- गोभी सरसों की खेती की संभावना तलाशने की एक पहल : कुलपति
रांची। बिरसा कृषि विश्वविद्यालय के कृषि संकाय अधीन कार्यरत शस्य विभाग ने चालू रबी मौसम में नई तेलहनी फसल ‘गोभी सरसों’ पर शोध शुरू किया है। इस फसल पर शोध की पहल झारखंड में पहली बार की जा रही है। इसे आईसीएआर संपोषित अखिल भारतीय समन्वित एकीकृत कृषि प्रणाली शोध परियोजना के तहत कार्यान्वित किया जा रहा है।
कुलपति ने किया अवलोकन
विभाग के एकीकृत कृषि प्रणाली शोध फार्म में नवंबर में इस फसल की रोपाई की गई थी। वर्तमान में फसल खेत में लहलहा रही है। पौधों में पुष्प निकलने की शुरुआत हो चुकी है। हाल में कुलपति डॉ ओंकार नाथ सिंह ने शस्य वैज्ञानिकों के साथ फसल के प्रत्यक्षण का अवलोकन किया। कुलपति ने स्थानीय जलवायु में फसल की वानस्पतिक वृद्धि एवं पुष्पन पर संतोष जताया। वैज्ञानिकों द्वारा एकीकृत कृषि प्रणाली मॉडल के तहत गोभी फसल की संभावना पर पहल की सराहना की।
तीन-चार वर्ष शोध की जरूरत
कुलपति ने कहा कि झारखंड में रबी फसल की सघनता काफी कम है। यह शोध द्वारा झारखंड में इसकी खेती की संभावना तलाशने की अच्छी पहल है। इस मौसम में बेहतर वर्षा से फसल अच्छी है। इसपर तीन-चार वर्षो तक शोध की जरूरत है। इस शोध पहल में प्रदेश के कृषि पारिस्थितिकी में उपयुक्त पाये जाने पर ‘गोभी सरसों’ फसल किसानों की आय बढ़ोतरी में बेहद कारगर साबित हो सकती है।
आय में बढ़ोतरी की संभावना
कुलपति ने कहा कि बदलते कृषि परिवेश एवं बाजार की मांग के अनुरूप अभिनव कृषि तकनीकी विकास समय की बड़ी आवश्यकता है। कृषि वैज्ञानिकों को इस दिशा में सदैव तत्पर रहना होगा। हरियाणा, पंजाब एवं हिमाचल प्रदेश में यह फसल प्रचलित है। इसके झारखंड की कृषि पारिस्थितिकी में उपयुक्त होने पर किसानों की आय बढ़ोतरी हो सकती है।
कृषि विज्ञान केंद्र में भी खेती
वैज्ञानिक एवं परियोजना अन्वेंषक डॉ एस कर्मकार ने बताया कि प्रायोगिक फार्म में शोध के लिए गोभी सरसों की उन्नत किस्म आरपी-9 का प्रयोग किया गया है। इसके बीज को इंदिरा गांधी कृषि विश्वविद्यालय, रायपुर, छत्तीसगढ़ ने मुहैया कराया है। इसकी खेती की शुरुआत कांके स्थित विवि मुख्यालय के एकीकृत कृषि प्रणाली फार्म के अलावा क्षेत्रीय अनुसंधान केंद्र, चिंयांकी (पलामू) एवं दारीसाई (पूर्वी सिंहभूम) और कृषि विज्ञान केंद्र, चिंयांकी (पलामू) में की गई है। पूर्वी सिंहभूम के कुछ किसानों के खेतों में प्रत्यक्षण कराया गया है। पलामू एवं पूर्वी सिंहभूम के शोध केन्द्रों में भी फसल का प्रदर्शन अबतक संतोषजनक है।
कम मात्रा में बीज की जरूरत
डॉ कर्मकार ने बताया कि रबी मौसम में उपजाई जाने वाली तेलहनी फसल ‘गोभी सरसों’ की खेती पड़ोसी राज्य छत्तीसगढ़ में भी होने लगी है। आरपी-9 किस्म की उपज क्षमता 30-35 क्विंटल प्रति हेक्टेयर और तेल की मात्रा 40-42 प्रतिशत तक होती है, जो परंपरागत सरसों फसल की अपेक्षा काफी बेहतर है। प्रारंभिक अवस्था में इसका उपयोग पशुओं का चारा में भी किया जाता है। खेती में बीज की कम मात्रा की जरूरत होती है।
संभावना तलाशने का प्रयास
यह झारखंड की कृषि पारिस्थितिकी में शोध एवं विश्लेषण के माध्यम से संभावना तलाशने का प्रयास है। इस शोध कार्यक्रम में स्थानीय परिवेश में गोभी सरसों फसल की उपज क्षमता, तेल की मात्रा, गुणवत्ता, लाभ एवं हानिकारक प्रभावों आदि के आधार खेती की संभावना का आकलन किया जायेगा। भ्रमण के दौरान डॉ आरपी मांझी और एचएन दास भी मौजूद थे।