- बीएयू में विश्व दलहन दिवस पर किसान गोष्ठी
रांची। देश में दलहनी फसलों का क्षेत्र बढ़ाने की सर्वाधिक संभावना झारखंड में है। यहां लगभग 80% क्षेत्र में वर्षा आधारित खेती होने के कारण रबी मौसम में कृषि योग्य भूमि का अधिकांश भाग खाली पड़ा रहता है। वैज्ञानिक और किसानों को मिलकर रबी मौसम में खाली पड़ी भूमि को दलहनी-तिलहनी फसलों से आच्छादित करने का प्रयास करना चाहिए। क्योंकि दालें शाकाहारी लोगों के लिए प्रोटीन का सबसे प्रमुख स्रोत है। उक्त बातें बिरसा कृषि विश्वविद्यालय के कुलपति डॉ ओंकार नाथ सिंह ने कही। वे गुरुवार को विश्व दलहन दिवस पर बीएयू के अनुसंधान निदेशालय द्वारा आयोजित किसान गोष्ठी में बोल रहे थे।
बड़ी मात्रा में हो रहा आयात
कुलपति ने कहा कि हरियाणा, पंजाब, उत्तर प्रदेश जैसे कृषि अग्रणी राज्यों में रबी में भी अधिक से अधिक कृषि भूमि का अच्छादन हो रहा है। इसलिए वहां दलहन उत्पादन एवं उत्पादकता बढ़ाने की संभावनाएं अपेक्षाकृत कम हैं। आजादी के 75 वर्षों के दौरान भारत अनाज, दूध, मछली, सब्जी, फल आदि के मामले में ना केवल आत्मनिर्भर हो गया, बल्कि दूसरे देशों को भी काफी मात्रा में निर्यात कर रहा है। हालांकि दलहन और तेलहन के मामले में अब भी हम अपनी जरूरतों की पूर्ति के लिए बड़ी मात्रा में दूसरे देशों से आयात पर निर्भर हैं। यह परिदृश्य बदलने के लिए हमें कमर कसनी होगी। किसानों को उन्नत प्रभेदों और उत्पादन तकनीक के प्रति जागरूक करना होगा।
दलहन का उत्पादन बढ़ाना होगा
अनुसंधान निदेशक डॉ ए वदूद ने कहा कि झारखंड में दलहन उत्पादन और उत्पादकता वृद्धि की दर राष्ट्रीय औसत से अधिक है। वर्तमान में देश में प्रति हेक्टेयर उत्पादकता लगभग 7.5 क्विंटल है, जबकि झारखंड में प्रति हेक्टेयर दलहन उत्पादकता खरीफ में एक टन और रबी में डेढ़ टन है। बीएयू के वैज्ञानिक इसे और बढ़ाने की दिशा में प्रयासरत हैं। उन्होंने कहा कि झारखंड में खाद्यान्न उत्पादन पिछले दो दशकों में 22-23 लाख टन से बढ़कर लगभग 50 लाख टन हो गया। खाद्य सुरक्षा के साथ-साथ हमें राज्यवासियों की पोषण और स्वास्थ्य सुरक्षा पर भी ध्यान देना है। इसलिए गरीबों के प्रोटीन के प्रमुख स्रोत दलहन का उत्पादन बढ़ाना होगा।
समस्याओं का समाधान प्रस्तुत किया
उद्घाटन सत्र में कृषि अधिष्ठाता डॉ एसके पाल, डीएसडब्ल्यू डॉ डीके शाही और आनुवंशिकी एवं पौधा प्रजनन विभाग के अध्यक्ष डॉ सोहन राम ने भी अपने विचार रखे। तकनीकी सत्र में डॉ पीके सिंह, डॉ एस कर्मकार, डॉ नीरज कुमार, डॉ सीएस महतो, डॉ कमलेश्वर कुमार, डॉ हेमचंद्र लाल, डॉ विनय कुमार और डॉ सविता एक्का ने दलहन उत्पादन संबंधी किसानों की जिज्ञासा एवं तकनीकी समस्याओं का समाधान प्रस्तुत किया।
मैकेनिकल स्प्रेयर प्रदान किया
अरहर और मूलार्प फसल सम्बन्धी आईसीएआर की जनजातीय उप योजना के तहत रांची जिला के चान्हो और मांडर प्रखंड के विभिन्न गांवों से आए 41 किसानों को मैकेनिकल स्प्रेयर प्रदान किया गया। वैज्ञानिकों के दल के साथ किसानों ने विश्वविद्यालय के दलहन प्रक्षेत्र का परिभ्रमण भी किया। प्रतिभागी किसानों में महिलाओं की संख्या अधिक थी।