वैज्ञानिकों की रासायनिक के साथ जैविक एवं जीवाणु खाद के संतुलित प्रयोग की सलाह

कृषि झारखंड
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  • बीएयू में उर्वरकों का दक्ष एवं संतुलित प्रयोग पर जागरुकता अभियान का आयोजन

रांची। बिरसा कृषि विश्वविद्यालय के मृदा विज्ञान एवं कृषि रसायन विभाग में उर्वरकों का दक्ष एवं संतुलित प्रयोग पर एक दिवसीय जागरुकता अभियान चलाया गया। इस अवसर पर विद्यार्थियों को संबोधित करते हुए अध्यक्ष डॉ डीके शाही ने फसलों में खाद एवं उर्वरकों का संतुलित प्रयोग बल दिया। कहा कि स्फूर एवं पोटैशिक उर्वरकों को फसल की बुआई से पूर्व मिट्टी में मिला देने से पौधों को शत-प्रतिशत पोषक तत्व प्राप्त होगें। उत्पादन भी बढ़ेगा। उन्होंने झारखंड की भूमि में रासायनिक उर्वरकों के साथ-साथ जैविक एवं जीवाणु खाद का संतुलित, समुचित एवं समयानुकूल प्रयोग से सभी फसलों से उच्च उत्पादन एवं उत्पादकता प्राप्त होने की बात कही।

मुख्य वैज्ञानिक डॉ बीके अग्रवाल ने मिट्टी जांच के आधार पर अनुशंसित उर्वरकों की मात्रा का प्रयोग अथवा विशेष फसल के लिए अनुशंसित उर्वरकों की मात्रा के प्रयोग करने की सलाह दी। कहा कि इससे किसान कम लागत में अधिक उत्पादन प्राप्त कर सकते हैं। उन्होंने खरीफ फसलों में नाईट्रोजन की संतुलित प्रयोग पर बल दिया, ताकि फसलों पर कीड़े एवं बीमारियों का प्रकोप ना के बराबर हो।

परियोजना अन्वेंषक (आईसीएआर-दीर्घ कालीन उर्वरक अनुसंधान परियोजना) डॉ प्रभाकर महापात्र ने बताया कि मृदा स्वास्थ्य में गिरावट को देखते हुए पूरे देश में उर्वरकों का संतुलित प्रयोग से सबंधित राष्ट्रीय अभियान चलाया जा रहा है। मौसम एवं जलवायु में काफी परिवर्तन हो हुआ है, जिसका मुख्य कारण खेतों में अंधाधुंध रासायनिक उर्वरकों, कीटनाशकों का प्रयोग व अंधाधुंध पेड़ों की कटाई शामिल है। इससे वायुमंडल में ऑक्सीजन व कार्बन डायऑक्साइड काफी असंतुलित हो गया है। उन्होंने फसलोत्पादन में संतुलित उर्वरक के प्रयोग के महत्व के बारें में विद्यार्थियों को विस्तार पूर्वक बताया।

डॉ महापात्र ने कहा कि सघन खेती में उन्नत/संकर किस्मों के समावेश से पौधों एवं मिट्टी में अनेकों पोषक तत्वों की कमी हो रही है। इससे फसल उपज में कमी और मिट्टी की उर्वरा शक्ति घटती जाती है। खेती में केवल नेत्रजन (यूरिया) का प्रयोग फसल एवं भूमि के लिए नुकसान दायक है। मिट्टी का स्वास्थ्य बनाये रखने के लिए खेती-किसानी में संतुलित उर्वरक उपयोग की आज की सबसे बड़ी आवश्यकता है।

इस अभियान का आयोजन आईसीएआर-अखिल भारतीय समन्वित दीर्घकालीन उर्वरकों का फसलों पर प्रभाव अनुसंधान परियोजना के अधीन किया गया। मौके पर डॉ पीबी साहा, डॉ अरविन्द कुमार, डॉ एसबी कुमार, डॉ आशा सिन्हा, डॉ अपूर्वा पाल, डॉ अर्केंदु घोष, डॉ अमित कुमार सहित कृषि एवं उद्यान महाविद्यालयों के करीब 160 छात्र-छात्राएं मौजूद थे।