रांची। कोरोना संक्रमण की दूसरी लहर के सूदूर गांवों तक फैलाव को बीएयू कुलपति डॉ ओंकार नाथ सिंह ने कृषि वैज्ञानिक व प्रसार कर्मियों के लिए बड़ी चुनौती कहा है। उन्होंने किसानों से जुड़े वैज्ञानिकों व प्रसार कर्मियों को कोरोना के प्रसार के प्रति सजग, प्रयत्नशील रहने और जागरुकता अभियान चलाने की सलाह दी है।
वैश्विक आपदा कोविड -19 की इस घड़ी में खाद्यान सुरक्षा बड़ी चुनौती साबित हो सकती है। कोरोना की दूसरी लहर में अर्ध शहरी, ग्रामीण और जनजातीय इलाकों की बहुतायत आबादी का जीवन संकट में है। गांवों में कोरोना की चेन को रोकने और गांवों को सुरक्षित बनाये रखने में सबों को सहयोग करना होगा। ग्रामीण अर्थव्यवस्था एवं खाद्यान सुरक्षा के लिए कृषि हितकारकों द्वारा पहल समय की मांग है।
कुलपति बताते है कि राज्य में बहुतायत खेती कार्य खरीफ मौसम में होता है। अभी किसान फसलों के भंडारण, देखरेख एवं बुआई के साथ सब्जी की खेती, खेतों की जुताई व तैयारी में के साथ- साथ ही पशुधन प्रबंधन से भी जुड़े हुए है। ऐसे समय हर एक जिलों में कार्यरत कृषि विज्ञान संस्थान (केवीके) के वैज्ञानिक, शोध वैज्ञानिक और कृषि एवं संबद्ध विभागों के प्रसार पदाधिकारियों की भूमिका किसानों के लिए संजीवनी साबित होगी।
कोरोना प्रकोप से बचाव के लिए ग्रामीणों में कोविड वैक्सीन से लाभ व टीकाकरण के प्रति जागरुकता एवं कोविड नियमों का पालन, बचाव व रोकथाम में सावधानियों एवं सतर्कता के साथ मास्क का उपयोग, सामाजिक दूरी का अनुपालन, साफ-सफाई, कृषि कार्यो में हर 2- 3 घंटे में साबुन से हाथ धोने, कृषि यंत्र का अधिकतम और मानव श्रम का न्यूनतम उपयोग, कृषि यंत्रों को समय-समय पर डिटर्जेंट से साफ करने, परिवारिक सदस्यों से कृषि कार्य एवं बाहरी का प्रवेश वर्जित की सलाह दी जा सकती है। कोरोना से सुरक्षा संबंधी उपाय जैसे सैनिटाइजर, फेस मास्क और शरीर को ढककर रखने, कृषि कार्यो के बाद साबुन से स्नान, खाद्यान एवं फल-सब्जी आदि की लोडिंग और अनलोडिंग में सामाजिक दूरी का पालन को कहा जा सकता है।
पशुपालन के क्षेत्र में भी बचाव एवं सावधानी बताने की जरूरत है। पशुपालकों को पशुओं की देखभाल में मुंह में मास्क लगाने, सेनेटाईजर या साबुन से प्रत्येक घंटे हाथ धोने, पशु फार्म में बाहरी लोंगो का प्रवेश निषेध, पशु स्थल को फीनाईल से धोने, दुध दुहने में हाथों को सेनिटाइज करने और थन को डिटॉल या साबुन के पानी से धोने को कहा जा सकता है। पशुओं को झुंड में नहीं रखने, पशुओं का टीकाकरण और पशुओं की बिक्री में उचित दूरी तथा मृत पशुओं को अन्यत्र गाड़ने को कहा जाना चाहिए।
देश के किसानों ने भूकंप, बाढ़, सूखा, छोटी-मोटी महामारी, आंधी व सूनामी आदि अनेकों सीमित समय की आपदाओं का बखूबी सामना किया है। हालांकि लंबे समय तक चलने वाली कोरोना आपदा की प्रकृति अलग है। केंद्र और राज्य सरकार भी ग्रामीणों की कोरोना समस्याओं के समाधान के लिए गंभीर प्रयास कर रही है। वैज्ञानिक व प्रसार पदाधिकारी एवं अन्य हितकारक प्रत्यक्षण, प्रशिक्षण, किसान गोष्ठी, लीफलेट, प्रसार सामग्री, रेडियो व टीवी और स्थानीय समाचार पत्र आदि माध्यमों से कोरोना से बचाव अभियान को आगे बढ़ा सकते है।