BAU में राष्‍ट्रीय सम्‍मेलन 22 सितंबर से, बाढ़ एवं जलाशयों में अवसाद रोकने पर होगी चर्चा

झारखंड
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रांची। बिरसा कृषि विश्वविद्यालय (BAU) में 22 से 24 सितंबर तक राष्ट्रीय सम्मेलन का आयोजन किया जा रहा है। इसका विषय ‘बाढ़ एवं जलाशय अवसादन रोकने के लिए लैंडस्केप प्रबंधन’ है। इसमें देश के विभिन्न राज्यों से आईसीएआर, कृषि विश्वविद्यालयों, केन्द्र सरकार, राज्य सरकार और अन्य स्वायत्तशासी संस्थानों के लगभग 200 वैज्ञानिक एवं पदाधिकारी भाग लेंगे।

सम्मेलन का उद्घाटन झारखंड के राज्यपाल रमेश बैस 22 सितंबर को अपराहन एक बजे करेंगे। उद्घाटन सत्र में भारत सरकार के जल संसाधन विभाग के सचिव, आईसीआर के पूर्व उप महानिदेशक (प्राकृतिक संसाधन प्रबंधन) डॉ एके सिक्का, बीएयू के कुलपति डॉ ओंकार नाथ सिंह और आयोजक सोसाइटी के अध्यक्ष भी अपने विचार रखेंगे।

सम्मेलन का आयोजन इंडियन एसोसिएशन ऑफ सॉइल एंड वॉटर कंजर्वेशनिस्ट्स (भारतीय मृदा एवं जल संरक्षणवादी संघ), देहरादून द्वारा भारतीय मृदा एवं जल संरक्षण संस्थान (देहरादून), बिरसा कृषि विश्वविद्यालय (रांची), महात्मा गांधी समेकित कृषि अनुसंधान संस्थान (मोतिहारी) और भारतीय कृषि अनुसंधान संस्थान (हजारीबाग) के सहयोग से किया जा रहा है।

भारतीय मृदा एवं जल संरक्षण संस्थान के प्रधान वैज्ञानिक और सम्मेलन के आयोजन सचिव डॉ गोपाल कुमार और डॉ देवाशीष मंडल ने बताया कि दुनिया में बांग्लादेश के बाद भारत ही बाढ़ से सर्वाधिक प्रभावित देश है। गंगा और ब्रह्मपुत्र बेसिन के उपजाऊ समतल क्षेत्रों में सर्वाधिक बाढ़ आती है। देश की लगभग 4 करोड़ हेक्टेयर भूमि बाढ़ से प्रभावित है, जिसमें से 186 लाख हेक्टेयर क्षेत्र में प्रतिवर्ष बाढ़ आती है। बाढ़ से प्रभावित खड़ी फसल क्षेत्र का वार्षिक औसत 37 लाख हेक्टेयर है।

केंद्रीय जल आयोग के विश्लेषण के अनुसार वर्ष 1952 से 2018 के बीच बाढ़ से फसल, मकान और अन्य संपत्ति का कुल नुकसान 46.9 खरब रुपए का रहा। बाढ़ से देश के जीडीपी को होने वाला औसत वार्षिक नुकसान 0.5 प्रतिशत है। देश के जलाशयों में सेडिमेंट जमा होने से उनकी वार्षिक भंडारण क्षमता लगभग 1% घट जाती है। छोटे बांधों में सिल्ट जमा होने से इकोसिस्टम को भी गंभीर खतरा पैदा होता है, क्योंकि ये बांध घरेलू, कृषि और औद्योगिक उद्देश्य से एक बड़ी आबादी की जरूरतों की पूर्ति करते हैं।

मानसून की बारिश के पैटर्न का प्रोजेक्शन बताता है कि वर्ष 2050 तक वर्षा की मात्रा और गहनता में 10% की वृद्धि होगी। प्रोजेक्शन यह भी बताते हैं कि बारिश में 1% की वृद्धि से वर्षा की मिट्टी कटाव क्षमता 2% बढ़ जाती है। छोटी अवधि में भारी बारिश होने से बाढ़, भूमि कटाव और ड्रेनेज जाम होने जैसी कई समस्याएं पैदा हो जाती हैं।

तीन दिवसीय सम्मेलन में इन चुनौतियों के प्रभावी मुकाबले के लिए रणनीतियां विकसित करने पर विशद चर्चा होगी और अनुशंसाएं केंद्र एवं राज्य सरकारों तथा अन्य संबंधित एजेंसियों को भेजी जाएंगी।