वायुसेना के पास 400 पायलटों की कमी, ​’उड़ता ताबूत’ ने ले ली 400 की जान

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नई दिल्ली। ​पिछले छह दशकों में वायुसेना के दुर्घटनाग्रस्त होने वाले विमानों में ​सबसे अधिक संख्या रूसी लड़ाकू मिग वेरिएंट की रही है।​​ ​’उड़ता ताबूत’ कहे जाने वाले यह 800 से ज्यादा विमान खुद नष्ट होने के साथ ही 400 से अधिक पायलटों की जान ले चुके हैं​​​।​ यही वजह है कि ​इस वक्त वायुसेना करीब 400 पायलटों की कमी से जूझ रही है।​​ ​भारत के हवाई बेड़े से मिग की विदाई करने के लिए ही ​अगस्त​,​ 1983 में​ ​​​​​एलसीए ​तेजस ​परियोजना को​ मंजूरी दी गई थी लेकिन ​अभी इस योजना के परवान चढ़ने में कई साल बाकी है​​​।​​ तीन दिन पहले पंजाब में मिग बाइसन की दुर्घटना में वायुसेना ने एक और पायलट खो दिया है​।​​  ​

भारतीय वायुसेना ने 1960 में कई अन्य पश्चिमी प्रतिस्पर्धियों के बीच ​रूसी ​मिग-21 खरीदने का विकल्प चुना​ था और 1963 से ​बेड़े में शामिल किये गए।​ ​भारत ने इस विमान का पहली बार 1965 में पाकिस्तान के साथ युद्ध में इस्तेमाल किया। हालांकि 1965 के ​इस युद्ध में मिग-21 ने सीमित भूमिका निभाई, क्योंकि उस समय तक वायुसेना में प्रशिक्षित पायलट भी नहीं थे। ​​​मिग-21 की क्षमताओं को एक बार फिर 1971 के बांग्लादेश मुक्ति संग्राम ​​के दौरान परखा गया। ​1966 से 1984 के बीच 872​ विमानों में से लगभग आधे क्रैश हो गए। दुर्घटनाग्रस्त हुए विमानों में से अधिकांश के इंजनों में आग लग गई या फिर छोटे पक्षियों से टकराकर नष्ट हुए। मिग-21 के लगातार दुर्घटनाग्रस्त होने पर इसे ‘उड़ता ताबूत’ कहा जाने लगा था। ​इन दुर्घटनाओं में 200 से अधिक पायलट और लगभग 50 नागरिक मारे गए।​ 

इसी तरह 1991-2000 की अवधि के दौरान 283 विमान दुर्घटनाएं और ​वायुसेना में 4,418 घटनाएं हुई थीं जिसमें 221 विमान पूरी तरह से नष्ट हो गए और आईएएफ के 100 पायलटों की जान चली गई।​ अप्रैल, 1991 से मार्च, 1997 तक छह साल की अवधि में प्रति 10​ हजार उड़ान घंटों में दुर्घटनाओं की समग्र दर में गिरावट दर्ज की गई थी​ जबकि 1997 से 2000 के बीच ​​84​ दुर्घटनाएं होने से दर में लगातार वृद्धि दर्ज की गई। ​इस अवधि के दौरान भारतीय वायुसेना ने अकेले 38 मिग-21 विमान खो दिए थे। मिग वेरिएंट में दुर्घटनाओं की उच्च दर के कारणों का हवाला देते हुए मंत्रालय ने तर्क दिया था कि आईएएफ का लड़ाकू बेड़ा अत्यधिक मिग आधारित है, इसलिए इनकी लड़ाकू उड़ान में दुर्घटना का जोखिम ज्यादा है।​ ​

आखिरकार 50 वर्षों तक वायुसेना की सेवा में रहने के बाद 11 दिसम्बर, 2013 को इसे रिटायर कर दिया गया।​इसके बाद रूसी कंपनी ने भारतीय वायुसेना के पास बचे 54 मिग-21 विमानों की कई कमियों को दूर करके इसे मिग बाइसन के रूप में अपग्रेड किया।​ ​इस अपग्रेडेड ‘मिग-21 बाइसन’ में बबल कैनोपी और रैपराउंड विंडस्क्रीन, पहले से ज्यादा अधिक सक्षम रडार, दूर तक देखने की क्षमता, बियॉन्ड विजुअल रेंज, मिसाइल से फायर करने की क्षमता है। इनके अलावा कई अन्य संशोधनों ने हवाई जहाज की क्षमता में चार गुना वृद्धि की और इसे शुरुआती एफ-16 वेरिएंट के स्तर तक लाया गया​​।​ इसके बावजूद ​मिग बाइसन​ की दुर्घटनाओं में कमी नहीं आ रही है​​​।​ पिछले पांच साल में 11 मिग बाइसन ​हवा में दुर्घटनाग्रस्त होकर जमीन पर आ चुके हैं​​​।​ इसी साल ​पांच माह के भीतर तीन दुर्घटनाएं सूरतगढ़ (राजस्थान), ग्वालियर और मोगा (पंजाब) में हो चुकी हैं जिसमें दो पायलट मारे गए हैं​।​​ 

भारत के हवाई बेड़े से मिग की विदाई के लिए ही ​अगस्त​,​ 1983 में​ ​​​एलसीए ​तेजस ​परियोजना को​ मंजूरी दी गई थी लेकिन ​भारतीय वायुसेना अभी भी मिग ​बाइसन की 04 स्क्वाड्रन​​ ​संचालित करती है।​ वायुसेना के पास वर्तमान में सिर्फ 30 लड़ाकू ​​स्क्वाड्रन हैं, जब​कि चीन और पाकिस्तान ​के ‘​मिलीभगत​’​ खतरे से निपटने के लिए कम से कम 42 ​​स्क्वाड्रन​ ​​की ​जरूरत है। फ्रांस से ​मिल रहे ​36 राफेल लड़ाकू विमानों ​के अलावा वायुसेना रूस से 21 मिग-29 और 12 सुखोई-30​ एमकेआई की खरीद के लिए आगे बढ़ ​रही। ​वायुसेना को इस साल फरवरी में ​हुए ​हिंदुस्तान एयरोनॉटिक्स के साथ 46,898 करोड़ रुपये के सौदे के तहत 2024-2028 ​तक 83 नए तेजस जेट मिलने की उम्मीद है। पहले ऑर्डर किए गए 40 तेजस जेट विमानों में से आधे से अधिक अब तक भारतीय वायुसेना को ​मिल चुके हैं​​। 

लगातार दुर्घटनाओं में पायलटों को खोने के बाद इस समय ​​भारतीय वायुसेना के पास अधिकृत ताकत के मुकाबले 405 पायलटों की कमी है​​।​ ​सरकार ने इसी साल की शुरुआत में संसद में बताया था कि 2005 के बाद से ​वायुसेना में पायलटों की ताकत 31% ​बढ़ी है​​।​ आंकड़ों के मुताबिक वायुसेना के पास ​2005 में 2,922 पायलट​​ थे जबकि 2021 में 3,834 पायलट​ हो गए हैं​।​ वर्तमान में भारतीय वायुसेना ​के लिए ​पायलटों की संख्या 4,239 स्वीकृत ​है जिसके मुकाबले 3,834 ​पायलट हैं​।​ वायुसेना में पायलटों के प्रशिक्षण के लिए 260 विमानों का उपयोग किया जा रहा है। इनमें पिलाटस पीसी-7 एमके-II, किरण एमकेआई/आईए और हॉक एमके-132 उन्नत जेट ट्रेनर शामिल हैं।