नल जल योजना में खूब खर्च के बावजूद सार्वजनिक कुएं उपेक्षित, ग्रामीण जलापूर्ति के बड़े स्रोत नजरअंदाज

बिहार
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बिहार में जगह-जगह बने सार्वजनिक कुएं आज पेक्षित हैं, जिन पर कभी सार्वजनिक जलापूर्ति निर्भर थी। मगध प्रमंडल में जब गर्मी में जलस्तर गिरने का खतरा मंडराने लगता है, तो सार्वजनिक कुएं और जलस्रोतों के संरक्षण की बातें होने लगती हैं। लेकिन कुछ ही माह बाद उन्हें उसी उपेक्षित हाल पर छोड़ दिया जाता है। सार्वजनिक जलकूप गांव और इलाके की जलापूर्ति के साधन तो रहे ही हैं ये आसपास के जलस्तर को भी बनाए रखने के पारंपरिक साधन होते रहे हैं।

मनरेगा और पीएचईडी से सार्वजनिक कुओं के संरक्षण के प्लान बनाए गए पर आज भी धरातल पर काम पूरा नहीं हुआ। उदाहरण के तौर पर अरवल जिला के कलेर प्रखंड अन्तर्गत पहलेजा पंचायत में मेहंदिया गांव का सार्वजनिक कुआं। ग्रामीणों खासकर किसानों की सुविधा के लिए अंग्रेजी हुकूमत में सरकारी जमीन पर इसका निर्माण कराया गया था।

कुएं की हालत आसपास अतिक्रमण और अंदर गंदगी पूरी तरह झलक रही है। मेहंदिया गांव के दक्षिणी छोर पर मौजूद इस कुएं की कलात्मकता और मजबूती आज भी बरकरार है। आश्चर्य तो यह कि न तो प्रशासन के ओहदेदारों और न पंचायत के मुखिया की नजरों में इस सार्वजनिक कूप को लेकर कोई कदम उठाया गया।

यहां आज भी ग्रामीण श्राद्ध जैसे धार्मिक कार्यों का निष्पादन करते हैं और कुएं की दुर्दशा के कारण लोगों को पानी के लिए भारी फजीहत झेलनी पड़ती है। मेहंदिया के इस कुएं की तरह सूबे के अन्य सार्वजनिक कुंओं की करुण कथा कुछ ऐसी ही बताई जाती है।