रांची। न जन्म कुछ, न मृत्यु कुछ, बस इतनी सी बात है, किसी की नींद खुल गई, किसी की आंख लग गई…। …और इसी चीरनिद्रा की चादर ओढ़ ली पत्रकार सुबोध स्वामी ने।
अपने पूरे जीवन वह संघर्ष की इबारत लिखते रहे। किडनी फेल होने के बाद पिछले माह से रिम्स में डायलिसिस पर थे। पत्नी कुछ वर्ष पूर्व गुजर चुकी थी। इकलौती बिटिया सीबीएसई दसवीं की परीक्षा दे रही है। पिछले माह चोरों ने घर को खंगाल लिया था। महज 52 वर्ष की आयु में अपना खून दान कर 100 से अधिक लोगों की जिंदगी बचाई। रक्तदान करना उनका जुनून और जज्बा था।
कई राष्ट्रीय अखबारों में बतौर पत्रकार अपनी सेवा देनेवाले शतकवीर रक्तदाता वैसे तो पूर्वी चंपारण मोतिहारी बिहार के मूल निवासी थे। लेकिन दो पीढ़ी पहले ही रांची के हटिया में आकर बस गए थे।आज उनका अंतिम संस्कार रांची हरमू के मुक्तिधाम में होगा। बेवक्त जिंदगी का दामन छोड़ पत्रकार सुबोध स्वामी अपने रिश्तेदारों, हममित्रों और पत्रकार साथियों को जार-जार रूला गए।
अब उनकी बेटी का भविष्य सुरक्षित करने के लिए पत्रकारों ने पहल शुरू कर दी है। उनके इलाज में मदद की पहल शुरू ही हुई थी कि उन्होंने किसी को अवसर ही नहीं दिया। पत्रकारिता जगत के अलावा विभिन्न वर्ग के लोगों ने उनके आकस्मिक निधन पर गहरा शोक जताया है।