मधुमक्खी पालन पर दिया जा रहा ऑनलाइन प्रशिक्षण

झारखंड
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रांची। आईसीएआर की राष्ट्रीय कृषि उच्चतर शिक्षा परियोजना (नाहेप) के तहत बिरसा कृषि विश्वविद्यालय को स्वीकृत सेंटर फॉर एडवांस्ड एग्रीकल्चरल साइंस एंड टेक्नोलॉजी (कास्ट) द्वारा ‘समेकित कृषि प्रणाली का एक घटक : मधुमक्खी पालन’ पर दो दिवसीय राष्ट्रीय प्रशिक्षण कार्यक्रम ऑनलाइन मोड में शुक्रवार को प्रारंभ हुआ।

नाहेप-कास्ट के प्रधान अन्वेषक डॉ एमएस मलिक ने विषय प्रवेश करते हुए कहा कि फसलों में 70-80% पर परागण मधुमक्खी ही करती है। शहद, रॉयल जेली और मधुमक्खी विष जैसे उत्पाद उपलब्ध कराती है, जिसकी औषधि और सौंदर्य प्रसाधन उद्योग में काफी मांग है। इसे फलों के बाग में या फसलों के प्रक्षेत्र में बिना किसी अतिरिक्त भूमि और श्रम के बहुत कम लागत पर पाला जा सकता है। इससे किसानों को काफी अतिरिक्त लाभ प्राप्त हो जाता है। यूं तो देश में चार प्रकार की मधुमक्खी पाई जाती है, किंतु बॉक्स में केवल भारतीय और इटालियन मधुमक्खी ही पाली जा सकती है।

डॉ राजेंद्र प्रसाद केंद्रीय कृषि विश्वविद्यालय, समस्तीपुर, बिहार के वैज्ञानिक डॉ मनोज कुमार ने कहा कि मधुमक्खीपालन प्रारंभ करने का सर्वोत्तम समय सितंबर-अक्टूबर और फरवरी-मार्च है। इस समय खेत और जंगलों में प्रचुरता में हरियाली रहती है। उन्होंने मधुमक्खियों द्वारा प्याज, गाजर, सरसों, लीची और फूलगोभी फसल के परागन के महत्व पर विशेष प्रकाश डाला।

डॉ राजेंद्र प्रसाद केंद्रीय कृषि विश्वविद्यालय के ही अवकाश प्राप्त प्रोफेसर डॉ रामाश्रित सिंह ने कहा कि झारखंड और छत्तीसगढ़ में करंज और वनतुलसी के क्षेत्र में मधुमक्खी पालन की प्रचुर संभावना है। औषधीय गुणों के कारण इनका बाजार मूल्य भी अच्छा मिलता है। किंतु किसानों में जागरुकता की कमी और सुविधा संपन्न प्रशिक्षण केंद्र उपलब्ध नहीं रहने के कारण किसान मधुमक्खी पालन की आधुनिक तकनीकों और प्रसंस्करण विधियों से अवगत नहीं हो पाते। आय के इस महत्वपूर्ण स्रोत का लाभ नहीं उठा पाते।

बीएयू के कीट विज्ञान विभाग के वरीय वैज्ञानिक डॉ मिलन कुमार चक्रवर्ती ने ‘मधुमक्खी के प्राकृतिक शत्रुओं और रोगों तथा उनके प्रबंधन’ पर अपने विचार रखे। शेर-ए-कश्मीर कृषि एवं प्रौद्योगिकी विश्वविद्यालय, जम्मू के एसोसिएट प्रोफेसर डॉ दविंदर सिंह ने प्रशिक्षणार्थियों को मधुमक्खी पालन में रिकॉर्ड कीपिंग की विधियों और महत्ता से अवगत कराया।

इस ऑनलाइन प्रशिक्षण कार्यक्रम में देश के विभिन्न भागों से 50 वैज्ञानिक, उद्यमी, स्नातकोत्तर छात्र-छात्राओं और किसानों ने भाग ले रहे हैं।