जीने के लिए शुद्ध हवा के साथ रोजगार भी देते हैं वन

विचार / फीचर
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  • पर्यावरण दिवस पर विशेष आलेख

डॉ एमएच सिद्दीकी

एक पुरानी कहावत है कि आम के आम, गुठली के दाम। यह तो सभी जानते ही हैं कि वनों का पर्यावरण संतुलन में अत्यधिक महत्व है। पर्यावरण सुरक्षा के लिए यदि हम वन लगाएं तो एक ओर लोगों शुद्ध वातावरण में जीने का मौका मिलता है, साथ ही मुनाफा कमाने का भी अवसर प्राप्त होता है। ग्रामीण क्षेत्रों में वनों का महत्व और भी अधिक इन कारणों से हो जाता है कि एक बड़ी ग्रामीण आबादी वनों पर अपनी आर्थिक संपन्नता के लिए निर्भर करती है। लोग फलदार के साथ अन्य प्रकार के पेड़ लगाकर रोजगार प्राप्त कर सकते हैं।

इंडिया स्टेट ऑफ फॉरेस्ट रिपोर्ट के अनुसार भारत का 28.82 फीसदी भू-भाग वन से आच्छादित है। देश में सामाजिक वानिकी के तहत कई तरह के कार्यक्रम की शुरुआत की गई है। इसका लाभ आम ग्रामीण उठा सकते हैं। सामाजिक वानिकी के तहत इन योजनाओं का लाभ लेकर पर्यावरण की सुरक्षा कर सकते हैं। साथ ही, रोजगार भी अर्जित कर सकते हैं।

कम कीमत पर नर्सरियों से शीशम, आम, सागवान, गम्हार, सखुवा समेत अन्य प्रकार के पौधे प्राप्त किए जा सकते हैं। सामान्य प्रजाति के इन पौधों को गांवों में सार्वजनिक स्थलों पर लगाया जाएं, तो इससे गांव के पर्यावरण में उल्लेखनीय बदलाव लाया जा सकता है। साथ ही, आय का बेहतर स्त्रोत बनाया जा सकता है। यदि इन पेड़ों के पौधों को कुछ एकड़ में लगा दिया जाता है, तो कुछ सालों में इसके लकड़ी से अच्छी आय प्राप्त की जा सकती है।

पूरा देश ऑक्‍सीजन की कमी से जूझ रहा है। रूस, ब्रिटेन, फ्रांस, जर्मनी आदि अनेकों देश मोबाइल ऑक्‍सीजन प्‍लांट्स आदि को एयरलिफ्ट कर भेज रहे है। आज मानव जीवन में सबसे अहम यह है कि हमारे वातावरण में कितनी ऑक्‍सीजन है। जब तक पर्यावरण में ऑक्‍सीजन नहीं होगी, तब तक किसी भी प्‍लांट में जरूरत के लिए ऑक्‍सीजन का उत्‍पादन नहीं कर सकते हैं। इसलिए बहुत जरूरी है कि हम पेड़ों को लगाने पर जोर दें।

हमारे देश में सर्व सुलभ पीपल सबसे अधिक ऑक्सीजन देने वाला का पेड़ है। पीपल की तरह नीम, बरगद, तुलसी, बरगद, अशोक, जामून आदि के पेड़ भी अधिक मात्रा में ऑक्सीजन देते हैं। बांस का पेड़ हवा को फ्रेश करने के काम में आता है। यह अन्य पेड़ों के मुकाबले अधिक ऑक्सीजन छोड़ता है।

इसके अलावा बांस भी आय प्राप्त करने का एक बेहतरीन साधन है। राष्ट्रीय बांस मिशन विभिन्न लाभकारी योजनाओं के तहत बांस लगाने के लिए प्रोत्साहित करता है। बांस लगाने के लिए भूमि का उर्वर होना आवश्यक नहीं होता है, बल्कि यह हर प्रकार की भूमि व बंजर और ऊसर भूमि पर भी लगाया जा सकता है। बांस के पेड़ को बहुत ज्यादा सूर्य की रोशनी की आवश्यकता नहीं होती है। बांस के बने कुर्सी-टेबल, सजावटी समान, रैक, झूले सहित कई प्रकार की सामग्रियों को अच्छे दाम पर बेचा जाता है। इसके अलावा बांस से टोकरी, सूप और दूसरे विविध प्रकार के समान बनाए जाते हैं।

बांस के पेड़ अन्य पेड़ों के मुकाबले 30 फीसदी अधिक ऑक्सीजन छोड़ता है। यह हमारे आस-पास की हवा को साफ एवं शुद्ध करती है, क्योंकि यह वातावरण में मौजूद कार्बन मोनोऑक्साइड, बेंजीन व क्लोरोफॉर्म जैसे तत्वों को नष्ट कर देती है। बांस के माध्यम से प्राकृतिक तौर पर ऑक्सीजन उपलब्धता जीवनदायी साबित हो सकती है। कोरोनाकाल में ऑक्सीजन की किल्लत और विदेशों पर निर्भरता को देखते हुए बांस की महत्ता को समझा जा सकता है।

बांस लोगों का पर्यावरण मित्र है। बांस को औषधीय गुणों की वजह से अनेकों रोगों को दूर करने के उपयोग में लाया जाता है। वैज्ञानिकों के अनुसार बांस के शूट कैंसर रोकने में भी प्रभावी होते हैं। बांस का उपयोग अगरबत्ती,पेंसिल, माचिस, टूथ-पिक, चॉपस्टिक्स आदि में किया जाता है। बरसात में बांस की खेती से किसान अच्छा लाभ कमा सकते हैं। राज्य में बांस उद्यम ग्रामीण स्तर पर लाभकारी साबित हो सकता है।

बिरसा कृषि विश्वविद्यालय के वानिकी संकाय द्वारा बांस की परंपरागत खेती के स्थान पर वैज्ञानिक तरीके से व्यावसायिक खेती को बढ़ावा दिया जा रहा है। बांस की व्यावसायिक खेती, प्रंबंधन एवं मूल्यवर्धन पर रांची, गुमला व लोहरदगा जिलों के किसानों के बीच अनेकों कार्यक्रम चलाये जा रहे है। बांस की व्यावसायिक खेती सबंधी यह कार्यक्रम ग्रामीणों के आय में बढ़ोतरी एवं रोजगार सृजन में कारगार साबित हो रही है। बरसात के मौसम में बांस की खेती से जुड़कर किसान अच्छा लाभ कमा सकते हैं।

डॉ एमएच सिद्दीकी

(लेखकर बिरसा कृषि विश्‍वविद्यालय के डीन, वानिकी हैं)