दुनिया के 35 फीसदी फसल उत्पादन में अहम भूमिका निभाते हैं मधुमक्‍खी

कृषि झारखंड
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  • बीएयू के विद्यार्थियों ने विश्व मधुमक्‍खी दिवस पर ओपन डे कार्यक्रम में भाग लिया

रांची। बिरसा कृषि विश्वविद्यालय के कृषि संकाय में अध्ययनरत कृषि स्नातक और एग्री बिजनेस मैनेजमेंट के एमबीए विद्यार्थियों के दल ने शुक्रवार को नामकुम स्थित आईसीएआर-भारतीय प्राकृतिक राल एवं गोंद संस्थान का भ्रमण किया। इसमें 71 विद्यार्थियों शामिल थे। उन्‍होंने संस्थान के राल एवं गोंद नर्सरी प्रबंधन और उत्पादन तकनीकी को देखा। संस्थान के वैज्ञानिकों ने मुख्य मेजबान पेड़ पलाश, कुसुम, बेर एवं सेमियालता का लाख कीट उत्पादन में महत्‍व के बारे में बताया। मौके पर विद्यार्थियों ने संस्थान का लाख संग्रहालय, अनुसंधान फार्म एवं लाख आधारित विडियो फिल्मों का भी अवलोकन किया।

संस्थान द्वारा मनाये जा रहे उत्पादक कीट संरक्षण सप्ताह के तहत शुक्रवार को विश्व मधुमक्‍खी दिवस के मौके पर आयोजित ओपन डे कार्यक्रम में विद्यार्थियों के दल ने भाग लिया। कार्यक्रम में विद्यार्थियों ने मधुमक्‍खी की कृषि और मानव जीवन में उपयोगिता एवं लाख कीट के महत्‍व विषयक वैज्ञानिकों के व्याख्यान में शामिल हुए। मौके पर संस्थान के निदेशक डॉ केके शर्मा ने कहा कि लोगों और धरती को स्वस्थ रखने में मधुमक्खियों एवं अन्य परागणकों की अहम भूमिका है। आज का दिन इन परागणकों के सामने आने वाली कई चुनौतियों के बारे में जागरुकता बढ़ाने का एक बड़ा अवसर है।

मौके पर प्रधान वैज्ञानिक डॉ ज्योतिर्मोय घोष एवं डॉ निर्मल कुमार ने विद्यार्थियों को मधुमक्‍खी, लाख कीट और प्राकृतिक राल एवं गोंद के महत्‍व, उपयोगिता एवं उत्पादन की विस्तार से जानकारी दी। भारतीय समाज के आर्थिक उत्थान में उत्पादक कीटों की भूमिका में बताया।

मौके पर बीएयू कीट वैज्ञानिक डॉ मिलन कुमार चक्रवर्ती ने बताया कि 2018 में संयुक्त राष्ट्र महासभा ने 20 मई को विश्व मधुमक्खी दिवस के रूप में घोषित किया था। सदियों से मधुमक्खियों की 20,000 से अधिक प्रजातियां और अन्य परागणकर्ता पराग को एक फूल से दूसरे फूल तक ले जाकर फलों, नट और बीजों को पहुंचाते हैं। उनके उत्पादन में अपनी भूमिका निभाती हैं। दुनिया के 35 फीसदी फसल उत्पादन में अहम भूमिका निभाते हैं।

दुनिया भर में प्रमुख खाद्य फसलों में से 87 के उत्पादन में वृद्धि, साथ ही कई पौधों से प्राप्त दवाएं एवं भोजन के रूप में मानव उपयोग के लिए फल या बीज पैदा करने वाली दुनिया भर में चार में से तीन फसलें, कम से कम आंशिक रूप से परागणकों पर निर्भर करती हैं।

दल में रांची कृषि महाविद्यालय के कृषि स्नातक पाठ्यक्रम के अंतिम वर्ष में एक्सपीरियंस लर्निंग प्रोग्राम (ईएलपी) में अध्ययनरत 67 और एमबीए इन एग्री बिजनेस मैनेजमेंट में अध्ययनरत 4 विद्यार्थियों के ने भाग लिया। विद्यार्थियों के नेतृत्व वरीय कीट वैज्ञानिक डॉ मिलन कुमार चक्रवर्ती ने किया। विद्यार्थियों के भ्रमण के संचालन में राहुल राज, प्रभात कुमार, अमृता कुमारी और शिल्पा कुमारी ने सहयोग दिया। यह जानकारी कृषि कॉलेज की ईएलपी कार्यक्रम समन्यवयक डॉ निभा बड़ा ने दी।