लखनऊ। 23 मई 2021 को उत्तर प्रदेश में 3.26 लाख कोविड-19 के टेस्ट के लिए सैम्पल लिए गये। इसमें केवल 4,844 ही के संक्रमित होने की पुष्टि हुयी। इस तारीख को 3,981 नए पॉजिटिव लोगों के सापेक्ष 11,918 लोग रिकवर हुए। यदि गौर से देखें तो 24 अप्रैल को 38,055 पॉजिटव केस आने के बाद उत्तर प्रदेश में संक्रमितों की संख्या में लगातार गिरावट आती गयी। पिछले 23 दिनों में कोरोना पॉजिटिव लोगों की संख्या 3,10,783 से घटकर 76,700 (23 मई) पर आ गयी। यानि इस अवधि में 2.34 लाख लोग रिकवर हो चुके हैं।
इस तरह से मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने उन विशेषज्ञों की आशंकाओं को गलत साबित कर दिया जिन्होंने यह आशंका जतायी थी कि उत्तर प्रदेश में 30 अप्रैल के बाद पीक आएगा। उन्होंने प्रदेश में संक्रमितों की प्रतिदिन की संख्या का 1 से 1.25 लाख आने की शंका जाहिर करते हुए कहा था कि उत्तर प्रदेश देश का सबसे बड़ा हाटस्पॉट बन सकता है। लेकिन मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने ठोस कार्य योजना बनायी और इसे जमीन पर उतारने के लिए वे स्वयं फील्ड पर उतरे। यहां प्रश्न यह उठता है कि बहुत से राष्ट्रीय और अंतरराष्ट्रीय विशेषज्ञों की इस आशंका का आधार क्या था? मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने आखिर किस प्रकार से इस बार (दूसरी लहर) भी संक्रमण की चेन को तोड़ने में सफलता कैसे पायी?
उत्तर प्रदेश भारत का सर्वाधिक आबादी वाला राज्य है। विशेषज्ञों को उत्तर प्रदेश को लेकर चिंता शायद तब हुयी जब उन्होंने देखा कि जीएसडीपी के हिसाब से सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था और बेहतर मेडिकल इन्फ्रास्ट्रक्चर वाले राज्य महाराष्ट्र में 21 अप्रैल को (बीते 24 घंटे के अंदर) 67,468 लोग कोरोना संक्रमित होने की रिपोर्ट आयी और यह आगे भी इसी स्केल पर पॉजिविटी रेट को प्रदर्शित करता रहा। उत्तर प्रदेश की आबादी महाराष्ट्र की आबादी के मुकाबले दो गुनी है और मेडिकल इन्फ्रा उसकी तुलना में कमजोर। अतः इसे देखते हुए विशेषज्ञों की चिंता स्वाभाविक थी। लेकिन मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने इससे पहले ही कोरोना की दूसरी वेव से निपटने की रणनीति तैयार कर आगे बढ़ना शुरू कर दिया था, जबकि उस समय वे स्वयं कोरोना वायरस से संक्रमित थे।
उन्होंने अपनी टीम को रिस्ट्रक्चर किया और प्रत्येक स्तर पर माइक्रो मैनेजमेंट की रणनीति बनायी। तत्पश्चात ‘ट्रिपल टी’ (3टी) यानि ट्रेस, टेस्ट, और ट्रीट फार्मूले पर आगे बढ़ना शुरू किया। पहले से ही कार्य कर रही निगरानी समितियों को सक्रिय किया जिन्होंने गांव-गांव जाकर डोर-टू-डोर संक्रमितों की पहचान की और रैपिड रेस्पांस टीम बुलाकर उनका टेस्ट कराया और संक्रमित लोगों को जरूरत के अनुसार होम आइसोलेशन अथवा हॉस्पिटल भेजकर ट्रीटमेंट कराया। माइक्रो लेवल पर इस ट्रेसिंग और एग्रेसिव ट्रेंसिंग का ही परिणाम रहा कि 24 अप्रैल के बाद से ही उत्तर प्रदेश में कोरोना पॉजिटिव की संख्या निरंतर कम होती गयी। जबकि टेस्ट की संख्या निरंतर बढ़ रही थी।
