
रांची। नेताजी सुभाष चंद्र बोस की वीरगाथा एवं पराक्रम भारत ही नहीं, विदेशों में भी सुनाई देती है। नेताजी का प्रमुख नारा ‘तुम मुझे खून दो, मैं तुम्हें आजादी दूंगा’ ये केवल नारा नहीं था। इस नारे ने पूरे भारत में देशभक्ति का वह ज्वारभाटा पैदा किया, जो देश की स्वतंत्रता का आधार बना। उक्त बातें रांची विश्वविद्यालय की कुलपति डॉ कामिनी कुमार ने कही। वह 23 जनवरी को आरयू के कुलपति सभागार में नेताजी सुभाष चंद्र बोस जयंती सह पराक्रम दिवस पर आयोजित कार्यक्रम में बोल रही थीं। इसका आयोजन रांची विश्वविद्यालय की राष्ट्रीय सेवा योजना (एनएसएस) इकाई ने किया था। कार्यक्रम का शुभारंभ नेताजी के चित्र पर पुष्पांजलि कर किया गया।
कुलपति ने कहा कि नेताजी स्वामी विवेकानंद की शिक्षा से अत्यधिक प्रभावित थे। उन्हें अपना आध्यात्मिक गुरु मानते थे। पूरा देश आजादी का अमृत महोत्सव मना रहा है। इस 75 वर्षों में पहली बार गणतंत्र दिवस समारोह 23 जनवरी से ही मनाकर नेताजी के पराक्रम को वर्तमान पीढ़ी को अवगत कराया जा रहा है। उन्होंने एनएसएस के स्वयंसेवकों से नेताजी की जीवनी को स्मरण करते हुए वर्तमान चुनौतियों का सामना कर समाज में रचनात्मक कार्य करने का आह्वान किया।
आरयू के परीक्षा नियंत्रक डॉ आशीष कुमार झा ने कहा कि नेताजी के स्मरण मात्र से अदम्य साहस की अनुभूति होती है। नेताजी आज भी देशवासियों के मन में समाए हुए हैं। खासतौर से युवा उनसे हमेशा प्रभावित रहे हैं।
एनएसएस के कार्यक्रम समन्वयक डॉ ब्रजेश कुमार ने कहा कि नेताजी के पराक्रम की गाथा से करोड़ों भारतीय के अंदर उर्जा एवं उत्साह का संचार होता है। नेताजी ने देश के सबसे पहले सशस्त्र बल की स्थापना करके आजादी की लड़ाई में अपना बहुमूल्य योगदान दिया।
कार्यक्रम का संचालन डॉ कमल कुमार बोस और धन्यवाद अनुभव चक्रवर्ती ने किया। कार्यक्रम को सफल बनाने में एनएसएस के स्वयंसेवक दिवाकर आनंद, प्रिंस तिवारी, आभास कुमार, फलक फातिमा, नेहा कुमारी, भावना, श्रद्धांजलि, नैंसी, नवीन, उज्ज्वल, पवन, मोनिका, संदीप, पूनम, श्रुति, सुजीत, काजल, शुभम आदि का योगदान रहा।