर महतो सहित अन्य लोगों ने भी विचार रखें। कार्यक्रम देर शाम तक चलते रहा। मांदर की थाप और लोकगीत संगीतों की धुन पर पूर्ववर्ती छात्र-छात्राएं, शिक्षक और विद्यार्थी आनंद लेते रहे।

कार्यक्रम में इनकी रही भागीदारी

अध्यक्ष डॉ हरि उरांव, उपाध्यक्ष डॉ सबिता केशरी, डॉ खालिक अहमद, डॉ गीता कुमारी सिंह, डॉ मनय मुंडा, कुमारी शशि, बंधु भगत, डॉ मेरी एस सोरेंग, तारकेश्वर सिंह मुंडा, महासचिव डॉ किशोर सुरीन, सचिव युवराज कुमार, सह सचिव बबलू कुमार, संदीप कुमार महतो, मानिक कुमार, श्याम सुंदर यादव, सुखराम उरांव, कोषाध्यक्ष डॉ बंदे खलखो, उप कोषाध्यक्ष सरिता कुमारी, कार्यक्रम समन्वयक श्रीकांत गोप, उप कार्यक्रम समन्वयक विजय आनंद, अजय कुमार दास, मीडिया प्रभारी डॉ बीरेंद्र कुमार महतो, डॉ रीझू नायक, आईटी सेल कुमार चाणक्य, सदस्य फूलदेव उरांव, जगदीश उरांव, शिला कुमारी, प्रियंका कुमारी सहित अन्य लोगों का सरोहनीय योगदान रहा।

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