गंगा नदी के निचले हिस्सों में पानी की गुणवत्ता को लेकर अध्‍ययन, बड़ा खुलासा

देश नई दिल्ली
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नई दिल्‍ली। वैज्ञानिकों के एक दल ने गंगा नदी के निचले हिस्सों में पानी की गुणवत्ता को अध्‍ययन किया। इसमें चिंताजनक खुलासा हुआ है। मनुष्‍य के तेजी से बढ़ते दबाव और मानवजनित गतिविधियों के परिणामस्वरूप गंगा नदी में अन्य प्रकार के प्रदूषकों के साथ-साथ नगरपालिका और औद्योगिक सीवेज के अशोधित कचरे को छोड़ दिया जाता है।

कोलकाता जैसे महानगर के करीब, विशेष रूप से गंगा नदी के निचले हिस्से, मानवजनित कारकों, मुख्यतः नदी के दोनों किनारों पर तीव्र जनसंख्या दबाव के कारण बहुत अधिक प्रभावित हैं। नतीजतन, गंगा नदी के निचले हिस्से में नगरपालिका और औद्योगिक सीवेज के अशोधित कचरे के बहने में उल्लेखनीय वृद्धि हुई है। इसके परिणामस्‍वरूप अनेक अद्वितीय और जैव विविधता पारिस्थितिक तंत्र जैसे सुंदरबन मैनग्रोव और गंगा में रहने वाली लुप्तप्राय करिश्माई प्रजातियों जैसे डॉल्फिन के लिए खतरा उत्‍पन्‍न हो गया है।

आईआईएसईआर कोलकाता में इंटीग्रेटिव टैक्सोनॉमी एंड माइक्रोबियल इकोलॉजी रिसर्च ग्रुप (आईटीएमईआरजी) के प्रोफेसर पुण्यश्लोक भादुड़ी के नेतृत्व में यह काम किया। इस दौरान टीम ने गंगा के स्वास्थ्य की स्थिति का आकलन करने के लिए जैविक प्रॉक्सी के साथ घुलित नाइट्रोजन के रूपों सहित पर्यावरण के प्रमुख परिवर्ती कारकों की गतिशीलता को समझने के लिए दो वर्षों में गंगा नदी के निचले हिस्सों के 50 किलोमीटर के हिस्से के साथ 59 स्टेशनों को शामिल करते हुए नौ स्‍थानों की निगरानी की। वैज्ञानिक भार की एक प्रमुख इकाई मीट्रिक से उस जगह का डब्ल्यूक्यूआई लेकर आए हैं, जो गंगा नदी के निचले हिस्से के स्वास्थ्य और पारिस्थितिक परिणामों को समझने में मदद करता है।

विज्ञान और प्रौद्योगिकी विभाग (डीएसटी)-जल प्रौद्योगिकी पहल ने इस प्रमुख अध्ययन को करने के लिए समूह का समर्थन किया है जो हाल ही में ‘एनवायरनमेंट रिसर्च कम्‍युनिकेशंस’ पत्रिका में प्रकाशित हुआ है।

उनके अध्ययन से पता चला है कि नदी के इस खंड का डब्‍ल्‍यूक्‍यूआई मूल्‍य 14-52 के बीच था। नमूने लेने का मौसम होने के बावजूद लगातार बिगड़ रहा था। उन्होंने प्रदूषकों के प्रकार के साथ बिंदु स्रोत की भी पहचान की है। विशेष रूप से नाइट्रोजन के 50 किमी खंड के साथ बायोटा पर प्रभाव के साथ प्रभावी नदी बेसिन प्रबंधन के लिए तत्काल हस्तक्षेप की आवश्यकता है।

इस अध्ययन के निष्कर्ष सेंसर और स्वचालन के एकीकरण के साथ-साथ गंगा नदी के निचले हिस्से की दीर्घकालिक पारिस्थितिक स्वास्थ्य निगरानी के लिए महत्वपूर्ण होंगे।