
रांची। आजादी की 75वीं वर्षगांठ के पूर्व दिवसों पर आयोजित होने वाले कार्यक्रमों की कड़ी में गुरुवार को पत्र सूचना कार्यालय, प्रादेशिक लोक संपर्क ब्यूरो, रांची और क्षेत्रीय लोक संपर्क ब्यूरो, दुमका, गोवा यूनिवर्सिटी व रामगढ़ कॉलेज के संयुक्त तत्वावधान में वेबिनार का आयोजन किया गया। इसमें पत्र सूचना कार्यालय के अपर महानिदेशक अरिमर्दन सिंह ने कहा कि आज की पीढ़ी को यह बताना बहुत प्रासंगिक है कि आजादी के आंदोलन में आजादी के नायक किस प्रकार त्याग और समर्पण का उत्कृष्ट उदाहरण प्रस्तुत करते हुए आजादी के लिए लगातार प्रयत्नशील रहे। जिस समय आजादी के मतवाले विदेशी शासन के खिलाफ एकजुट होकर आजादी के लिए प्रयासरत थे, उस समय उन्हें भी यह मालूम नहीं था कि उनके संघर्ष का परिणाम क्या होगा। अंततः हमें आजादी प्राप्त हुई। यह आजादी के मतवालों के बलिदान और अथक प्रयास का नतीजा है कि हम आजाद भारत में सांस ले रहे हैं।
वेबिनार में गोवा यूनिवर्सिटी की इतिहास विभाग की सहायक प्रोफेसर डॉ सीमा रिश्बुद ने कहा कि गोवावासी एक लंबे समय तक पुर्तगालियों के अधीन रहे। अधिकतर गोवावासियों की हमेशा से ही अभिलाषा थी कि वे भारत के जनतंत्र का हिस्सा बनकर अपने राज्य को प्रगति की ओर ले जाएं।
रांची विश्वविद्यालय की शोधार्थी श्रीमती अर्मा मंजर ने विस्तार से एक भारत, श्रेष्ठ भारत पर प्रकाश डाला। उन्होंने बताया कि आदिवासी समाज एक हंसता-खेलता, नाचता-गाता समाज है, जो टिकाऊ विकास पर विश्वास रखता है। अत: झारखंड का आदिवासी समाज हो या गोवा का आदिवासी समाज, यह हमारे लिए किसी विश्व धरोहर से कम नहीं है। इन्हें सहेज कर रखना मानव सभ्यता की जिम्मेदारी है।

रामगढ़ कॉलेज के प्रिंसिपल डॉ मिथिलेश कुमार सिंह ने कहा कि बुनियादी तौर पर आदिवासी समाज के लोग आजादी-पसंद प्रवृत्ति के होते हैं। उन्हें स्वच्छंद-उन्मुक्त रहना बहुत भाता है। झारखंड के इतिहास पर अगर हम नजर डालें तो यहां के आदिवासियों ने ना तो मुस्लिम शासकों के वर्चस्व को बर्दाश्त किया और ना ही बाद में ब्रिटिश शासकों के शासन को बर्दाश्त किया।
गोवा यूनिवर्सिटी की शोध छात्रा व गणपत परसेकर कॉलेज ऑफ एजुकेशन में सहायक प्रोफ़ेसर श्रीमती स्नेहा घाड़ी ने कहा कि गोवा और झारखंड के इतिहास में कई समानताएं हैं। दोनों के संघर्ष का भी एक जैसा विवरण मिलता है। झारखंड और गोवा के सांस्कृतिक विरासत की भी एक तुलना पेश करते हुए यह बताया कि दोनों राज्यों के लोगों के रहन-सहन और संस्कृति में कई समानताएं पाई जाती हैं।
वेबिनार का समन्वय एवं संचालन क्षेत्रीय प्रचार अधिकारी शाहिद रहमान ने किया। इसमें विशेषज्ञों के अलावा शोधार्थी, छात्र, पीआईबी, आरओबी, एफओबी, दूरदर्शन एवं आकाशवाणी के अधिकारी-कर्मचारी, दूसरे राज्यों के अधिकारी-कर्मचारियों ने भी हिस्सा लिया। गीत एवं नाटक विभाग के अंतर्गत कलाकार एवं सदस्य, आकाशवाणी के पीटीसी, दूरदर्शन के स्ट्रिंगर तथा संपादक और पत्रकार भी शामिल हुए। वेबिनार का यू-ट्यूब पर भी लाइव प्रसारण किया गया।