नई दिल्ली। हिन्द महासागर में चीन का मुकाबला करने के लिए भारत परमाणु ऊर्जा से चलने वाली छह पनडुब्बियों का निर्माण स्वदेशी परियोजना के तहत करेगा। पहले तीन पनडुब्बियों की मंजूरी देने के लिए सुरक्षा मामलों की मंत्रिमंडलीय समिति (सीसीएस) से जल्द ही मंजूरी मिलने की सम्भावना है। इसके बाद तीन और पनडुब्बियों के लिए मंजूरी दी जाएगी। चीनी नौसेना के हिन्द महासागर में बढ़ते खतरे को देखते हुए भारत ने विमानवाहक युद्धपोत की बजाय छह परमाणु पनडुब्बियों को तवज्जो दी है।
भारतीय सीमा की सुरक्षा को प्रमुखता से निभाते हुए नौसेना विश्व के अन्य प्रमुख मित्र राष्ट्रों के साथ सैन्य अभ्यास में भी शामिल होती है। पिछले कुछ वर्षों से लगातार नौसेना अत्याधुनिक होकर दुनिया की प्रमुख शक्ति बनने की महत्वाकांक्षा को सफल बनाने के प्रयास में है। नौसेना के पास इस समय विमानवाहक युद्धपोत आईएनएस विक्रमादित्य है जिसे 16 नवम्बर, 2013 को भारतीय नौसेना में सेवा के लिए शामिल किया गया था। नौसेना का दूसरा विमानवाहक युद्धपोत आईएनएस विक्रांत अभी परीक्षण के दौर से गुजर रहा है। इसके 2021 के अंत या 2022 की शुरुआत में इसके नौसेना के परिवार का हिस्सा बनने की उम्मीद है। हिन्द महासागर में चीन की बढ़ती दखलंदाजी को देखते हुए भारतीय नौसेना को तीसरे विमानवाहक युद्धपोत की भी आवश्यकता है जिसके बारे में शीर्ष स्तर पर चर्चा भी हुई है।
इसके साथ ही नौसेना को परमाणु पनडुब्बियों की भी जरूरत है। वैसे तो नौसेना इस समय कुल 15 पनडुब्बियों का संचालन कर रही है जिसमें आईएनएस अरिहंत और आईएनएस चक्र परमाणु ऊर्जा से संचालित हैं। आईएनएस चक्र को रूस से 10 साल की लीज पर लिया गया है जबकि अरिहंत का निर्माण भारत में ही किया गया है। यह दोनों पनडुब्बियां परमाणु मिसाइल हमले को अंजाम दे सकती हैं। कुल मिलाकर नौसेना को सीमित बजट देखते हुए अपनी जरूरत के हिसाब से परमाणु पनडुब्बियों या तीसरे विमानवाहक युद्धपोत में से किसी एक को चुनना था जिसमें छह परमाणु पनडुब्बियों के स्वदेशी निर्माण परियोजना पर ध्यान केन्द्रित किया गया है। नौसेना ने इस बारे में प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी को भी जानकारी दी है।
चीन के पास करीब एक दर्जन ऐसी परमाणु पनडुब्बियां हैं। उसकी नई पनडुब्बी टाइप 095 बेहद शांति से समुद्र में चलती है। इसलिए चीन की साजिशों को जवाब देने के लिए भारतीय नौसेना को भी परमाणु पनडुब्बियों की जरूरत है। भारत ने 6,000 टन से अधिक वजन वाली छह परमाणु पनडुब्बियों के निर्माण की योजना बनाई है। शुरुआत में सुरक्षा मामलों की मंत्रिमंडलीय समिति (सीसीएस) से केवल तीन ही पनडुब्बियों के निर्माण की मंजूरी दी जाएगी जिसमें से पहली परमाणु पनडुब्बी 2032 या उसके आसपास नौसेना को मिलेगी। प्रत्येक पनडुब्बी के निर्माण पर लगभग 15 हजार करोड़ रुपये की लागत आएगी। इस पनडुब्बी निर्माण योजना को पहली बार 1999 में सीसीएस ने अनुमोदित किया था। परमाणु पनडुब्बियों का निर्माण पीएमओ के तहत एक अलग परियोजना है।