यूसुफ खाना ऐसे बने दिलीप कुमार, कभी बेचते थे सैंडविच

मनोरंजन
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मुंबई। बॉलीवु़ड के ‘ट्रैजेडी किंग’ का असली नाम मोहम्मद यूसुफ खान था लेकिन, दुनिया में उन्‍हें पहचान मिली अपने फिल्‍मी नाम दिलीप कुमार से। उन्‍होंने मशहूर अदाकारा देविका रानी के कहने पर उन्‍होंने फिल्‍मों के लिए अपना नाम बदला था। दिलीप साहब एक बार काम के सिलसिले में नैनीताल गए। वहां वो देविका रानी से मिले।

देविका ने यूसुफ को सलाह दी कि उन्हें फिल्मों में जाना चाहिए। लेकिन उस वक्त उन्होंने देविका की बात अनसुनी कर दी। देविका से मिलने के कुछ समय बाद दिलीप मुंबई की लोकल ट्रेन में सफर कर रहे थे। तभी उन्हें डॉ. मसानी मिले। डॉक्टर साहब ने उन्हें देखा और वही बात बोल दी जो देविका ने बोली थी। इस बार ये बात दिलीप को समझ में आ गई और वह देविका रानी के स्टूडियो पहुंच गए। यहां उनको नौकरी मिल गई। तनख्‍वा थी 1250 रुपये, जो उस समय के हिसाब से बहुत अधिक थी।

इस वक्त तक इनका नाम दिलीप नहीं मोहम्मद यूसुफ खान था। देविका रानी को ये नाम हीरो वाला नहीं लगता था। तो उन्होंने अपने आसपास बैठे राइटरों से यूसुफ के लिए नाम सुझाने के लिए कहा, तो दिलीप कुमार नाम पर सहमति बनी। दिलीप की फिल्म ‘ज्वार भाटा’ 1944 में रिलीज़ हुई, लेकिन फिल्म नहीं चली। उनकी दूसरी फिल्म थी ‘प्रतिमा’ (1945)। ये भी फ्लॉप रही। इसके बाद 1946 में डायरेक्टर नितिन बोस की फिल्म ‘मिलन’ आई, जो फिल्म हिट हो गई। दिलीप कुमार ने इसके बाद ‘जुगनू’, ‘शहीद’, ‘अंदाज’, ‘जोगन’, ‘दाग’, ‘आन’, ‘देवदास’, ‘नया दौर’ और ‘मुगल-ए-आजम’ जैसी सुपरहिट फिल्में की। वे 25 साल की उम्र में ही हिन्‍दी फिल्‍मों के नंबर वन एक्टर बन गए। दिलीप 8 फिल्म फेयर अवॉर्ड से नवाजे गए, इसके अलावा 19 बार फिल्मफेयर नॉमिनेशन में आए। दिलीप कुमार को दादा फाल्के अवॉर्ड, पद्मभूषण अवॉर्ड और सर्वोच्च सम्मान भी मिल चुका है। इसके अलावा, उन्हें पाकिस्तान के सर्वोच्चा नागरिक सम्मान भी मिला।

ऐसी थी फिल्‍मों से पहले की जिंदगी
दिलीप के पिता का नाम लाला गुलाम सरवर था, उन्होंने फल बेचकर परिवार का गुजारा किया। दिलीप 12 बहन-भाई थे, इसलिए घर चलाने में कई दिक्कतों का सामना करना पड़ता था। देश के बंटवारे के बाद दिलीप का पूरा परिवार मुंबई आ गया। इनके पास न तो घर था न पैसे। इसके बाद दिलीप ने पुणे के एक आर्मी क्लब में सैंडविच स्टॉल पर नौकरी करनी शुरू कर दी। सैंडविच स्टॉल काम करने के लिए दिलीप को 1 रुपए रोजाना मिलते थे। लेकिन जिंदगी में अपनी मेहनत के दम पर उन्होंने अपने आप को इस मुकाम तक पहुंचा दिया।