जमशेदपुर। सर दोराबजी टाटा का कहना था, ‘भाग्य ने मुझे देश की सेवा की उनकी (जमशेतजी की) अमूल्य विरासत को पूरा करने में मदद करने के लिए प्रोत्साहित किया।‘
सर दोराबजी टाटा जमशेदजी नसरवानजी टाटा और हीराबाई टाटा के बड़े बेटे थे। उनका जन्म 27 अगस्त, 1859 को बॉम्बे (अब मुंबई) में हुआ था।
सर दोराबजी टाटा ने अपनी प्राथमिक शिक्षा बॉम्बे के प्रोपराइटरी हाई स्कूल से पूरी की। 16 साल की उम्र में उन्हें केंट (इंग्लैंड) में एक निजी ट्यूटर के पास भेजा गया था। उन्होंने गोनविले और कैयस कॉलेज, कैम्ब्रिज विश्वविद्यालय, इंग्लैंड में पढ़ाई की। 1879 में वे भारत लौट आए। सेंट जेवियर्स कॉलेज, बॉम्बे से स्नातक की पढ़ाई पूरी की।
अपनी शिक्षा पूरी करने के बाद उन्होंने बॉम्बे गजट में एक पत्रकार के रूप में दो साल तक काम किया। बाद में वह अपने पिता की फर्म, एम्प्रेस मिल्स में शामिल हो गए, जो कपास विभाग का हिस्सा थी।
पिता के सपनों को हकीकत का रूप दिया
जमशेदजी ने पहले स्टील प्लांट का निर्माण कर भारत को औद्योगिक राष्ट्र के रूप में विकसित करने का सपना देखा। दुर्भाग्य से, 1904 में उनका निधन हो गया। सर दोराबजी ने 26 अगस्त, 1907 को टाटा आयरन एंड स्टील कंपनी (टिस्को, अब टाटा स्टील) की स्थापना करके अपने पिता के सपनों को हकीकत का रूप दिया। टाटा स्टील 34 मिलियन टन प्रति वर्ष की वार्षिक क्रूड स्टील क्षमता के साथ एक वैश्विक कंपनी बन गयी है।
सर दोराबजी टाटा ने 1909 में इंडियन इंस्टीट्यूट ऑफ साइंस और 1910 में टाटा हाइड्रो इलेक्ट्रिक पावर सप्लाई कंपनी लिमिटेड (अब टाटा पावर कंपनी लिमिटेड) की स्थापना में भी अग्रणी भूमिका निभाई। ये संस्थान दशकों से फल-फूल रहे हैं।
आधुनिक नियोजित शहरों के निर्माण में भूमिका
भारत के पहले आधुनिक नियोजित शहरों में से एक के निर्माण में भूमिका निभायी
जमशेदजी नसरवानजी टाटा ने अपने बेटे सर दोराबजी टाटा के जिम्मे एक ब्लूप्रिंट छोड़ा था कि कैसे शहर की योजना और विकास किया जाना चाहिए। लॉन और बगीचों के लिए पर्याप्त जगह, सभी धर्मों के पूजा स्थल के लिए जगह, चौड़ी सड़कें, घर, खेल के लिए सुविधाएं होनी चाहिए।
1919 में एफ सी टेम्पल द्वारा प्रस्तावित टाउन प्लानिंग योजना के आधार पर, शहर को एक हेक्सागोनल पैटर्न में विकसित किया गया था, जिसमें चौड़ी सड़कों, पार्कों, लॉन, बाजारों, अपशिष्ट प्रबंधन और जल आपूर्ति प्रणाली का ध्यान रखा गया था।
जमशेदपुर अपने नागरिकों को एलईडी स्ट्रीट लाइटिंग, बायोगैस, प्लास्टिक सड़कों, अपशिष्ट प्रबंधन, डिजिटल कूड़ेदान आदि जैसी गुणवत्तापूर्ण सेवाओं की बदौलत एक स्मार्ट शहर में बदल रहा है। हाल ही में, शहर को स्वच्छ सर्वेक्षण पुरस्कार 2021 में सफाई मित्र सुरक्षा चुनौती श्रेणी में दूसरे स्थान पर रखा गया है।
ओलंपिक खेलों में ले जाने वाले पहले व्यक्ति
वे एक उत्सुक खिलाड़ी थे। उन्होंने अपने कॉलेज के वर्षों के दौरान क्रिकेट, फ़ुटबॉल खेला और कई स्प्रिंट इवेंट जीते। वे एक अच्छे घुड़सवार भी थे।
सर दोराबजी टाटा ने 1920 में एंटवर्प के ओलंपिक खेलों के लिए चार एथलीटों और का मार्ग प्रशस्त किया। उन्होंने 1924 में पेरिस ओलंपिक के लिए भारतीय दल को भी वित्तपोषित किया।
