नयी दिल्ली। वर्ल्ड यूनिवर्सिटी ऑफ डिजाइन (डब्ल्यूयूडी) में प्रख्यात कलाकार नरेश कपूरिया आये। यहां उनकी कलाकृतियों की प्रस्तुती की गई। इस मौके पर वह स्वयं मौजूद थे। उनके साथ कला समालोचक काजी राघिब भी थे।
इस अवसर पर नरेश कपूरिया ने कबीरदास के दोहे का जिक्र किया, ‘लकड़ी जल कोयला भई, और कोयला जल भयो राख, मैं पापन ऐसी जली, जो कोयला भई न राख।’ इसका अर्थ है कि लकड़ी और कोयला पूरी तरह जल जाने के बाद भी काम आते हैं। इंसानों की तरह नहीं कि जिनका मन इच्छाओं से भरा हुआ होता है, लेकिन वे किसी के काम नहीं आते।
कलाकार को सम्मानित करने के बाद डॉ संजय गुप्ता ने कहा कि कला ऐसी चीजें बोल सकती है, जो हमेशा शब्दों से नहीं कही जा सकती हैं। अपनी कला के माध्यम से कपूरिया ने हम शिक्षकों की भावनाओं को जगाने और प्रमाणित करने में मदद की है। दुनिया को एक अलग नजरिए से देखने के लिए हमें प्रेरित किया है। मैं अपने काम को साझा करने के लिए उनका धन्यवाद देता हूं, जो कलाकारों की कई पीढ़ियों को प्रेरित करेगा।
दिल्ली में 1952 में जन्मे नरेश कपूरिया का काम साधारण वर्गीकरण की श्रेणी में नहीं रखा जा सकता है। उन्होंने त्रिवेणी कला संगम के साथ अपने काम-काजी जुड़ाव से स्वत: ही कला सीख ली थी। मुख्य रूप से खुद से सीखे कलाकार ने चार्ल्स वालेस इंडिया ट्रस्ट अवार्ड के साथ लंदन में विंबलडन कॉलेज ऑफ आर्ट में रेजीडेंसी के माध्यम से ज्ञान आगे बढ़ाया। इससे उन्हें अपनी खुद की एक शैली विकसित करने में मदद मिली, जिसे उन्होंने मल्टी मीडिया और कला के कई क्षेत्रों में काम कर परिश्रम से आगे विकसित किया है।