- जनजातीय एवं क्षेत्रीय भाषा केन्द्र में संगोष्ठी का आयोजन
रांची। रांची विश्वविद्यालय के जनजातीय एवं क्षेत्रीय भाषा केन्द्र के नागपुरी विभाग में शनिवार को संगोष्ठी का आयोजन किया गया। इसकी अध्यक्षता डॉ हरि उरांव ने की। उन्होंने डॉ केशरी के छात्र और सहयोगी के रूप में बिताये पलों को साझा किया। कहा कि झारखंड की भाषा और संस्कृति को प्रगाढ़ बनाने के लिए स्व. केशरी ने पूरे जोर शोर से काम किया। सबसे पहले झारखंड का इतिहास लिखने का काम किया। वे झारखंड के इतिहासकार के रूप में भी जाने जाते हैं।
मुख्य वक्ता आरएलएसवाई कालेज के सहायक प्राध्यापक डॉ खालिक अहमद ने कहा कि डॉ केशरी विराट व्यक्तित्व के धनी व्यक्ति थे। झारखंडी समाज को आइना दिखाने का कार्य किया। वे एक कुशल शिक्षाविद के साथ-साथ आंदोलनकारी, साहित्यकार, पत्रकार, इतिहासकार और समाजसेवी थे।
विषय प्रवेश कराते हुए नागपुरी विभाग के विभागाध्यक्ष डॉ उमेश नंद तिवारी ने कहा कि डॉ केशरी पूरे समाज को एक साथ लेकर चलने वाले व्यक्ति थे। उन्होंने पांत की भावनाओं से ऊपर उठकर काम किया। साहित्यिक आंदोलन छेड़ा। झारखंड आंदोलन को इनके लेखनी से बल मिला। इनके साहित्यिक आन्दोलन के कारण ही झारखंड को पूरी दुनिया में जाना गया। इनके नाम के बगैर झारखंड आंदोलन अधूरा होगा।
सहायक प्राध्यापक डॉ रीझू नायक ने कहा कि डॉ केशरी सिर्फ साहित्यकार ही नहीं, बल्कि एक आन्दोलनकारी भी थे। विकट परिस्थिति में झारखंड आंदोलन को संभाला और गति प्रदान किया था। उनके मार्गदर्शन में भाषा-साहित्य और झारखंडी संस्कृति को मजबूत करने के लिए पूरे प्रदेश में एक मुहिम चलाया।
सहायक प्राध्यापक कुमारी शशि ने कहा कि स्व. केशरी बहुत ही सरल स्वभाव के व्यक्ति थे। वे हमेशा विद्यार्थियों को पढ़ने और खूब लिखने के लिए प्रोत्साहित करते रहते थे। गोष्ठी का संचालन सहायक प्राध्यापक डॉ बीरेन्द्र कुमार महतो और धन्यवाद सहायक प्राध्यापिका डॉ सविता केशरी ने किया।
इस मौके पर जनजातीय एवं क्षेत्रीय भाषा केन्द्र के डॉ रामकिशोर भगत, किशोर सुरीन, दिनेश कुमार दिनमणि, डॉ उपेन्द्र कुमार, योगेश प्रजापति, सहला सरवर, विक्की मिंज, विजय आनन्द नायक, तनु कुमारी, प्रतिभा कुमारी, प्रिया ठाकुर, दीपिका कुमारी, अनुपा कुजूर, अशोक कुमार, नुतन कुमारी के अलावा जनजातीय एवं क्षेत्रीय भाषा केन्द्र के शोधार्थी और छात्र छात्राएं मौजूद थे।