नई दिल्ली। सावन का महीना आज यानी 4 जुलाई, मंगलवार से शुरू होने जा रहा है। इस मास में भगवान शिव की पूजा की जाती है। मान्यता है कि यह महीना भगवान शिव को सबसे प्रिय होता है। इस बार सावन का महीना बेहद खास रहने वाला है।
सावन के महीने को श्रावण के नाम से भी जाना जाता है। यह महीना भगवानशिव के भक्तों के लिए बेहद खास माना जाता है, क्योंकि पूरे भारत में सावन बड़े ही धूमधाम से मनाया जाता है। सावन का महीना इस बार 4 जुलाई से शुरू हो रहा है और इस माह का समापन 31 अगस्त को होगा।
जानें कब है सावन या श्रावण
इस साल सावन का महीना 04 जुलाई से शुरू होगा और इसका समापन 31 अगस्त को होगा। यानी कि सावन 59 दिनों के रहेंगे। जिसमें सावन के 08 सोमवार पड़ेंगे।
19 साल बाद ये शुभ संयोग
इस साल का सावन बेहद खास रहने वाला है। क्योंकि इस बार सावन 59 दिनों के रहेंगे। यह संयोग लगभग 19 साल बाद बनने जा रहा है। हिंदू पंचांग के अनुसार, इस बार अधिकमास के कारण सावन 2 महीने का पड़ रहा है। अधिकमास की शुरुआत 18 जुलाई से होगी और 16 अगस्त इसका समापन होगा।
सावन महीने के हैं सोमवार
हिंदू पंचांग के अनुसार, सावन का महीना 04 जुलाई से शुरू हो रहा है। अधिकमास के कारण सावन में 8 सोमवार रहेंगे।
10 जुलाई– सावन का पहला सोमवार
17 जुलाई– सावन का दूसरा सोमवार
24 जुलाई– सावन का तीसरा सोमवार
31 जुलाई– सावन का चौथा सोमवार
07 अगस्त – सावन का पांचवा सोमवार
14 अगस्त– सावन का छठा सोमवार
21 अगस्त– सावन का सातवां सोमवार
28 अगस्त– सावन का आठवां सोमवार
31 अगस्त– सावन समाप्त
अधिकमास की तिथि
18 जुलाई- सावन का अधिकमास शुरू
16 अगस्त- सावन के अधिकमास समाप्त
सावन मास का महत्व
सावन सोमवार के सभी व्रत भगवान शिव और माता पार्वती को समर्पित हैं। इसलिए, सावन में ये कावड़ यात्रा निकाली जाती है। कावड़ में भगवान शिव के सभी भक्त छोटे-छोटे बर्तनों में पवित्र नदियों से जल लेकर आते हैं। साथ ही केसरिया रंग के कपड़े भी पहनते हैं। और अपनी भक्ति और समर्पण के प्रतीक के रूप में भगवान शिव से जुड़े पवित्र स्थानों तक पैदल चलते हैं।
सावन मास की पूजन विधि
सावन के दिन प्रात: काल स्नान करने के बाद शिव मंदिर जाएं। घर से नंगे पैर जाएं तथा घर से ही लोटे में जल भरकर ले जाएं। मंदिर जाकर शिवलिंग पर जल अर्पित करें, भगवान को साष्टांग करें। वहीं पर खड़े होकर शिव मंत्र का 108 बार जाप करें। सायंकाल भगवान के मंत्रों का फिर जाप करें तथा उनकी आरती करें। पूजा की समाप्ति पर केवल जलीय आहार ग्रहण करें। अगले दिन पहले अन्न वस्त्र का दान करें, तब जाकर व्रत का पारायण करें।