पौष पूर्णिमा के दिन लंगटा बाबा ने ली थी समाधि, चादरपोशी आज

झारखंड धर्म/अध्यात्म
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  • मेला नहीं लगेगा, कोविड प्रोटोकॉल के तहत भक्‍त कर सकेंगे चादरपोशी

योगेश कुमार पांडेय

जमुआ (गिरिडीह)। लंगटा बाबा समाधि स्थल सांप्रदायिक सौहार्द और एकता की मिसाल है। इनकी ख्याति झारखंड के अलावा विभिन्न राज्यों में भी है। हजारों लोग बाबा की समाधि स्थल पर चादरपोशी के लिए पहुंचते हैं। मन्नतें मांगते हैं। उनकी मुरादें भी पूरी होती है। इस अवसर पर लंगटा बाबा मेला का आयोजन होता है। विभिन्न धर्मों के लोग 365 दिन माथा टेकने आते हैं।

मंत्री तक का होता है आगमन

समाधि स्‍थल पर विभिन्न राज्यों से भी मंत्री, सांसद, विधायक आदि का आगमन होता है। इस अवसर पर साधु संतों का समागम देखते ही बनता है। काफी दूर-दूर से साधु-संत, फकीर बाबा के दरबार पहुंचते हैं। इस मौके पर भंडारा होता है। इसमें बाबा के भक्तों द्वारा सहयोग किया जाता है। विभिन्न विद्यालयों से छात्र-छात्राएं यहां पहुंचते हैं। भंडारा में योगदान देते हैं। लंगेश्वरी बाबा के मेला के एक दिन पूर्व से ही यहां चहल-पहल शुरू हो जाती है। कुछ श्रद्धालु 1 दिन पूर्व भी बाबा के समाधि स्थल पर चादरपोशी करते हैं।

समाधि साम्प्रदायिक सौहार्द

लंगेश्वरी बाबा और लंगटा बाबा के नाम से अपने भक्तों के बीच विख्यात जीवात्माओं के महान साधक लंगटा बाबा की समाधि साम्प्रदायिक सौहार्द के रूप में विख्यात है। यही वजह है कि यहां सभी धर्म व सम्प्रदाय के श्रद्धालु चादरपोशी करते हैं। मन्नत मांगते हैं। गिरि‍डीह जिले के जमुआ प्रखंड मुख्यालय से करीब सात किमी दूर जमुआ-देवघर मुख्य मार्ग में खरगडीहा स्थित उसरी नदी के तट पर स्थित लंगटा बाबा की समाधि पर सालों भर श्रद्धालुओं का तांता लगा रहता है।

जरूरतमंदों के बीच वितरण

बाबा के समाधि दिवस पौष पूर्णिमा के दिन चादरपोशी के लिए खरगडीहा में भक्तों का जनसैलाब उमड़ पड़ता है। बताया जाता है कि बाबा ने वर्ष 1910 के पौष पूर्णिमा को समाधि ली थी। उसी समय से प्रति वर्ष पौष पूर्णिमा के दिन यहां समाधि पर्व का आयोजन किया जाता है। भंडारा और लंगर चलाकर बाबा की समाधि पर चढ़े चादर का वितरण जरूरतमंदों के बीच किया जाता है।

सेवा शिद्दत से करते रहे

बाबा के बारे में लोग बताते हैं कि वर्ष 1870 में नागा साधुओं का एक जत्था देवघर जाने के क्रम में खरगडीहा थाना परिसर में विश्राम के लिए रुका था। शेष साधु अपने गंतव्य की ओर कूच कर गए। हालांकि बाबा तत्कालीन अंग्रेज जमाने के थाने और परगना कार्यालय खरगडीहा के अहाते में ही धुनी रमाकर बैठ गये थे। खरगडीहा प्रवास के दौरान बाबा अपने तपोबल से पीड़ित मानवता की ब। इतना ही नहीं पशु-पक्षियों से भी वे स्नेह करते थे।

कई चमत्कारिक किस्से

बाबा की कई चमत्कारिक किस्से खरगडीहा के चप्पे-चप्पे में विधमान है। पूर्णतः नग्न अथवा शरीर पर एक कम्बल ओढ़कर रहने वाले बाबा के पास दूर-दूर से लोग उपहार लेकर आते थे। उपहार में शामिल खाने की वस्तुओं को बाबा पशु-पक्षियों को खिला देते थे। कभी-कभी पूरा उपहार ही समीप के कुएं में डलवाकर भक्त को ठंढी करो महाराज की नसीहत देते थे।

प्रशासन के निर्देश

जमुआ थाना प्रभारी प्रदीप कुमार दास समाधि पर पहली चादरपोशी करेंगे। स्थानीय प्रशासन ने मेला लगाने की अनुमति नही दी हैं। समाधि‍ स्थल पर जाने वाले को मास्क पहनना अनिवार्य है। मंदिर से 300 सौ मीटर की दूरी पर एक भी दुकान नहीं लगेगा। सोशल डिस्टिसिंग की पालन करते हुए बाबा की गर्भ गृह पर चादर पोशी करने पर निर्णय हुआ। मंदिर परिसर में पुजारी की संख्या तीन से चार ही होगी। पांच मीटर की दूरी बनाकर ही चादरपोशी कर सकेंगें। सीसीटीवी एवं ड्रोन कैमरा से बाबा की समाधि‍ स्थल की निगरानी की जायेगी। बाबा की समाधि स्थल पर भीड़ नहीं लगने दिया जायेगा। सभी भक्तों को हैंड सेनिटाइज्‍ड करना होगा।