- लैंडस्केप प्रबंधन पर तीन दिवसीय राष्ट्रीय सम्मलेन का समापन
रांची। मौसम में भारी बदलाव हो रहा है। प्राकृतिक आपदाओं से भी ज्यादा नुकसान देखने को मिल रहा। इस बदलाव से बचाव के लिए प्रभावी जल एवं मृदा संरक्षण की दिशा में वैज्ञानिक एवं शोधकर्ताओं को सोचने की जरूरत है। बाढ़, भूमि क्षरण, जलवायु परिवर्तन, प्राकृतिक आपदा एवं अन्य पारंपरिक नुकसान से काफी हानि होती है। इस सम्मलेन में वैज्ञानिक और शोधकर्ताओं की सोच एवं अनुशंसा राज्य व केंद्र के नीति निर्धारण एवं योजना निर्माण में मददगार होगी।
सम्मलेन की अनुशंसाओं का डॉक्यूमेंट राज्य और केंद्र सरकार को भेजने की जरूरत है। सरकार के पास वित्तीय कमी नहीं है, लेकिन अभिनव सोच एवं विचार का आभाव है। इसे पूरा करने का दायित्व वैज्ञानिक एवं शोधकर्ताओं का है। उक्त बातें बतौर मुख्य अतिथि झारखंड सरकार के कृषि सचिव अबू बकर सिद्दिख पी ने कही। वे 24 सितंबर को बीएयू में चल रहे लैंडस्केप प्रबंधन विषयक तीन दिवसीय राष्ट्रीय सम्मलेन के समापन पर बोल रहे थे।
कृषि सचिव ने कहा कि भावी पीढ़ी के सतत विकास की जरूरतों को पूरा करने के लिए अनेकों प्रमुख मुद्दे हैं। आनी वाली पीढ़ी के लिए धरती बचाना सबों की नैतिक जिम्मेदारी है। ब्रह्मांड के संसाधनों के संभावित उपयोग का सबों का समान अधिकार है। वैज्ञानिक एवं शोधकर्ताओं को आगे बढ़कर लोगों को उचित सलाह देने की आवश्यकता है। सतत विकास के लिए सही सोच को प्रभावी तरीके से सभी लोगों और हितकारकों को बताने की जरुरत है।
मौके पर कुलपति डॉ ओएन सिंह ने कहा कि आज समुंद्र तल में बढ़ोतरी हो रही है। नदियों की दिशा बदल रही है। नदियां सूख और विलुप्त होने के कगार पर है। अकस्मात बाढ़ से काफी नुकसान हो रहा है। वैज्ञानिक, शोधकर्ता एवं नीति निर्धारकों को इस विषय पर गंभीर विचार करने और समाधान खोजने की जरूरत है। राज्य में 1400 मिमी वर्षापात होने के बावजूद जल संरक्षण की भारी कमी है। पानी के तेज बहाव से भूमि कटाव एवं भूमि की अम्लीयता में बढ़ोतरी एक गंभीर समस्या है। प्रदेश में अधिक से अधिक जल का संचय और जल उपयोग की क्षमता को बढ़ाकर धान परती भूमि में रबी फसलों का आच्छादन बढ़ाया जा सकता है। यूपी की अमृत सरोवर योजना तरह जल संचय को बढ़ाकर कृषि एवं उद्योग में फायदा ली जा सकती है।
आयोजन सोसाइटी के अध्यक्ष डॉ पीआर ओजश्वी ने प्राकृतिक संपदा के संरक्षण एवं प्रबंधन में नीति निर्धारक, योजनाकार, वैज्ञानिक, शोधकर्ता, हितकारक एवं अन्य सभी लोगों की भागीदारी पर बल दिया।
आयोजन सोसाइटी के निदेशक डॉ एम मधु ने बताया कि देश की 400 प्रमुख नदियों में से 351 नदियां प्रदूषित है। मनुष्य द्वारा प्राकृतिक संसाधनों का दोहन एवं बदलाव किये जाने से वातावरण एवं मौसम को काफी नुकसान हो रहा है। सम्मलेन में इसी संदर्भ में चर्चा हुई, ताकि आमलोगों के लिए खाद्यान एवं पोषण सुरक्षा को प्राथमिकता दी जा सके।
