झारखंड में कृषि विकास की स्थिति आंकड़ों में सिमटी है : सचिव

झारखंड
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  • बीएयू में 41वीं रबी शोध परिषद् की बैठक का आयोजन

रांची। कृषि सचिव अबू बक्‍कर सिद्दीख पी ने कहा कि झारखंड में कृषि विकास की स्थिति क्षेत्र, उत्पादन एवं उत्पादकता के आंकड़ों में सिमटी है। कृषि विकास में अलग-अलग क्षेत्रों के किसानों की विभिन्न समस्याएं हैं। उपयुक्त तकनीकी में दूरी सबसे बड़ी बाधा है। कृषि योजनाओं में समुचित सुधार की आवश्यकता है। इस टास्क को कृषि विश्वविद्यालय के तकनीकी मार्गदर्शन में पूरा करने की जरूरत है। बीएयू विस्तृत सर्वे माध्यम से बाधा व कमजोरियों की पहचान पर फोकस करते हुए आगामी दस वर्षो का विजन डॉक्यूमेंट समर्पित करे। वे बीएयू में आयोजित 41वीं रबी शोध परिषद् में बतौर मुख्य अतिथि कृषि बोल रहे थे।

शोध में निरंतरता बनाये रखने की जरूरत

सचिव ने कहा कि वर्षो बाद कृषि विश्वविद्यालय के वैज्ञानिकों द्वारा राज्य के उपयुक्त विकसित की गई 11 फसल किस्मों को स्टेट एवं सेंट्रल वेरायटील रिलीज कमेटी से मान्यता मिली। यह वैज्ञानिकों के वर्षो के शोध उपलब्धियों की पहचान है। इस उपलब्धि से जुड़े सभी वैज्ञानिकों का प्रयास सराहनीय है। आगे भी फसल प्रभेद एवं तकनीकी विकास में पुनः खोज से जुड़ी शोध में निरंतरता बनाये रखने की आवश्यकता है।

रबी फसलों के आच्‍छादन में विस्‍तार चुनौती

बैठक की अध्यक्षता कुलपति डॉ ओंकार नाथ सिंह ने कहा कि कृषि विश्वविद्यालय के शोध के क्षेत्र में यह वर्ष उपलब्धियों का रहा है। विवि के 11 नये किस्मों को मान्यता मिली। तीसी के 3 हजार से अधिक जर्म प्लाज्म संरक्षण में सफलता, गिलोय के चिन्हित 30 जर्म प्लाज्म को राष्ट्रीय पहचान एवं विवि के उत्पाद को पहली बार पेटेंट मिला। राज्य में रबी फसलों के आच्छादन में विस्तार कृषि वैज्ञानिकों के लिए सबसे बड़ी चुनौती है। राज्य की कृषि पारिस्थितिकी, मौसम एवं जलवायु, सिंचाई साधन, भूमि का प्रकार एवं भूमि की समस्याओं पर निरंतर शोध चल रहा है। ‘काम्पेंडीयम ऑफ टेक्नोलॉजीज’ नामक पुस्तक में विवि द्वारा विकसित राज्य के उपयुक्त छोटे एवं बड़े कृषि तकनीकी का समावेश है, जो कृषि रणनीति बनाने एवं कृषि हितकारकों के लिए मिल का पत्थर साबित होगी।

विवि के फसल किस्‍मों को प्राथमिकता दे

परिषद् के एक्सपर्ट सह आनुवांशिकी एवं पौधा प्रजनन के पूर्व अध्यक्ष डॉ जेडए हैदर ने किसानों के हित में राज्य सरकार से विवि द्वारा विकसित फसल किस्मों को प्राथमिकता देने की बात कही। सीड चैन में शामिल करने और दो वर्ष पहले अग्रिम बीज मांग पत्र भेजने की बात कही। परिषद् के एक्सपर्ट पूर्व अध्यक्ष (एग्रोनोमी) डॉ आर ठाकुर ने झारखंड कृषि की समस्या, संभावना एवं समाधान पर प्रकाश डाला।

पुस्‍तकों का विमोचन किया गया

कृषि सचिव ने निदेशालय अनुसंधान द्वारा प्रकाशित ‘रबी रिसर्च हाइलाइट्स – 2021’ और विवि द्वारा विकसित 150 से अधिक तकनीकी से सबंधित ‘काम्पेंडीयम ऑफ टेक्नोलॉजीज’ नामक पुस्तक का विमोचन किया। नये फसल किस्मों के विकास से जुड़े प्लांट ब्रीडर डॉ जेडए हैदर, डॉ सोहन राम, डॉ मनिगोपा चक्रवर्ती, डॉ नीरज कुमार, डॉ नूतन वर्मा, डॉ सीएस महतो, डॉ अरुण कुमार, डॉ सूर्य प्रकाश एवं डॉ एएम अंसारी को मोमेंटो, सर्टिफिकेट एवं शाल प्रदान कर सम्मानित किया।

वैज्ञानिकों को सर्टिफिकेट से सम्मानित किया

बैठक में फसल किस्म विकास में एग्रोनोमी, कीट एवं रोग विभाग के सहयोगी वैज्ञानिकों में डॉ पीके सिंह, डॉ एस कर्मकार, डॉ नरेन्द्र कुदादा, डॉ रविन्द्र प्रसाद, डॉ एचसी लाल, डॉ एमके वर्णवाल सहित 20 वैज्ञानिकों को सर्टिफिकेट से सम्मानित किया गया।

रबी शोध कार्यक्रमों की उपलब्धि बताई

स्वागत करते हुए डायरेक्टर ऑफ रिसर्च डॉ अब्दुल वदूद ने रबी शोध कार्यक्रमों की उपलब्धियों पर प्रकाश डाला। कहा कि मौसम में परिवर्तन, खरीफ फसलों की बुआई में देरी एवं सीमित सिंचाई साधन आदि बातें रबी फसलों की खेती में सबसे बड़ी बाधा है। कृषि सचिव द्वारा गठित कमेटी ने हाल के बैठक में राज्य के उपयुक्त 15 फसल किस्मों/ तकनीकी को चिन्हित किया है। इसमें विवि की 4 नई फसल किस्म है। परिषद् की बैठक में इसकी अनुशंसा प्रदान की जाएगी।

भावी रबी शोध कार्यक्रमों को रखा

परिषद् के तकनीकी सत्र में डॉ रमेश कुमार ने कृषि मौसम एवं पर्यावरण विज्ञान, डॉ सोहन राम ने आनुवांशिकी एवं पौधा प्रजनन, डॉ डीके शाही ने मृदा विज्ञान एवं कृषि रसायन, डॉ एसके पाल ने एग्रोनोमी, डॉ पीके सिंह ने कीट विज्ञान, डॉ एन कुदादा ने पौधा रोग, डॉ संयत मिश्र ने उद्यान, डॉ उत्तम कुमार ने कृषि अभियंत्रण की और क्षेत्रीय अनुसंधान केन्द्रों के सह निदेशकों ने रबी शोध कार्यक्रमों की उपलब्धियों एवं भावी रबी शोध कार्यक्रमों को रखा। परिषद् की बैठक में देर शाम तक चली। बैठक में डॉ जीएस दुबे, डॉ आरपी सिंह के आलावा विभिन्न विभागों के वैज्ञानिक, क्षेत्रीय अनुसंधान केन्द्रों एवं कृषि विज्ञान केन्द्रों के वैज्ञानिक भी मौजूद थे।