कोविड संक्रमण की रिपोर्ट निगेटिव आते ही मुख्यमंत्री स्वयं फील्ड में उतरे और माइक्रो व मैक्रो स्ट्रैटेजी ऑफ मैनेजमेंट की समीक्षा की, गांवों व मोहल्लों में जाकर लोगों के साथ संवाद स्थापित किया, उनका हालचाल जाना। इस तरह से प्रत्येक स्तर पर मुख्यमंत्री के नेतृत्व में शासन, प्रशासन तथा हेल्थ वर्कर्स ने एग्रेसिव और फोकस्ड स्ट्रैटेजी पर कार्य किया जिससे इतने कम समय में भी कोरोना संक्रमण पर नियंत्रण पाने में काफी हद तक सफलता मिली। ध्यान रहे कि उत्तर प्रदेश के ग्रामीण क्षेत्र में इसी माइक्रो मैनेजमेंट को जानने के लिए विश्व स्वास्थ्य संगठन ने दो हजार टीमें भेजीं जिन्होंने 10 हजार घरों का दौरा किया। गहन समीक्षा के बाद विश्व स्वास्थ्य संगठन ने उत्तर प्रदेश सरकार के कोरोना संक्रमण की चेन तोड़ने और उस पर नियंत्रण स्थापित करने के लिए अपनाए गये माइक्रो मैनेजमेंट की मुक्त मन से प्रशंसा की।
पिछले दिनों नीति आयोग ने आक्सीजन आपूर्ति के लिए उत्तर प्रदेश के रियल टाइम मैनेजमेंट की काफी तारीफ की। उत्तर प्रदेश सरकार ने वास्तव में ऑक्सीजन की डिमांड और सप्लाई के बीच संतुलन स्थापित करने के लिए जिस तरह से माइक्रो और मैक्रो स्तर पर प्रबंधन किया, उसी का परिणाम था कि बेहद कम समय में यूपी ऑक्सीजन की 300 मीट्रिक टन की आपूर्ति से 1000 मीट्रिक टन तक पहुंचने में कामयाब हुआ। ध्यान रहे कि ऑक्सीजन की शुरूआती दिक्कतों की खबर आते ही मुख्यमंत्री ने 23 अप्रैल को ही ‘ऑक्सीजन मॉनीटरिंग सिस्टम फॉर यूपी’ का शुभारम्भ किया। इस दृष्टि से आक्सीजन की आपूर्ति के लिए आनलाइन मॉनीटरिंग सिस्टम लागू करने वाला उत्तर प्रदेश पहला राज्य बना।
ठोस कार्य नीति के अंतर्गत इस डिजिटल प्लेटफार्म से खाद्य सुरक्षा व औषधि प्रशासन, चिकित्सा शिक्षा विभाग, चिकित्सा स्वास्थ्य व परिवार कल्याण विभाग, परिवहन तथा गृह विभाग को जोड़ा गया और गृह विभाग में कंट्रोल रूम बनाया गया। इस कंट्रोल रूम में ऑक्सी ट्रैकर डैशबोर्ड पर ऑक्सीजन टैंकर की लोकेशन, ऑक्सीजन की स्थिति व मांग की माइक्रो मॉनीटरिंग की गयी। ऑक्सीजन की सप्लाई में लगे वाहनों की ऑनलाइन उपस्थिति को ट्रैक कर सबसे पास मौजूद वाहन को हॉस्पिटल के लिए रवाना करने की व्यवस्था की गयी है जिससे ऑक्सीजन की मांग को कम समय में पूरा किया जा सके। इससे और आगे बढ़कर ऑक्सीजन सप्लाई के लिए रेल नेटवर्क का प्रयोग किया गया तथा एयरफोर्स की मदद ली गयी ताकि ऑक्सीजन आपूर्ति में कोई बाधा या विलंब न आए। इसके साथ ही आने वाले दिनों की चुनौतियों से निपटने हेतु ब्लू प्रिंट तैयार किया गया। इस रूरल माइक्रो मैनेजमेंट, ऑक्सीजन रियल टाइम मैनेजमेंट और टेस्ट, ट्रेस व ट्रीट मंत्र के चलते उत्तर प्रदेश अन्य राज्यों के मुकाबले विशाल जनसंख्या के बावजूद कोरोना प्रबंधन में पुनः सफल हो पाया।
