झारखंड, ओडिशा एवं छत्तीसगढ़ में मिलेट फसल पर असीम संभावना : डॉ ओंकार नाथ सिंह

झारखंड कृषि
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  • तेलहनी, दलहनी एवं मिलेट फसल पर प्रशिक्षण – सह- कार्यशाला का आयोजन

रांची। भारत के प्रयासों से मिलेट के पोषक गुणों और आहार में महत्‍व को वैश्विक पहचान मिली है। आज पूरे विश्व में अंतरराष्ट्रीय मिलेट वर्ष–2023 मनाया जा रहा है। मिलेट फसलों के आच्छादन, उत्पादन एवं उत्पादकता के साथ निर्यात को बढ़ावा देने की दिशा में केंद्र और राज्य सरकार काफी सक्रिय है। उक्त बातें तेलहनी, दलहनी एवं मिलेट फसल पर आयोजित प्रशिक्षण–सह-कार्यशाला में बतौर मुख्य अतिथि कुलपति डॉ ओंकार नाथ सिंह ने 27 मार्च को कही।

चार उन्नत किस्में विकसित की

झारखंड में भले ही हमारे थाली में मोटा अनाज (मिलेट) दूर हो गया है, लेकिन प्रदेश में इसकी खेती सदियों से प्रचलित रही है। प्रदेश में मड़ुआ (रागी), ज्वार और बाजरा प्रमुख मिलेट फसलें हैं। सर्वाधिक रागी की खेती की जाती है। बीएयू ने रागी की चार उन्नत किस्में विकसित की है। वैज्ञानिकों द्वारा मिलेट के गुणवत्ता वाली उन्नत बीजों का उत्पादन एवं केवीके वैज्ञानिकों के थोड़े से प्रदेश में मिलेट फसलों के आच्छादन, उत्पादन एवं उत्पादकता में बढ़ोतरी के साथ निर्यात को बढ़ावा दिया जा सकता है।

केवीके की अग्रणी भूमिका

कुलपति ने कहा कि झारखंड, ओडिशा एवं छत्तीसगढ़ की जलवायु एवं भूमि मिलेट फसलों के लिए काफी उपयुक्त है। देश में मिलेट फसल के क्षेत्र में इन तीन राज्यों में काफी संभावना है। जिले के कृषि विकास में केवीके की अग्रणी भूमिका रही है। राज्य की वर्तमान कृषि पारिस्थितिकी में केवीके वैज्ञानिकों द्वारा जिले में अंतिम किसान तक मिलेट, तेलहनी एवं दलहनी फसलों के तकनीकी हस्तान्तरण पर विशेष प्रयासों की जरूरत है। गृहविज्ञान विषय के वैज्ञानिकों को मिलेट के मूल्यवर्धक उत्पादों को निर्मित कर किसानों को जागरूक कि‍या जाना चाहिए।

मुख्यधारा में लाने की पहल हो

निदेशक अनुसंधान डॉ पीके सिंह ने कहा कि अंतरराष्ट्रीय मिलेट वर्ष–2023 में राज्य के सभी कृषि केन्द्र अपने केंद्र में मिलेट फसल आधारित तकनीकी पार्क, बैनर, पोस्टर एवं अन्य माध्यमों से प्रचार-प्रसार करें। किसानों के खेत में बेहतर प्रदर्शन वाली मिलेट फसल प्रजाति को चिन्हित कर स्टेट सीड चैन की मुख्यधारा में लाने की पहल हो। डॉ सिंह ने वैश्विक स्तर पर मिलेट उत्पादों की मांग को देखते हुए बीएयू वैज्ञानिकों को रागी की तरह राज्य के उपयुक्त ज्वार, बाजरा एवं गुन्दली की उन्नत फसल प्रजाति विकसित करने पर जोर दिया।

विशेष फोकस पर बल दिया

निदेशक (बीज एवं प्रक्षेत्र) डॉ एस कर्माकार ने कृषि विज्ञान केन्द्रों के वैज्ञानिकों को स्थानीय कृषि पदाधिकारियों एवं किसानों के समन्वय से आगामी खरीफ एवं रबी मौसम में तेलहनी, दलहनी एवं मिलेट फसलों के प्रजाति का उन्नत बीज की आवश्यकता का आकलन करने पर जोर दिया। उन्होंने स्थानीय किसानों की मांग आधारित बेहतर बीज उत्पादन योजना एवं मार्केटिंग पर रणनीति बनाने और विशेष फोकस पर बल दिया।

गांवों तक ले जाने पर जोर

आईसीएआर प्रोजेक्ट्स को-ऑर्डिनेटर डॉ एमएस मल्लिक ने वर्तमान संदर्भ में मिलेट फसलों का प्रसंस्करण एवं मूल्यवर्धन और मार्केटिंग को जिले के सुदूरवर्ती गांवों तक ले जाने पर जोर दिया। डीन वेटनरी डॉ सुशील प्रसाद ने राज्य के कृषि विकास में तेलहनी, दलहनी एवं मिलेट फसलों को प्राथमिकता एवं वैज्ञानिक सोच आधारित बढ़ावा देने पर जोर दिया।

रणनीति एवं प्रसार कार्यों के लिए

स्वागत भाषण में निदेशक प्रसार शिक्षा डॉ जगरनाथ उरांव ने कहा कि विश्वविद्यालय के शोध कार्यों पर मंथन और विकसित तकनीकी आधारित भावी रणनीति एवं प्रसार कार्यों के लिए यह कार्यक्रम आयोजित की गयी है।

कार्यक्रम का संचालन रेडियो हरियाली समन्यवयक शशि सिंह और धन्यवाद चतरा केवीके प्रभारी डॉ रंजय कुमार सिंह ने किया। बीएयू परिसर स्थित किसान भवन में आयोजित इस कार्यक्रम में डॉ रितेश दुबे, डॉ सुशंता दत्ता, डॉ अदिति अलीजा, डॉ राजेश कुमार और डॉ प्राची सिंह सहित सभी 24 जिलों के कृषि विज्ञान केन्द्रों के वरीय वैज्ञानिक सह प्रधान एवं वैज्ञानिक भी मौजूद थे।