- कुलपति एवं वैज्ञानिकों ने प्रदर्शन को देखा
रांची। बिरसा कृषि विश्वविद्यालय में चेन्नई के गरुदा एयरोस्पेस प्राइवेट लिमिटेड द्वारा ड्रोन से धान फसल पर कीटनाशी और कीट व्याधि के छिड़काव का प्रदर्शन किया गया। मौके पर कुलपति डॉ ओंकार नाथ सिंह ने ड्रोन से कृषि कार्य की बारीकियों को जाना। वैज्ञानिकों ने भी इसे देखा।
मौके पर विवि परिसर में लगे धान फसल के प्रायोगिक फार्म में ड्रोन से फफूंदनाशी रसायन का छिड़काव किया गया। छिड़काव की दर चार एकड़ प्रति घंटे रही। दो घंटे तक ड्रोन हवा में रहा। कृषि विश्वविद्यालय में इस तकनीक का प्रदर्शन पहली बार किया गया। मौके पर विवि के अनेक वैज्ञानिक, आसपास के गांवों के किसान और आकस्मिक श्रमिक भी मौजूद थे।
मौके पर ई डीके रूसिया ने बताया गया कि ड्रोन के माध्यम से अब विभिन्न फसलों में खर-पतवारनाशी और फफूंदनाशी रसायन का आसानी से छिड़काव संभव हो गया है। इस तकनीक से ना सिर्फ श्रम और पैसे की बचत की जा सकती है, बल्कि 30 से 40 फीसदी तक रसायन की भी बचत होती है।
पौधा रोग वैज्ञानिक डॉ एचसी लाल ने कहा कि ड्रोन तकनीकी से एक दिन में 25 से 30 एकड़ में लगी फसल पर कीटनाशी और कीट व्याधि का छिड़काव किया जा सकता है। फसल लगे खेतों में बड़े पैमाने पर कीट व्याधि के प्रकोप होने पर यह काफी कारगर साबित हो सकता है। इसके उपयोग से कम समय एवं कम श्रम शक्ति से अधिक क्षेत्र में छिड़काव संभव है। रसायनों से दूरी की वजह से मानव स्वास्थ्य पर प्रभाव भी नहीं पड़ता है।
कुलपति डॉ ओंकार नाथ सिंह ने कहा कि कृषि कार्य को आसान बनाने की दिशा में लगातार प्रयास जारी है। अब कृषि कार्यो में आधुनिक कृषि यंत्रों का काफी उपयोग हो रहा है। खेती कार्य में ड्रोन का उपयोग कोई नई बात नहीं है। विदेशों में यह तकनीक काफी प्रचलित है। इसका प्रयोग वर्षो पहले से हो रहा है। दक्षिण भारतीय राज्यों में धीरे-धीरे यह तकनीक प्रचलित हो रही है। किसान अब खेती में ड्रोन और रोबोट तकनीक का फायदा ले रहे हैं। ड्रोन से छिड़काव के अच्छे परिणाम देखने को मिले है। खासकर ड्रोन का प्रयोग ऊंचाई वाले स्थान और ऐसे क्षेत्र जहां माउंटेड स्प्रयेर आदि नहीं जा सकती है, वहां विशेष रूप से फायदेमंद साबित हो सकता है। खेतों में बड़े पैमाने पर कीट-व्याधि का प्रकोप होने पर यह तकनीक बेहतर साबित हो सकती है।
कुलपति ने कहा कि प्रदेश में इस तकनीक के उपयोग पर वैज्ञानिकों से विमर्श किया जायेगा। प्रदेश में इसकी उपयोगिता पर शोध ट्रायल किये जाने की आवश्यकता है। राज्य के अन्य जिलों के किसानों के बीच इस तकनीकी का प्रदर्शन होना जरूरी है।