- भाइयों के सुखद जीवन की कामना की
रांची। मिथिलंचल की महिलाओं की अंतर्राष्ट्रीय संस्था ‘सखी बहिनपा’ की रांची इकाई ने अरगोड़ा तालाब के पास ‘सामा चकेवा’ धूमधाम से मनाया। इस अवसर पर बतौर मुख्य अतिथि समाजसेवी श्रीमती कुमुद झा ने कहा कि बहन-भाई के अनुपम प्रेम का प्रतीक थिलंचल का यह त्योहार है।
पौराणिक कथाओं के मुताबिक यह पर्व पहली बार भगवान श्रीकृष्ण की पुत्री सामा ने अपने भाई की जीवन की खुशहाली के लिए मनाया था। तभी से यह भाई-बहन का पर्व मिथिलांचल में धूमधाम से मनाया जाता है। यह पर्व छठ पर्व के खरना वाले दिन से शुरू होकर कार्तिक मास की पूर्णिमा के दिन विदाई विसर्जन के साथ संपन्न होता है।
इस दौरान महिलाएं सामा-चकेवा और चुगला की मूर्ति मिट्टी से तैयार करती हैं। शाम में उन्हें डाला आदि में सजाकर एक जगह एकत्रित होती हैं। पर्व से संबंधित लोक गीत गाती हैं। इसके बाद वह अपने भाइयों के सुखद जीवन की कामना करती हैं। इस क्रम में कार्तिक पूर्णिमा तक हर दिन चलता है। कार्तिक पूर्णिमा के दिन महिलाएं वस्त्र, अन्न, सामान आदि देकर सामा की विदाई करती हैं।
कार्यक्रम की शुरुआत श्रीमती इन्दिरा झा, बबीता, अनीता, सुनीता एवं नमिता द्वारा प्रस्तुत भगवती वंदना ‘जय जय भैरवि असुर भयविन…’ से हुई। उसके बाद रंगारंग सांस्कृतिक कार्यक्रम का दौर प्रारम्भ हुआ। शलिनी के सामा गीत और बबीता झा द्वारा प्रस्तुत ‘सामा खेले चलली, भौजी संग सहेली’ पर लोग झूमने लगे।
अनीता झा और सुनीता झा द्वारा गाये ‘चुगला गीत’ पर लोग हंसते-हंसते लोटपोट हो गये। कार्यक्रमा का आकर्षण अनीता, बबीता, मधु, नमिता, रीना, वीणा, कल्पना आदि द्वारा प्रस्तुत मिथिला का पारंपरिक झिझिया नृत्य रहा। उषा झा एवं नमिता झा ने नाटक प्रस्तुत किया।
कार्यक्रम का संचालन श्रीमती बीना झा और धन्यवाद श्रीमती अनीता झा ने किया। हरमू, विद्यानगर, अरगोड़ा, कांके रोड, अशोक नगर सहित सभी क्षेत्रों से 40 महिलाएं घरों से आकर्षक मूर्तियों से सुसज्जित डाला लेकर आई थीं। इसके पूजन के बाद मूर्तियों का विसर्जन किया गया। प्रसाद स्वरूप चूड़ा दही का वितरण के बाद सभी सखियां भोजन ग्रहण कर विदा हुईं।
वरिष्ठ सद श्रीमती इन्दिरा झा ने सभी सखियों को भाइयों से प्रेम बने रहने का आशीर्वाद दिया। कार्यक्रम को सफल बनाने में श्रीमती अरुंधति झा, अंशु, उषा, सरिता, गौरी, रोजी, विभा आदि का विशेष योगदान रहा।