नई दिल्ली। कोविड-19 की दूसरी लहर के बीच भारतीय नौसेना की दक्षिणी नौसेना कमान के डाइविंग स्कूल ने मौजूदा ऑक्सीजन की कमी को दूर करने के लिए एक ‘ऑक्सीजन रीसाइक्लिंग सिस्टम’ (ओआरएस) डिजाइन किया है। इससे पहले इसी साल 6 मार्च को केवड़िया में संयुक्त कमांडरों के सम्मेलन के दौरान प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी के समक्ष इसके छोटे मॉडल का प्रदर्शन किया गया था। इस सिस्टम का उपयोग नौसेना के जहाजों एवं पनडुब्बियों में इस्तेमाल किए जाने वाले ऑक्सीजन सिलेंडरों का जीवनकाल बढ़ाने के लिए भी किया जा सकता है।
भारतीय नौसेना ने इस सिस्टम की डिजाइन का पेटेंट कराने के लिए प्रक्रिया शुरू कर दी है।प्रवक्ता के अनुसार इस ऑक्सीजन रीसाइक्लिंग सिस्टम (ओआरएस) से मौजूदा ऑक्सीजन सिलेंडरों को दो से चार बार तक रीसाइल किया जा सकता है। दरअसल कोई भी मरीज ग्रहण की गई ऑक्सीजन का केवल एक छोटा सा हिस्सा ही अपने फेफड़ों से अवशोषित करता है, शेष हिस्सा कार्बन डाइऑक्साइड के साथ शरीर बाहर निकाल देता है। शरीर से बाहर निकली ऑक्सीजन का दोबारा इस्तेमाल किया जा सकता है, बशर्ते इसमें शामिल कार्बन डाई ऑक्साइड को हटा दिया जाए। इसके लिए ऑक्सीजन रीसाइक्लिंग सिस्टम में रोगी के ऑक्सीजन मास्क में एक दूसरा पाइप जोड़ा जाता है जो कम दबाव वाली मोटर का उपयोग करके शरीर से निकली कार्बन डाई ऑक्साइड को अलग कर देता है।
उन्होंने बताया कि मास्क के इनलेट पाइप एवं आउटलेट पाइप को नॉन रिटर्न वाल्व के साथ फिट किया जाता है ताकि रोगी की डाईल्यूशन हाईपोक्सिया के प्रति सुरक्षा सुनिश्चित की जा सके। शरीर से निकलने वाली कार्बन डाइऑक्साइड और ऑक्सीजन को बैक्टीरियल वायरल फिल्टर एंड हीट एंड मॉइस्चर एक्सचेंज फ़िल्टर में डाला जाता है, जिससे किसी भी प्रकार की वायरसजनित अशुद्धियां हटाई जा सकें। इस वायरल फिल्ट्रेशन के बाद यह गैसें हाई एफिशिएंसी पर्टीक्युलेट (एचईपीए) फ़िल्टर से होकर गुजरती हैं। इसके बाद स्क्रबर से यह ऑक्सीजन रोगी के फेस मास्क से जुड़े श्वसन पाइप में डाली जाती है, जिससे रोगी को मिलने वाली ऑक्सीजन की गति बढ़ जाती है। इससे रोगी को सिलेंडर से दी जाने वाली ऑक्सीजन के इस्तेमाल में कमी आती है।
प्रवक्ता ने बताया कि ऑक्सीजन रीसाइक्लिंग सिस्टम (ओआरएस) में लगातार हवा का प्रवाह बनाये रखने के लिए कार्बन डाई ऑक्साइड स्क्रबर के आगे मेडिकल ग्रेड पंप फिट किया जाता है, जिससे रोगी को आसानी से सांस लेने में सुविधा होती है। डिजिटल फ्लो मीटर ऑक्सीजन की प्रवाह दर की निगरानी करते हैं और स्वचालित कट-ऑफ लगे होने से ऑक्सीजन का स्तर सामान्य से घटने या कार्बन डाई ऑक्साइड का स्तर बढ़ने पर ओआरएस खुद बंद हो जाता है। हालांकि इस कट-ऑफ की वजह से ऑक्सीजन सिलेंडरकी आपूर्ति प्रभावित नहीं होती है, इसलिए रोगी आसानी से सांस लेता रहता है।
ऑक्सीजन रीसाइक्लिंग सिस्टम का पहला प्रोटोटाइप कुछ ही दिन पहले 22 अप्रैल को बनाया गया था। इसके बाद आईएसओ प्रमाण पत्र लेने के लिए पर्यवेक्षकों की मौजूदगी में दक्षिणी नौसेना कमान में परीक्षण किया गया। इसके बाद नीति आयोग के निर्देशों पर तिरुवनंतपुरम स्थित श्री चित्रा तिरुनल इंस्टीट्यूट फॉर मेडिकल साइंसेज एंड टेक्नोलॉजी (एससीटीआईएमएसटी) के विशेषज्ञों की टीम ने इस प्रणाली का विस्तृत विश्लेषण एवं आकलन किया। एससीटीआईएमएसटी में विशेषज्ञों की टीम ने ऑक्सीजन रीसाइक्लिंग प्रणाली के डिजाइन में कुछ अतिरिक्त संशोधनों के सुझाव भी दिए। दो दिन पहले 18 मई को एससीटीआईएमएसटी से ऑक्सीजन रीसाइक्लिंग सिस्टम (ओआरएस) को प्रारंभिक मूल्यांकन प्रमाण पत्र मिल गया।
प्रवक्ता के अनुसार अब मौजूदा दिशा-निर्देशों के अनुसार क्लीनिकल परीक्षणों के लिए इस प्रणाली को आगे बढ़ाया जा रहा है, जिसके शीघ्र पूरा होने की उम्मीद है। इसके बाद इस सिस्टम का देश में बड़े पैमाने पर उत्पादन किया जा सकेगा। इसमें उपयोग की जाने वाले सभी सामग्री स्वदेशी है और आसानी से उपलब्ध है। देश में ऑक्सीजन की कमी को पूरा करने के अलावा इस सिस्टम का उपयोग पर्वतारोहियों, सैनिकों द्वारा अधिक ऊंचाई पर, एचएडीआर संचालन और जहाज पर नौसेना के जहाजों एवं पनडुब्बियों में इस्तेमाल किए जाने वाले ऑक्सीजन सिलेंडरों का जीवनकाल बढ़ाने के लिए भी किया जा सकता है। ओआरएस को डाइविंग स्कूल के लेफ्टिनेंट कमांडर मयंक शर्मा ने डिजाइन किया है। सिस्टम की डिजाइन का पेटेंट कराने के लिए भारतीय नौसेना ने प्रक्रिया शुरू करके 13 मई को आवेदन भी दिया है।