- झारखंड के प्रसिद्ध फोक बैंड ‘सजनी’ ने अंतिम दिन के शो में मचाया धूम
जमशेदपुर। टाटा स्टील फाउंडेशन द्वारा आयोजित अखिल भारतीय जनजातीय सम्मेलन ‘संवाद’ का आठवां संस्करण शुक्रवार को संपन्न हो गया। देश भर के आदिवासी समुदाय इस सम्मेलन में एकजुट हुए। झारखंड के प्रसिद्ध फोक बैंड ‘सजनी’ ने शो में धूम मचाया।
अंतिम दिन वर्ष 2021 के लिए संवाद फेलोशिप की घोषणा की गई। संवाद फेलोशिप क्रिटिकल गैप फंडिंग प्रदान करती है। अपने फेलो को बेहतर इनपुट प्रदान करने के लिए राष्ट्रीय और अंतरराष्ट्रीय स्तर पर प्लेटफॉर्म देने की दिशा में भी काम करता है।
संवाद में अंतिम दिन चर्चा का विषय ‘पुनर्कल्पना किसे करनी चाहिए?’ था। चर्चा इस बात पर केंद्रित थी कि लोगों को अपना लक्ष्य प्राप्त करने के लिए अपने डर और अन्य बाधाओं से कैसे बाहर आना चाहिए। यह सत्र ऑनलाइन के साथ-साथ ऑफलाइन भी आयोजित किया गया। सौरव राय (चीफ, कॉर्पोरेट सोशल रिस्पांसिबिलिटी) ने कहा कि ‘संवाद’ के माध्यम से हमने उन आकांक्षाओं को सुना और समझा, जिन्हें चुनौतियों को बावजूद समुदायों को एक पड़ाव से दूसरे पड़ाव तक ले जाने का काम जारी रखना है। हम प्रतिभागी और दर्शकों का आभार व्यक्त करते हैं, जो शारीरिक रूप से और ऑनलाइन प्लेटफॉर्म के माध्यम से दुनिया के कोने-कोने से जुड़े और इस सम्मेलन को सफल बनाने में हमारी मदद की।
संवाद फेलोशिप-2017 में संवाद इकोसिस्टम के तहत सृजित एक पहल है, जो इस इकोसिस्टम के एक मुख्य व मूल उद्देश्य ‘दस्तावेजीकरण’ के माध्यम से विलुप्तप्राय ज्ञान और वैश्विक दृष्टिकोण के एक मूर्त रूप को संरक्षित करना है। फेलोशिप उन पहल/विचारों का समर्थन करता है, जो आदिवासी संस्कृतियों से किसी कम ज्ञात स्वदेसी प्रथा व अभ्यासों के संरक्षण की दिशा हैं, जो कमजोर हैं और किसी बड़ी संरक्षण पहल या प्रयास का हिस्सा नहीं हैं और इस प्रकार उनके विलुप्त होने का खतरा है। उनके विलुप्त होने का मतलब उस विशेष समुदाय की विशिष्ट पहचान का नुकसान और इस प्रकार हमारे देश की संस्कृतियों के असंख्य मिश्रण की सुंदर विविधता के एक हिस्से का नुकसान होगा। सांस्कृतिक विचारों की विविधता के साथ इसकी यात्रा बेहद रोमांचक रही है। फेलोशिप इस उद्देश्य को पूरा करने के लिए कुछ प्रारंभिक वित्तीय सहायता और सलाह प्रदान करता है।
इस वर्ष ये फेलोशिप से सम्मानित
1. अमाबेल सुसंगी (मेघालय की खासी जनजाति की 26 वर्षीय महिला) : अमाबोली पनार उप-जनजाति से है। उनके प्रोजेक्ट में म्यूजिकल नोटेशंस का दस्तावेजीकरण और अभिभावकों व परिवारों के लिए खासी व अंग्रेजी भाषाओं में खासी जनजाति की लोरियों का प्रचार-प्रसार करना शामिल है।
2. प्रमोद बाजीराव काले (महाराष्ट्र के चरण पारधी जनजाति के 31 वर्षीय पुरुष) : उनका इरादा, अपने शोध के माध्यम से महाराष्ट्र राज्य में स्थित पारधी जनजाति की भाषा को बढ़ावा देना और भाषा के अध्ययन के माध्यम से समाज के विकास में मदद करना है।
3. मकास बाबिसन (मणिपुर से चोथे जनजाति के 25 वर्षीय पुरुष) : उनका विचार चोथे देसी व्यंजनों को इसकी प्रथागत प्रासंगिकता के साथ दस्तावेजीकरण और संरक्षण की दिशा में काम करना है।
4. डॉ डेविड हैनेंग (नागालैंड से कुकी जनजाति के 32 वर्षीय पुरुष) : वे नागालैंड की कुकी जनजाति की लोक कथाओं को एक पुस्तक के रूप में दस्तावेज कर संरक्षित करना चाहते हैं।
5. आमना खातून (उत्तराखंड की वन गुज्जर जनजाति की 30 वर्षीय महिला) : उनके शोध का क्षेत्र बदलते समय में वन गुज्जरों के खानाबदोश जीवन पर केंद्रित है। इसमें वन गुज्जर महिलाओं की निगाह से स्वदेशी ज्ञान, संस्कृति परंपराओं और अनुभवों को देखने वाली सामुदायिक महिलाओं की कहानियांं का समावेश भी है।
6. अनुरंजन किड़ो (झारखंड की खरिया जनजाति के 26 वर्षीय पुरुष) : उनका प्रोजेक्ट आइडिया ‘डिजिटल माध्यम से खड़िया लोक गीत और लोक कथाओं का दस्तावेजीकरण और संरक्षण’ पर केंद्रित है।
7. टोकालो लीलाधर (तेलंगाना से चेंचू जनजाति के 27 वर्षीय पुरुष) : उनकी खोज है कि ‘हमारे भोजन को पहचानें; हमारे पूर्वज क्या हैं, और यह सुनिश्चित करने के लिए अपनी जड़ों की ओर वापस जाएं कि हमारी आने वाली पीढ़ियां इनका सेवन करें और स्वस्थ जीवन जियें।‘
8. कुवेथिलु थुलो (नागालैंड से चाकेसांग जनजाति की 26 वर्षीय महिला) : उनके प्रोजेक्ट विचार ‘नागालैंड के फेक अंतर्गत फुसाचोडु गांव में ‘मेरिट मोनोलिथ के पर्व का संरक्षण’ पर केंद्रित है।