दायरे हयात और आग बरसाते शहर के रचयिता, प्रख्यात साहित्यकार और मशहूर गजल गायक कुमार नयन अब इस दुनिया में नहीं रहे। मूल रूप से बक्सर निवासी कुमार नयन कोरोना संक्रमित हो गए थे और सांस लेने में तकलीफ होने पर उन्हें शहर के वीके ग्लोबल अस्पताल में भर्ती कराया गया था। सोमवार की देर रात करीब 11.45 बजे उन्होंने अंतिम सांस ली।
उनके निधन की सूचना मिलते ही शाहाबाद का साहित्य जगत शोक में डूब गया। उनके भतीजे पंकज कुमार ने बताया कि शाम में तबीयत ज्यादा खराब होने पर उन्हें वेंटिलेटर सपोर्ट पर रखा गया था, लेकिन रात 11:30 बजे के बाद उनकी तबीयत ज्यादा बिगड़ने लगी और उन्हें बचाया नहीं जा सका। अस्पताल के निदेशक ने भी इसकी पुष्टि की है। कुमार नयन को उनकी साहित्यिक कृतियों के लिए 2015-16 में राज्य सरकार ने प्रतिष्ठित दिनकर पुरस्कार से सम्मानित किया था।
वर्ष 2013 में वे राज्य भोजपुरी साहित्य अकादमी अवार्ड से भी सम्मानित हुए थे। कुमार नयन ने वैसे तो कई पुस्तकों की रचना की है। लेकिन उनकी कुछ रचानाएं पांव कटे बिम्ब, काव्य संग्रह, आग बरसाते शहर, एहसास, खयाल दर खयाल एवं दयारे हयात सर्वाधिक चर्चा में रहीं। 2015 में पटना में आयोजित पुस्तक मेला में उनकी गजल संग्रह दयारे हयात मेला की सर्वाधिक बिकने वाली पुस्तकों में शामिल थीं।
उनका जन्म पांच जनवरी 1955 को डुमरांव हुआ था। एमए व एलएलबी करने के बाद भी उन्होंने करियर के रूप में साहित्यक व सामाजिक क्षेत्र को चुना। 1987 में बक्सर में भोज थियेटर लोक रंगमंच की स्थापना की। इसके माध्यम से उन्होंने भिखारी ठाकुर के नाटकों एवं अन्य लोक संस्कृतियों का मंचन कर अलग ही पहचान बना ली। वे प्रगतिशील लेखक संघ के जिलाध्यक्ष भी रह चुके थे। वरिष्ठ पत्रकार केके ओझा कहते हैं कि बक्सर में अब ऐसे पत्रकार अब नहीं, जो सत्ता के केंद्रों पर कुमार नयन की तरह खुलेआम हमला बोलते हों। उन्होंने ठेकेदारी प्रथा के खिलाफ भी आवाज बुलंद की थी और शोषित वर्गों के पक्ष में संघर्ष कर सामाजिक न्याय भी दिलाया।