
- झारखंड फाइलेरिया उन्मूलन के लिए प्रतिबद्ध : डॉ एसएन झा
- साल में केवल एक बार दवाएं खाएं, फाइलेरिया से मुक्ति पायें
रांची। झारखंड सरकार फाइलेरिया रोग के उन्मूलन के लिए प्रतिबद्ध है। इसी क्रम में राज्य सरकार द्वारा फाइलेरिया से प्रभावित सरायकेला, जामताड़ा, लातेहार और पलामू में 26 जुलाई से मास ड्रग एडमिनिस्ट्रेशन (एमडीए) कार्यक्रम प्रारंभ किया जा रहा है। फाइलेरिया के प्रति लोगों में जागरुकता बढाने और सामुदायिक सहभागिता लाने में मीडिया की महत्वपूर्ण भूमिका को देखते हुए स्वास्थ्य विभाग और ग्लोबल हेल्थ स्ट्रेटजीज द्वारा अन्य सहयोगी संस्थाओं विश्व स्वास्थ्य संगठन एवं प्रोजेक्ट कंसर्न इंटरनेशनल के साथ समन्वय स्थापित करते हुए शनिवार को एक वर्चुअल मीडिया कार्यशाला का आयोजन किया गया।
कार्यशाला में झारखंड के राज्य कार्यक्रम पदाधिकारी (वेक्टर जनित रोग नियंत्रण कार्यक्रम) डॉ एसएन झा ने बताया कि वेक्टर जनित रोगों पर नियंत्रण पाने के लिए राज्य सरकार प्रतिबद्ध है। इसी प्रतिबद्धता के फलस्वरूप राज्य सरकार द्वारा राष्ट्रीय उन्मूलन कार्यक्रम के अंतर्गत 26 जुलाई से 30 जुलाई तक सरायकेला, जामताड़ा, लातेहार एवं पलामू जिलों में मास ड्रग एडमिनिस्ट्रेशन (एमडीए) कार्यक्रम प्रारंभ किया जा रहा है।
मास ड्रग एडमिनिस्ट्रेशन गतिविधियों का संचालन भारत सरकार के दिशा-निर्देशों के अनुसार कोविड-19 के मानकों का पालन करते हुए किया जाएगा। डॉ झा ने बताया कि इस कार्यक्रम में सभी वर्गों के लाभार्थियों को फाइलेरिया से सुरक्षित रखने के लिए डीईसी एवं अल्बंडाज़ोल की निर्धारित खुराक, स्वास्थ्यकर्मियों द्वारा घर-घर जाकर, अपने सामने मुफ्त खिलाई जाएगी। दवाओं का वितरण बिलकुल भी नहीं किया जायेगा। इन दवाओं का सेवन खाली पेट नहीं करना है। दो वर्ष से कम उम्र के बच्चों, गर्भवती महिलाओं और अति गंभीर रूप से बीमार व्यक्तियों को फाइलेरिया रोधी दवाएं नहीं खिलाई जाएगी।
डॉ झा ने बताया कि फाइलेरिया रोधी दवाएं पूरी तरह सुरक्षित है। रक्तचाप, शुगर, अर्थराइटिस या अन्य सामान्य रोगों से ग्रसित व्यक्तियों को भी ये दवाएं खानी है। मीडिया के साथ संवाद करते समय उन्होंने एक प्रश्न के उत्तर में बताया कि राज्य में हाइड्रोसील के लगभग 17000 एवं लिम्फेडेमा के 39000 मरीज हैं।
कार्यशाला में विश्व स्वास्थ्य संगठन के राज्य एनटीडी समन्वयक डॉ अभिषेक पॉल ने बताया कि फाइलेरिया या हाथीपांव रोग, सार्वजनिक स्वास्थ्य की गंभीर समस्या है। यह रोग मच्छर के काटने से फैलता है। विश्व स्वास्थ्य संगठन (डब्लूएचओ) के अनुसार फाइलेरिया, दुनिया भर में दीर्घकालिक विकलांगता के प्रमुख कारणों में से एक है। भारत में लगभग 2.3 करोड़ व्यक्ति इससे संक्रमित हैं और 65 करोड़ लोग इससे प्रभावित होने के खतरे में है। डॉ पॉल ने कहा कि अगर व्यक्ति लगातार 5 साल तक फाइलेरिया रोधी दवा खा लेता है तो पूरे जीवन उसे फ़ाइलेरिया रोग होने की सम्भावना समाप्त हो जाती है।
प्रोजेक्ट कंसर्न इंटरनेशनल के मोहम्मद कलाम खान ने बताया कि फाइलेरिया रोग के उन्मूलन के लिए उनकी संस्था स्वयं सहायता समूह, पंचायतों के साथ, विद्यार्थियों और शिक्षकों के साथ मिलकर कार्य करती है। उनके माध्यम से लोगों को प्रेरित करती है। मास ड्रग एडमिनिस्ट्रेशन कार्यक्रम में आईईसी और सोशल मोबिलाइजेशन के माध्यम से समुदाय के हर स्तर पर जागरुकता फैलाने में बहुत सहायता मिलती है।
राज्य की आईईसी परामर्शदात्री नीलम कुमार ने कहा कि सामान्य लोगों को इन दवाओं के खाने से किसी भी प्रकार के दुष्प्रभाव नहीं होते हैं। अगर किसी को दवा खाने के बाद उल्टी, चक्कर, खुजली या जी मिचलाने जैसे लक्षण होते हैं तो यह इस बात का प्रतीक हैं कि उस व्यक्ति के शरीर में फाइलेरिया के कृमि मौजूद हैं। दवा खाने के बाद से ऐसे लक्षण उत्पन्न होते हैं। सामान्यतः ये लक्षण स्वतः समाप्त हो जाते है, परंतु ऐसी किसी भी परिस्थिति के लिए प्रशिक्षित रैपिड रिस्पॉन्स टीम तैनात है। उन्हें उपचार के लिए तुरंत बुलाया जा सकता है। इसके साथ ही उन्होंने राज्य सरकार द्वारा विकसित की गयी प्रचार-प्रसार सामग्री पर भी विस्तृत चर्चा की। प्रतिभागियों को समझाया कि इसके माध्यम से फाइलेरिया से संबंधित संदेशो को समुदाय के अंतिम छोर तक कैसे पहुंचाया जा सकता है।
मीडिया सहयोगियों से संवाद करते समय कार्यक्रम से जुड़ी उनकी जिज्ञासाओं और प्रश्नों का उत्तर कार्यक्रम से जुड़े विशेषज्ञों द्वारा दिया गया। इस सत्र के दौरान, ग्लोबल हेल्थ स्ट्रेटजीज के प्रतिनिधि अनुज घोष ने कहा कि स्वास्थ्य से जुड़े हर कार्यक्रम में मीडिया की बहुत महत्वपूर्ण भूमिका होती है। इस कार्यशाला में स्वास्थ्य विभाग, झारखंड के अधिकारी, फाइलेरिया से प्रभावित जिलों के स्वास्थ्य अधिकारी और मीडिया के प्रतिनिधियों ने प्रतिभागी लिया।