इलेक्ट्रानिक मीडिया पर एक डॉक्टर को यह सलाह देते हुए सुना था कि कोरोना वेव को रोकने का एक ही उपाय है-वैक्सीनेट, वैक्सीनेट और वैक्सीनेट। उत्तर प्रदेश सरकार वैक्सीनेशन के मामले में सबसे आगे है। यही नहीं जहां अन्य राज्य वैक्सीन उपलब्ध न होने का बहाना बनाकर 18 वर्ष से ऊपर वाले लोगों के वैक्सीनेशन के मामले में काफी पीछे खड़े दिख रहे हैं। वहीं, उत्तर प्रदेश सबसे आगे है। यही वजह है कि महाराष्ट्र, दिल्ली, छत्तीसगढ, केरल, आंध्र प्रदेश …आदि की तुलना में, उत्तर प्रदेश (जिसकी आबादी इन राज्यों के मुकाबले बहुत अधिक है) पॉजिटिविटी रेट को नीचे लाने में रहा।
उल्लेखनीय है कि 12 करोड़ की आबादी वाले महाराष्ट्र में प्रत्येक 100 सैम्पल में 17 लोग पॉजिटिव पाए जा रहे हैं, जबकि कर्नाटक (6.6 करोड़), केरल (3 करोड़), तमिलनाडु (7 करोड़) और आंध्र प्रदेश (5 करोड़) में पॉजिविटी रेट क्रमशः 8.4, 12.4, 6.9 और 8.4 प्रतिशत है। उल्लेखनीय है कि विशेषज्ञों की दृष्टि में 05 फीसदी से अधिक पॉजिटिविटी दर बदहाल हालात को दर्शाती है। इनकी तुलना में पॉजिटिविटी रेट करीब 1.2 के आसपास है। खास बात यह रही है कि इनमें से अधिकांश राज्यों ने सम्पूर्ण लाकडाउन लगाया जबकि उत्तर प्रदेश में जीवन और जीविका दोनों को ध्यान में रखते हुए आंशिक कोरोना कफ्र्यू ही लगाया गया।
सभी औद्योगिक इकाइयां चालू रखी गयीं, केवल बाजार बंद रहे वह भी स्वतः स्फूर्त भाव से। इसकी वजह से डिमांग-सप्लाई चेन टूटने नहीं पायी। मजदूरों और कामगारों को जीविका सम्बंधी संकट का सामना नहीं करना पड़ा। यही नहीं सेकेंड कोरोना वेव के मंद पड़ते ही संभावित थर्ड वेव के दृष्टिगत मेडिकल इन्फ्रास्ट्रक्चर को विस्तार व मजबूती दी जा रही है। इस उद्देश्य से सरकारी अस्पतालों में पिछले 20 दिनों से प्रतिदिन लगभग 140 लोगों की तैनाती की जा रही है। पिछले 20 दिनों में सभी चिकित्सा संस्थानों में हुयी 2288 भर्तियों में 46 फैकल्टीज, 12 सीनियर रेजिडेंट्स, 167 जूनियर रेजिडेंट्स, 140 इंटर्न, 1376 नर्सेज, 292 वार्ड बॉय, 67 तकनीशियन आदि शामिल हैं।
किसी भी नागरिक की मृत्यु बेहद कष्टदायक होती है। लेकिन उत्तर प्रदेश कोविड से होने वाली मृत्यु (प्रति 10 लाख) को सबसे कम रखने में सफल रहा। यही वजह है कि यूरोप के इंग्लैंड, इटली, स्पेन और फ्रांस जैसे विकसित देशों की कुल आबादी के बराबर और इनकी तुलना में सुविधाओं की दृष्टि से बेहद कमजोर उत्तर प्रदेश यदि इनकी तुलना में बेहतर परिणाम दे पाया तो इसकी वजह है मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ का नेतृत्व, उनकी सक्रियता व कर्मठता और उनका माइक्रो मैनेजमेंट।