पटना। बिहार विधानसभा में मंगलवार को भारत के नियंत्रक एव महालेखा परीक्षक (सीएजी) की रिपोर्ट उपमुख्यमंत्री-सह वित्त मंत्री तारकिशोर ने पेश किया। पेश रिपोर्ट के मुताबिक बिहार में एक लाख की आबादी पर फिजिशियन, आयुष, दंत चिकित्सक और नर्सों की 92 प्रतिशत रिक्तियां है। सीएजी की रिपोर्ट के मुताबिक वर्ष 2006-07 से 2016-17 के बीच 12 मेडिकल कॉलेजों (एक डेन्टल कॉलेज सहित) का निर्माण कार्य शुरू किया गया। लेकिन, वर्ष 2018 तक सिर्फ दो मेडिकल कॉलेज कार्यरत किए जा सके। निर्धारित लक्ष्य 61 के सापेक्ष में 2018 तक सिर्फ दो नर्सिंग संस्थानों का ही निर्माण किया जा सका। बिहार सरकार ने राज्यभर के मेडिकल कॉलेजों की सीटों को बढ़ाने के लिए प्रभावी प्रयत्न नहीं किए हैं।
सीएजी की रिपोर्ट के मुताबिक बिहार देश की कुल आबादी का 8.6 प्रतिशत के साथ तीसरा सबसे आबादी वाला राज्य है। एक लाख की आबादी पर सरकारी डॉक्टर-नर्स-प्रसाविका के अनुपात का राष्ट्रीय औसत 221 है। वहीं, बिहार में यह अनुपात 19.74 था। सीएजी ने पाया है कि वर्ष 2006-07 से 2016-17 के बीच 12 मेडिकल कॉलेजों का निर्माण कार्य शुरू हुआ था, लेकिन वर्ष 2018 तक केवल दो मेडिकल कॉलेज कार्यरत हो सके हैं। वर्ष 2018 तक 61 के लक्ष्य के बजाय महज दो नर्सिंग संस्थानों का निर्माण हो सका है। बिहार सरकार के मौजूदा मेडिकल कॉलेजों की सीटों को भी बढ़ाने की कोशिश नहीं की गई।
मेडिकल शिक्षा की सभी शाखाओं में टीचिंग स्टाफ की कमी 6-56 प्रतिशत और नॉन टीचिंग स्टाफ की कमी 8-70 प्रतिशत के बीच रही। पांच मेडिकल कॉलेजों में वास्तविक शिक्षण घंटे में एमसीआई की शर्तों के विरुद्ध 14 से 52 प्रतिशत के बीच कमी थी। शिक्षण घंटे में कमी का कारण संकायों का आभाव था। संयुक्त भौतिक सत्यापन के दौरान विनियमन संस्थानों के मानदंडों की तुलना में आधारभूत संरचना में कमिया पायी गयी, जिसने शैक्षणिक लक्ष्य के लिए एक गैर-अनुकूल वातावरण का सृजन किया। योजनामंद अन्तर्गत केवल 75 प्रतिशत राशि को 2013-18 के दौरान व्यय किया गया जो राज्य सरकार की विभिन्न योजनाओं के तहत किये गए निर्माण कार्यों की खराब प्रगति के कारण हुआ।
पंचायत स्तर और नगरपालिका स्तर पर मैन पॉवर का अभाव
रिपोर्ट में कहा गया है कि पंचायती राज संस्थानों और नगरपालिकाओं के सभी स्तरों पर मैन पॉवर का काफी अभाव था। पंचायत सचिव, ग्राम पंचायत स्तर पर सभी मामलों को देखने के लिए केवल एक व्यक्ति था, लेकिन राज्य स्तर पर 56 प्रतिशत पद खाली थे। एलईडी लाईट की खरीद के लिए टेंडर के मूल्यांकन के दौरान न्यूनतम दर वाले टेंडर डालने वाले को नगर परिषद्, अरवल ने जान-बूझकर नहीं लिए जाने पर 50 लाख 33 हजार रुपये की राशि का अधिक भुगतान किया गया। लापरवाही से कूड़ेदान की खरीद पर दो शहरी निकायों को 6 करोड़ 98 लाख रुपये का नुकसान हुआ।