मौके पर बेस्ट पेपर, बेस्ट ओरल पेपर, बेस्ट पोस्टर पेपर एवं बेस्ट प्रदर्शनी आदि के लिए वैज्ञानिकों को कृषि सचिव एवं कुलपति ने सम्मानित किया।
स्वागत करते हुए आयोजन सचिव डॉ देवाशीष मंडल ने पूर्वी क्षेत्र के लिए मृदा एवं जल संरक्षण के महत्व पर प्रकाश डाला। बताया कि सम्मलेन में करीब 400 लोगों ने भाग लिया। इसमें झारखंड में वाटरशेड से जुड़े 137 एवं भूमि संरक्षण निदेशालय के 31, छत्तीसगढ़, उडीसा एवं बिहार के 64, आईसीएआर के 100 और राज्य कृषि विश्वविद्यालयों के 50 पदाधिकारी एवं वैज्ञानिक शामिल थे। कार्यक्रम में विद्यार्थी एवं हजारीबाग के किसान भी शामिल हुए।
सम्मेलन का आयोजन इंडियन एसोसिएशन ऑफ सॉइल एंड वॉटर कंजर्वेशनिस्ट्स (भारतीय मृदा एवं जल संरक्षणवादी संघ), देहरादून द्वारा भारतीय मृदा एवं जल संरक्षण संस्थान (देहरादून), बिरसा कृषि विश्वविद्यालय (रांची), महात्मा गांधी समेकित कृषि अनुसंधान संस्थान (मोतिहारी) और भारतीय कृषि अनुसंधान संस्थान (हजारीबाग) के सहयोग से किया गया।
कार्यक्रम का संचालन एवं धन्यवाद सम्मलेन के आयोजन सचिव डॉ गोपाल कुमार ने किया। तीन दिवसीय सम्मलेन की अनुशंसाओं की जानकारी दी। मौके पर डॉ एसके पाल, डॉ सुशील प्रसाद, डॉ एमएस यादव, डॉ पी डे, डॉ डीके शाही, डॉ पीके सिंह, डॉ बीके अग्रवाल, डॉ एस कर्माकार, प्रो डीके रूसिया, डॉ अरविंद कुमार, डॉ पी महापात्रा, डॉ नीरज कुमार, डॉ एचसी लाल, डॉ अरविन्द सिंह आदि भी मौजूद थे।
सम्मलेन की प्रमुख अनुशंसाएं
भारत में भूमि क्षरण तटस्थता लक्ष्यों को प्राप्त करने के लिए सकारात्मक दृष्टिकोण और संसाधन का सकारात्मक उपयोग होना चाहिए।
प्रलेखन के लिए क्षेत्रीय स्तर की सर्वोत्तम प्रबंधन प्रथाओं का मानचित्रण और भूमि क्षरण तटस्थता मापदंडों पर विचार करना।
क्षेत्र विशिष्ट जलीय उत्पादन प्रणाली के आकलन के आधार पर बाढ़ प्रवण क्षेत्र के लिए स्थान विशिष्ट एकीकृत कृषि प्रणाली मॉडल के लिए अनुकूली प्रौद्योगिकी विकसित करने की आवश्यकता।
स्प्रिंग कायाकल्प के लिए लैंड स्केप स्केल पर स्प्रिंग जियोटैगिंग, स्प्रिंगशेड डिलाइनेशन और माइक्रो वाटरशेड प्लान की आवश्यकता।
प्राकृतिक संसाधन साक्षरता के लिए प्रशिक्षण और क्षमता निर्माण की पहल।
बाढ़ के कटाव के साथ-साथ बाढ़ प्रवण क्षेत्र में संसाधन के लिए गाद प्रतिधारण और प्रबंधन को संबोधित करने की आवश्यकता।
प्रौद्योगिकीविद् और किसानों के बीच आपसी सम्मान और संबंध/बंधन को फिर से स्थापित करने की आवश्यकता।
किसान के पारंपरिक ज्ञान और ज्ञान का सम्मान करके इसे बहाल करने के लिए प्रौद्योगिकीविद् द्वारा पहल की आवश्यकता और मजबूत लिंकेज और बॉन्डिंग को मजबूत करने की जरूरत।
उद्योग द्वारा नई सामग्री के विकास पर विचार करते हुए, उच्च ढलान वाली भूमि पर भू-टेक्सटाइल आधारित संसाधनों के उपयोग पर अधिक अध्ययन की आवश्यकता।
प्रकृति आधारित समाधान के बाद भूमि की सिफारिश को लोकप्रिय बनाया जाना चाहिए और जन आंदोलन अभियान शुरू करने की आवश्यकता।