नई दिल्ली। देश आज नेताजी सुभाष चंद्र बोस की जयंती मना रहा है। इस मौके पर हम आपको उनसे जुड़ी कुछ रोचक बातें बताने जा रहे हैं। लोगों को बोस द्वारा गठित आजाद हिंद फौज के बारे में तो पता है, पर यह बात बहुत कम लोगों को पता है कि इस आजाद हिंद सरकार का अपना बैंक भी था जिसे आजाद हिंद बैंक का नाम दिया गया था। आजाद हिंद बैंक की स्थापना साल 1943 में हुई। यह बैंक बैंकिंग से जुड़े कामकाज के साथ ही करेंसी नोट भी जारी करता था। इस बैंक ने दस रुपये के सिक्के से लेकर एक लाख रुपये तक का नोट जारी किया था।
बताया जाता है कि इसके द्वारा जारी एक लाख रुपये के नोट पर नेताजी सुभाष चंद्र बोस की तस्वीर छपी थी। सुभाष चंद्र बोस ने जापान-जर्मनी की सहायता से आजाद हिंद सरकार के लिए नोट छपवाने का इंतजाम किया था। 1 लाख रुपये के नोट को जारी करने वाले बैंक आजाद हिंद की स्थापना साल 1943 में की गई थी। बैंक द्वारा 5000 के नोट की जानकारी सार्वजनिक की गई थी जिसका एक नोट आज भी बीएचयू के भारत कला भवन में सुरक्षित है। 1 लाख का नोट की तस्वीर हाल ही में नेताजी की प्रपौत्री राज्यश्री चौधरी ने विशाल भारत संस्थान को उपलब्ध कराई थी। नोटों के अलावा आजाद हिंद सरकार ने कई डाक टिकट जारी किए थे, जिन्हें ‘आजाद डाक टिकट’ कहा जाता है। नोटों के साथ ही इन्हें भी जर्मनी में ही छपवाया गया था। ये टिकट आज भारतीय डाक के स्वतंत्रता संग्राम डाक टिकटों में शामिल हैं।
* ऐसा था नेता जी का व्यक्तित्व*
सुभाष चंद्र बोस का जन्म 23 जनवरी 1897 को ओडिशा राज्य के कटक में एक संपन्न बंगाली परिवार में हुआ था। सुभाष चंद्र बोस के 7 भाई और 6 बहनें थीं। अपने माता-पिता के 14 बच्चों में वह 9 वीं संतान थे। उनके पिता का नाम जानकीनाथ बोस और माता का नाम प्रभावती देवी था। सुभाष चंद्र बोस ने अपनी शुरुआती शिक्षा कटक के रेवेंशॉव कॉलेजिएट स्कूल से पूरी की। आगे की पढ़ाई के लिए 1913 में कलकत्ता के प्रेसीडेंसी कॉलेज में दाखिला लिया। माता-पिता चाहते थे कि सुभाष चंद्र बोस भारतीय प्रशासनिक सेवा में जाएं। सिविल सर्विसेज की तैयारी के लिए उन्हें इंग्लैंड के कैंब्रिज विश्वविद्यालय भेजा गया था।
माता-पिता की इच्छा पूरी करने के लिए नेताजी ने 1920 में इंग्लैंड में आईसीएस की परीक्षा दी और उसमें चौथा स्थान प्राप्त किया, वह भी ऐसी व्यवस्था के बीच, जहां अंग्रेजों के शासन में जब भारतीयों के लिए किसी परीक्षा में पास होना तक मुश्किल होता था। जल्द ही वह सिविल सेवा की नौरी छोड़कर आजादी की लड़ाई में कूद पड़े। जब उन्होंने आजादी के लिए भारत की लड़ाई के बारे में सुना तो 23 अप्रैल, 1921 को जॉब छोड़ दी थी। नेताजी कांग्रेस के गरम दल के युवा लीडर थे। वह 1938 और 1939 में कांग्रेस के अध्यक्ष बने। लेकिन महात्मा गांधी और कांग्रेस आलाकमान से मतभेदों के बाद 1939 में उन्होंने कांग्रेस के अध्यक्ष पद से इस्तीफा दे दिया था।
उन्होंने 1942 में जापान के सहयोग से आजाद हिंद फौज का गठन किया था। उनकी आजाद हिंद फौज में ब्रिटिश मलय, सिंगापुर और अन्य दक्षिण पूर्व एशिया के हिस्सों के युद्धबंदी और बागानों में काम करने वाले मजदूर शामिल थे। एक-दूसरे से कड़े वैचारिक मतभेदों के बावजूद महात्मा गांधी और सुभाष बाबू एक-दूसरे को बहुत मानते थे। कहा जाता है कि नेताजी ने ही गांधी जी को राष्ट्रपिता की उपाधि दी, दूसरी ओर गांधी जी ने नेताजी को ‘देशभक्तों के देशभक्त’ की उपाधि से नवाजा था।