- बीएयू में कंद मूल फसलों की वैज्ञानिक खेती पर प्रशिक्षण कार्यक्रम का आयोजन
रांची। झारखंड में कंद मूल फसलों की खेती परंपरागत रूप से सदियों से प्रचलित है. प्रदेशवासियों के आहार एवं संस्कृति में इनका विशिष्ट स्थान है. अन्य फसलों की अपेक्षा कम देख-रेख में ही कंद फसलों की अच्छी उपज एवं आय प्राप्त की जा सकती है. जलवायु परिवर्तन एवं प्राकृतिक आपदा की स्थिति में इसकी उपयोगिता को देखते हुए वैज्ञानिक तकनीक से इसकी खेती को प्रोत्साहित करने का प्रयास किया जा रहा है. उक्त बातें बीएयू के उद्यान विभाग में कंद मूल फसलों की वैज्ञानिक खेती पर आयोजित एकदिवसीय प्रशिक्षण कार्यक्रम के उद्घाटन के अवसर पर विभागाध्यक्ष (उद्यान) डॉ संयत मिश्रा ने कही.
मौके पर आईसीएआर-एआईसीआरपी (कंद मूल फसल) के परियोजना अन्वेंषक डॉ एस सेनगुप्ता ने बताया कि कंद फसलों में रोपण सामग्री की उपलब्धता बहुत बड़ी समस्या है. इसके समाधान के लिए मिनी सेट तकनीक विकसित किया गया है. इसके तहत एक वर्ष छोटे-छोटे रोपण सामग्री को कम दूरी पर लगाकर अगले वर्ष के लिए वांछित भार और आकार के स्वस्थ्य रोपण सामग्री तैयार किये जा सकते है. शकरकंद की पीले-नारंगी रंग की किस्में विकसित की गयी है, जो विटामिन ए भरपूर और बच्चों के कुपोषण को दूर करने और आंख के स्वास्थ्य के लिए उपयोगी है.
डॉ दास गुप्ता ने बताया कि कंद फसल में रोग और कीट काफी कम लगते है. ये जानवरों से भी सामान्यतः सुरक्षित रहते है. इसके उत्पादों के बाजार भाव में ज्यादा उतार-चढाव नहीं होता और विषम परिस्थितियों में भी कंद फसल से अच्छी आय मिलती है. कंद फसल में सेमलकंद से साबूदाना बनाया जाता है. इस फसल का दक्षिण भारत में व्यावसायिक खेती की जाती है. झारखंड की जलवायु सेमलकंद की खेती के लिए उपयुक्त है. इस फसल का राज्य में व्यावसायिक उत्पादन की काफी संभावना है.
प्रशिक्षण दौरान उद्यान विभाग के वैज्ञानिक डॉ अब्दुल माजिद अंसारी, डॉ अरुण कुमार तिवारी, डॉ पवन कुमार झा एवं विद्या रतन सिंह ने कंद मूल फसलों की उपयोगिता, खेत की तैयारी, नर्सरी प्रबंधन, भूमि एवं जलवायु, लगाने की विधि, रोपण सामग्री की तैयारी, खाद एवं उर्वरक प्रबंधन, खर-पतवार प्रबंधन, कीट-रोग प्रबंधन, नवीनतम तकनीकी, पोषण वाटिका, एवं उन्नत किस्में के बारे में जानकारी दी.
कृषि अभियंत्रण विभाग के वैज्ञानिक डॉ प्रमोद राय ने कंद मूल फसलों के तुड़ाई उपरांत प्रबंधन एवं मूल्यवर्धन से सबंधित जानकारी दी. विभाग के भ्रमण के दौरान म्यूजियम में छोटे-बड़े कृषि यंत्र और कम लागत वाले मल्चिंग, शेडनेट, लो टनेल, प्रीट्रेय एवं पाली हाउस तकनीकी की व्यावहारिक जानकारी दी.
कार्यक्रम में चान्हो प्रखंड के चोरेया गांव के 40 अनुसूचित जाति के किसानों ने भाग लिया. इन किसानों को ओल, पेचकी, साखिन, शकरकंद, सेमलकंद, मिश्रीकंद, आडू आदि कंद फसलों की उन्नत कृषि तकनीकों की जानकारी दी गयी. पोषण वाटिका को प्रोत्साहित करने के लिए सभी किसानों को शकरकंद के उजले और नारंगी किस्मों तथा सेमलकंद की रोपण सामग्री एवं सामयिक सब्जी फसलों के बीज वितरित किये गये.
कार्यक्रम का आयोजन बीएयू के निदेशालय अधीन संचालित भारतीय कृषि अनुसंधान परिषद (आईसीएआर)-अखिल भारतीय समन्वित अनुसंधान परियोजना (कंद मूल फसल) की अनुसूचित जाति उपपरियोजना (एससीएसपी) के अंतर्गत केन्द्रीय कंद फसलों अनुसंधान संस्थान (सीटीसीआरआई), तिरुअनंतपुरम (केरल) के सौजन्य से किया गया.