- बिरसा कृषि विश्वविद्यालय में व्याख्यान का आयोजन
रांची। बागवानी कृषि का सूर्योदय वाला क्षेत्र है। यह कृषि गतिविधियों को ज्यादा लाभकारी बना सकता है। अधिक ग्रामीण आबादी को रोजगार दे सकता है। प्राकृतिक संसाधनों का संरक्षण कर सकता है। कुपोषण के खिलाफ जंग लड़ सकता है। यह विचार हिमाचल प्रदेश कृषि विश्वविद्यालय (पालमपुर) के पूर्व कुलपति डॉ डीएस राठौर ने मंगलवार को बिरसा कृषि विश्वविद्यालय में कही। वे ‘बागवानी में हाल की तकनीकी प्रगति’ विषय पर व्याख्यान दे रहे थे।
डॉ राठौर ने कहा कि भविष्य संरक्षित बागवानी का है, जिसमें समुचित विनियोग होने पर उत्पादन और किसानों की आय दो-तीन वर्षो के अंदर ही 5 गुना तक बढ़ा देने की क्षमता है। इसलिए आज विश्व समुदाय का जोर बागवानी पर है, जिसका क्षेत्र पिछले एक दशक में दोगुना हो गया है। किसान भी इसकी लाभप्रदता के बारे में आश्वस्त हैं। बागवानी में चीन का स्थान दुनिया में नंबर वन है। भारत दूसरे स्थान पर है, किंतु भारत की तुलना में चीन में फल, सब्जी, फूलों आदि का उत्पादन लगभग 5 गुना है। क्योंकि वहां विभिन्न प्रकार के नेट हाउस, ग्रीन हाउस, लो प्लास्टिक टनल आदि में संरक्षित बागवानी बड़े पैमाने पर हो रही है। उन्होंने कहा कि संरक्षित बागवानी के लिए फसलों के प्रभेद खुले में खेती वाले प्रभेदों से अलग हैं, का प्रयोग किसान और उद्यमियों को करना चाहिए।
बागवानी के महत्व और भविष्य का अंदाजा इस बात से भी लगाया जा सकता है कि भारत सरकार ने बागवानी क्षेत्र को वित्तीय आवंटन कृषि क्षेत्र की तुलना में दोगुना किया है। केला, स्ट्रॉबेरी, अनार और विभिन्न सजावटी प्रजातियों के रोगमुक्त और एकरूप पौधे तैयार करने के लिए डॉ राठौर ने टिशु कल्चर अपनाने पर जोर दिया। अब आम, काजू, अमरूद, जामुन और अखरोट के पौधे एक साथ बड़ी संख्या में तैयार करने की तकनीक उपलब्ध है।

डॉ राठौर ने कहा कि भारत में मुश्किल से 3% बागवानी उत्पादों का प्रसंस्करण हो पाता है, जिसे बढ़ाकर 10% तक ले जाने की आवश्यकता है। उनसे विभिन्न प्रकार के मूल्यवर्धित पदार्थ तैयार कर फूलों और औषधीय पौधों को सुखाकर, उनसे प्राकृतिक रंग और खुशबू पदार्थ निकालकर और उनकी स्मार्ट पैकेजिंग कर विश्व बाजार में भेजा जा सकता है। उन्होंने कटाई, परिवहन, भंडारण से लेकर विक्रय केंद्र तक कूल चेन विकसित करने की भी आवश्यकता बताई। उन्होंने कहा कि बागवानी के क्षेत्र में नए अनुसंधान और विकास को गति प्रदान करने के लिए आईसीआर के चार संस्थान और कई शोध केंद्र देश में काम कर रहे हैं। लोगों की आमदनी और जीवन स्तर में प्रगति के साथ ही देश-दुनिया में पोषण के लिए फलों-सब्जियों और सजावट के लिए फूलों की मांग लगातार बढ़ रही है, जो बागवानी के सुनहरे भविष्य की ओर इंगित करती है।
व्याख्यान का आयोजन बीएयू में चल रही राष्ट्रीय कृषि उच्चतर शिक्षा परियोजना द्वारा किया गया था। इस अवसर पर कृषि संकाय के अधिष्ठाता डॉ एमएस यादव, परियोजना के प्रधान अन्वेषक डॉ एमएस मलिक और डॉ बीके अग्रवाल ने भी अपने विचार रखे।