बीएयू : विद्यार्थियों ने ड्रोन तकनीक की कृषि प्रणाली में उपयोगिता को लाइव देखा

कृषि झारखंड
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रांची। बिरसा कृषि विश्वविद्यालय के मृदा विज्ञान एवं कृषि रसायन विभाग के प्रायोगिक अनुसंधान फार्म में मंगलवार को कृषि में ड्रोन तकनीक के महत्‍व एवं उपयोगिता का लाइव प्रदर्शनी की गई। आईसीएआर नाहेप-कास्ट परियोजना के सौजन्य से यह हुआ। इसका विश्वविद्यालय के कृषि और वानिकी संकाय के पीजी एवं पीएचडी छात्रों ने अवलोकन किया। इसके उपयोग की व्यावहारिक जानकारी प्राप्त की। लाइव प्रदर्शनी में एशिया पेसीफिक, नई दिल्ली के तीन सदस्यीय तकनीकी दल ने छात्रों को आधुनिक कृषि परिवेश में ड्रोन तकनीक की उपयोगिता की विस्तार से जानकारी दी।

स्मार्ट फार्मिंग का महत्‍व बढ़ता जा रहा

एशिया पेसीफिक के निदेशक शिव कक्कर ने छात्रों को बताया कि भविष्य की खाद्यान आवश्यकताओं की पूर्ति में स्मार्ट फार्मिंग का महत्‍व बढ़ता जा रहा है। ड्रोन तकनीक से खेतों में फसल स्वास्थ्य, फसल उपचार, फसल स्काउटिंग, सिंचाई, खेत की मिट्टी का विश्लेषण करना, फसल क्षति आकलन, फंगल इन्फेक्शन एवं फसल विकास की अड़चनें का सही एवं सटीक आकलन संभव है। इससे कृषि कार्य को बेहतर किया जा सकता है।

सटीक डाटा प्राप्त किया जाता है

ड्रोन इंजिनियर शुभम अग्रवाल ने ड्रोन की लाइव प्रदर्शनी से विभिन्न तकनीकी कार्यों की जानकारी दी। उन्होंने बताया कि ड्रोन एक नेविगेशन सिस्टम है। इसमें जीपीएस, कई सेंसर, उच्च गुणवत्ता वाले कैमरे, प्रोग्राम करने योग्य नियंत्रक और स्वायत्त ड्रोन के लिए उपकरण शामिल होते हैं। उपग्रहों की तुलना में मानव रहित ड्रोन से कृषि के लिए अधिक सटीक डाटा प्राप्त किया जाता हैं। इससे प्रक्षेत्र का विश्लेषण, मल्टीस्पेक्ट्रल सेंसर/आरजीबी सेंसर जैसे सेंसर के माध्यम से सभी आवश्यक डाटा को कैप्चर करने तथा कैप्चर डाटा का सॉफ्टवेयर के माध्यम से विश्लेषण और व्याख्या की जाती है। इससे खेतों में ड्रोन-प्लांटिंग सिस्टम से पौधा रोपण, सिंचाई सुविधा की निगरानी, फसल स्वास्थ्य की स्थिति, फसल की प्रारंभिक अवस्था में जीवाणु/कवक संबंधी विपत्तियों को ज्ञात, जल दक्षता में सुधार, सिंचाई कार्य में संभावित मदद, फसल क्षति आकलन, भूमि की मिट्टी की उर्वरता आकलन, खेतों के कीट एवं रोग से समस्याग्रस्त क्षेत्रों का सटीक पहचान और पांच गुना तेज गति से कीटनाशी के छिड़काव से फसल उपचार एवं मवेशियों की गतिविधियों पर भी नजर रखने के बारे में बताया।

ड्रोन का व्यवहार दिन-ब-दिन बढ़ रहा

एशिया पेसीफिक के सीओओ गौरव राखा ने बताया कि भारतीय कृषि में व्यावसायिक उपयोग के लिए ड्रोन का व्यवहार दिन-ब-दिन बढ़ रहा हैं। यह किसान को व्यापक सिंचाई का ज्ञान, फसल स्वास्थ्य की पर्याप्त निगरानी, ​​मिट्टी के स्वास्थ्य के ज्ञान, पर्यावरणीय परिवर्तनों के अनुकूलन से फसल उत्पादन क्षमताओं में सुधार एवं फसल पर कीटनाशकों का सुरक्षित और अधिक सुविधाजनक छिड़काव पर बेहद उपयोगी है।

कृषि को एक नई दिशा देने में सक्षम

तकनीकी अवलोकन के बाद मृदा विभाग के अध्यक्ष डॉ डीके शाही ने कहा कि वैश्विक तौर पर ड्रोन तकनीक की उपयोगिता एवं मांग को देखते हुए इस तकनीक का कृषि में उपयोग भारतीय कृषि को एक नई दिशा देने में सक्षम होगा। वैज्ञानिक एवं छात्रों के कृषि अनुसंधान तथा किसानों की खेती की सटीक जानकारी एवं विश्लेषण में इस तकनीक की उपयोगिता पर अमल की जरूरत है। मुख्य वैज्ञानिक (मृदा) डॉ पीबी साहा ने संभावित सिंचाई, मिट्टी का स्वास्थ्य, भूमि का प्रकार, कीटनाशकों का तेजी से छिड़काव आदि में उपयोगी बताया।

ड्रोन प्रणाली के योगदान पर शोध हो

ड्रोन के लाइव प्रदर्शनी पर कुलपति डॉ ओंकार नाथ सिंह ने कहा कि भारतीय कृषि में सूचना प्रौद्योगिकी एवं जैव प्रौद्योगिकी का तेजी से विकास एवं विस्तारीकरण हो रहा है। देश के टि‍काऊ कृषि में स्मार्ट फार्मिंग का महत्‍व लगातार बढ़ रहा है। इसे आगे बढ़ाने में आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस, रोबोटिक्स एवं इंटरनेट के साथ-साथ ड्रोन प्रणाली के योगदान पर शोध की जरूरत है। कृषि क्षेत्र में इसका बेहतर कार्यान्वयन एवं व्यावहारिक उपयोगिता का आकलन की जरूरत होगी, ताकि पारंपरिक खेती के तरीकों में तकनीक के सटीक परिणाम का स्मार्ट फार्मिंग का लाभ किसानों को मिल सकें।

लाइव प्रदर्शनी का आयोजन नाहेप परियोजना अन्वेंषक डॉ एमएस मल्लिक का मार्गदर्शन में किया गया। मौके पर फिरोज अहमद, अभिषेक कुमार, संदीप कुमार, अमित कुमार, मिथेलेश कुमार, अमन संदिल, सशंक भगत एवं परम विवेक कुजूर आदि मौजूद थे।