सर दोराबजी टाटा भारतीय ओलंपिक संघ के अध्यक्ष और अंतर्राष्ट्रीय ओलंपिक समिति के सदस्य थे।
भारत में कई पहले श्रम कल्याण उपायों में अग्रणी
सर दोराबजी टाटा ने आठ घंटे का कार्य दिवस, निःशुल्क चिकित्सा सहायता, वेतन के साथ अवकाश, श्रमिक भविष्य निधि, श्रमिक समिति का गठन, श्रमिक दुर्घटना मुआवजा योजना, कल्याण विभाग की स्थापना और मातृत्व अवकाश जैसे श्रम कल्याण की दिशा में अग्रणी उपायों की पेशकश की। ये उपाय बाद में कानून द्वारा अपनाए गए।
एक निःस्वार्थ लीडर
सर दोराबजी टाटा ने 1920 के दशक के वैश्विक वित्तीय संकट के दौरान प्रसिद्ध आभूषण, जुबली डायमंड (उनकी पत्नी, लेडी मेहरबाई टाटा से संबंधित) सहित अपनी व्यक्तिगत संपत्ति गिरवी रखकर कंपनी को दिवालिया होने के कगार से बचाया।
उन्होंने सर दोराबजी टाटा ट्रस्ट की स्थापना करके मानव कल्याण हेतु अपनी पूरी संपत्ति त्याग दी। उन्होंने ल्यूकेमिया में अध्ययन को आगे बढ़ाने के लिए लेडी मेहरबाई टाटा मेमोरियल ट्रस्ट का समर्थन किया।
सर दोराबजी टाटा को 1910 में नाइट की उपाधि दी गई थी। 3 जून 1932 को जर्मनी के बैड किसिंगन में उनकी मृत्यु हो गई। उन्हें उनकी पत्नी लेडी मेहरबाई टाटा की कब्र के पास इंग्लैंड के ब्रुकवुड कब्रिस्तान में दफनाया गया। उनकी कोई संतान नहीं थी।
जमशेदपुर में सर दोराबजी टाटा पार्क में डायमंड पवेलियन की स्थापना सर दोराबजी टाटा और उनकी पत्नी लेडी मेहरबाई टाटा को टाटा समूह, टाटा स्टील और जमशेदपुर शहर के लिए उनके अमूल्य और चिरस्थायी योगदान और बलिदान के लिए एक सच्चा सलाम है।
संस्थानों का निर्माण
सर दोराबजी टाटा ट्रस्ट ने कई प्रमुख संस्थानों का नेतृत्व और समर्थन किया है। संस्थानों ने कई क्षेत्रों, विशेष रूप से चिकित्सा, कला, शिक्षा और अन्य में महत्वपूर्ण योगदान दिया है।
नेशनल सेंटर फॉर द परफॉर्मिंग आर्ट्स
भारत का प्रमुख सांस्कृतिक संस्थान, नेशनल सेंटर फॉर द परफॉर्मिंग आर्ट्स (एनसीपीए), सर दोराबजी टाटा ट्रस्ट द्वारा प्रायोजित पहली सार्वजनिक परियोजना थी। एनसीपीए भारत की समृद्ध और जीवंत कलात्मक विरासत को सुरक्षित रखने और उन्हें प्रोत्साहन देने के लिए प्रतिबद्ध है।
टाटा मेमोरियल हॉस्पिटल
लेडी मेहरबाई टाटा की ल्यूकेमिया के कारण मृत्यु हो गई थी, जिसने सर दोराबजी टाटा को कैंसर अनुसंधान और उपचार की दिशा में कुछ करने के लिए प्रेरित किया।
टाटा मेमोरियल हॉस्पिटल (अब टाटा मेमोरियल सेंटर) सर दोराबजी टाटा ट्रस्ट द्वारा शुरू किया गया था। यह एक अग्रणी अत्याधुनिक सुविधा के रूप में विकसित हुआ है। अधिकांश रोगियों को प्राथमिक चिकित्सा निःशुल्क दी जाती है।
टाटा इंस्टिट्यूट ऑफ़ सोशल साइंस
टाटा इंस्टिट्यूट ऑफ़ सोशल साइंस के बीज एक युवा सामाजिक वैज्ञानिक, डॉ. क्लिफोर्ड मैनशार्ट की गतिविधियों में बोए गए थे। उन्होंने बंबई के करीब एक उत्कृष्ट सामुदायिक विकास परियोजना का संचालन किया। उन्होंने मदद के लिए सर दोराबजी टाटा ट्रस्ट से संपर्क किया।
सर दोराबजी टाटा ग्रेजुएट स्कूल ऑफ सोशल वर्क की स्थापना 1936 में हुई थी, और डॉ. मानशर्ट इसके पहले निदेशक थे। वही ग्रेजुएट स्कूल डीम्ड यूनिवर्सिटी के दर्जे के साथ अग्रणी टाटा इंस्टीट्यूट ऑफ सोशल साइंस के रूप में विकसित हुआ।