रांची में उपद्रवियों का उतरा पोस्‍टर, झारखंड का चढ़ा सियासी पारा

झारखंड
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रांची। झारखंड की राजधानी रांची में 10 जून को हिंसा हुई। राज्‍यपाल रमेश बैस ने इसका संज्ञान लिया। उन्‍होंने डीजीपी, रांची डीसी और एसएसपी को बुलाकर उपद्रवियों का पोस्‍टर चौक-चौराहों पर लगाने के निर्देश दिये। राज्यपाल के आदेश अमल में लाते हुए पोस्‍टर लगाये गये। कुछ मिनटों में पोस्टर में संशोधन की बात कहकर रांची पुलिस ने पोस्‍टर को उतार लिया। पोस्‍टर उतारे जाने के बाद झारखंड का सियासी पारा चढ़ गया।

पोस्‍टर हटाया जाना जांच का विषय : रघुवर

पोस्‍टर उतारे जाने पर पूर्व सीएम रघुवर दास ने आरोप लगाया कि पुलिस और जिला प्रशासन सरकार के दबाव में काम कर रहा है। राज्यपाल ने पुलिस प्रशासन को दोषियों का पोस्टर शहर के चौक-चौराहे पर लगाने का आदेश दिया था। पुलिस ने पोस्टर चिपकाया भी, लेकिन पांच मिनट के भीतर उसे हटा दिया गया। उन्‍होंने कहा कि यह पुलिस मैनुअल में भी है कि इसी बड़े घटना में शामिल अपराधियों का पोस्टर शहर के चौक-चौराहे पर चिपकाएं जाएं। आखिर किसके आदेश पर पोस्टर को हटाया गया। यह जांच का विषय है। दुर्भाग्य है कि पूरे मामले में राज्य के मुख्यमंत्री हल्की बातों का प्रयोग कर रहे हैं। ढाई साल के सरकार की कारगुजारी से राज्य में राष्ट्रविरोधी शक्तियों का मनोबल बढ़ गया है।

राज्‍य में राष्ट्रपति शासन नहीं : राजेश ठाकुर

इस मामले में कांग्रेस के प्रदेश अध्यक्ष राजेश ठाकुर ने कहा कि रांची में हिंसा होना दुखद रहा। उन्होंने कहा कि राज्‍य में राष्ट्रपति शासन नहीं है, जो राज्यपाल के आदेश का तुरंत पालन किया जाये। यहां चुनी हुई सरकार है। सरकार ने पूरे घटनाक्रम की जांच के लिए दो सदस्यीय कमेटी बनाई है। रिपोर्ट आने का इंतजार तो कर लें। वह भी तो राज्य सरकार की ही कमेटी है।

मामला राइट टू प्राइवेसी एक्ट का : डॉ उरांव

राज्य के वित्त मंत्री और पूर्व आईपीएस डॉ रामेश्वर उरांव ने कहा कि यह मामला राइट टू प्राइवेसी एक्ट का बनता है। उन्‍होंने कहा कि जहां तक भीड़ पर गोली चलाने का मामला है, कभी-कभी पुलिस वर्तमान परिस्थिति और हालात को देखने के बाद ही ऐसा कदम उठाती है। ये पुलिस मैनुअल और किताबों में लिखी नहीं होता है।