गांव शहरों से अधिक सभ्य और शालिन हैं: डॉ. मुरली मनोहर जोशी

अन्य राज्य
Spread the love

– ‘वर्धा मंथन 2021’ के सम्‍पूर्ति सत्र में विद्वानों ने रखे विचार

वर्धा। पूर्व केंद्रीय मंत्री डॉ. मुरली मनोहर जोशी ने गांवों को शहरों से अधिक सभ्य और शालिन करार दिया तथा गांव को कल्पना नहीं सृष्टि बताया। महात्मा गांधी अंतरराष्ट्रीय हिंदी विश्वविद्यालय में ‘वर्धा मंथन 2021: ग्राम स्‍वराज की आधारशिला’ विषय पर आयोजित दो दिवसीय राष्‍ट्रीय कार्यशाला के सम्‍पूर्ति सत्र को संबोधित करते हुए डॉ. जोशी ने कहा कि अंग्रेजों के आने से पहले भारतीय गांव स्‍वायत्‍त रहा। रामायण काल में तो राजा और किसान के बीच घनिष्‍ठ संबंध का भी विवरण मिलता है।

परंतु अंग्रेजों ने गांवों का उपयोग मात्र लगान वसूलने के लिए किया। उन्‍होंने कहा कि हमारे देश के ग्राम शहर की अपेक्षा ज्‍यादा सभ्‍य और शालीन हैं।प्रो. जोशी ने कहा कि वर्तमान औद्योगिक परिवेश में ग्राम स्‍वराज के विषय में हमें कहां तक और कैसे सोचना होगा, इस पर चिंतन करने की आवश्‍यकता है क्‍योंकि गांव एक कल्‍पना नहीं बल्कि एक सृष्टि है। कोरोना काल में श्रमिकों का गांवों की तरफ लौटना इस देश के आम जन की ग्राम श्रद्धा की ओर संकेत करता है।जोशी ने बताया कि वर्तमान में समाज बाजार केंद्रित हुआ है। सुबह से शाम तक बदल जाने वाले बाजार के केंद्र में कभी मनुष्‍य नहीं हो सकता। मनुष्‍य केंद्रित मूल्‍य तो उस सभ्‍यता से ही प्राप्‍त हो सकते हैं जो हजारों वर्ष पूर्व ग्राम की सभ्‍यता थी। गांवों की परिकल्‍पना भारतीय संतों के विचारों का प्रतिबिंब है जो मात्र जीडीपी और ग्रोथ तक ही सीमित नहीं है। जोशी ने कहा कि वास्‍तव में भारत माता ग्रामवासिनी है। 

प्रशासनिक तंत्र ग्राम स्वराज के लिए बाधा 

हिन्दुस्थान समाचार के समूह संपादक पद्मश्री राम बहादूर राय ने सम्‍पूर्ति सत्र को संबोधित करते हुए कहा कि ग्राम स्‍वराज का संबंध भारत के भविष्‍य के सपने के साथ जुड़ा है। उन्होंने बताया कि आज का प्रशासनिक तंत्र ग्राम स्‍वराज की दिशा में सबसे बड़ी बाधा है। भारत फिर से सोने की चिडियां तभी बनेगा जब नवोत्‍थान का सपना भारतीय गांव से होकर गुजरेगा। राय ने कहा कि स्‍वाधीन भारत का सपना जगाने वाले महापुरुष ऋषि अरविंद, विपिन चंद्र पाल, लाला लाजपतराय, तिलक और महात्‍मा गांधी ने भी एक समर्थ और सक्षम ग्राम की परिकल्‍पना की थी। 

सम्‍पूर्ति सत्र की अध्‍यक्षता करते हुए महात्‍मा गांधी अंतरराष्‍ट्रीय हिंदी विश्‍वविद्यालय के कुलपति डॉ. रजनीश कुमार शुक्‍ल ने कहा कि ग्राम स्‍वराज वास्‍तव में सुराज है। उन्‍होंने कहा कि ‘वर्धा मंथन’ से अमृत कलश निकलेगा। इस कार्यशाला में अकादमिक बहस ही नहीं हुई, बल्कि सिद्धांतों को व्‍यवहार में बदलने के लिए एक खाका भी तैयार किया गया। इस कार्यक्रम में ग्रामीण क्षेत्रों में कार्य करने वाले, नए प्रयोगों को जन्‍म देने वाले और मूल्य आधारित जीवन जीने वाले कार्यकर्ताओं और स्वयंसेवकों ने सहभागिता की।शुक्ल ने बताया कि इस मंथन का लक्ष्य 2021 में एक नए प्रकार की सभ्यता विमर्श की नींव रखना है जो व्यक्ति को तकनीकी केंद्रित उपभोगवादी जीवन से मुक्त करते हुए स्वराज और स्वावलंबन की ओर अग्रेषित करेगी। 

सम्‍पूर्ति सत्र में महात्‍मा गांधी केंद्रीय विश्‍वविद्यालय, मोतिहारी (बिहार) के कुलाधिपति तथा खादी एवं ग्रामोद्योग आयोग के पूर्व अध्‍यक्ष डॉ. महेश शर्मा ने ‘मंथन निष्‍कर्ष’ प्रस्‍तुत किया। इस अवसर पर प्रतिकुलपति प्रो. हनुमानप्रसाद शुक्‍ल ने ‘वर्धा संकल्‍प’ पत्र की घोषणा की। कार्यक्रम का संचालन कार्यशाला के संयोजक डॉ. के. बालराजु ने किया तथा महात्‍मा गांधी फ्यूजी गुरुजी सामाजिक कार्य अध्‍ययन केंद्र के निदेशक प्रो. मनोज कुमार धन्‍यवाद ज्ञापन किया।दूरशिक्षा निदेशालय के निदेशक प्रो. हरीश अरोड़ा ने कार्यशाला का प्रतिवेदन प्रस्‍तुत किया। इस अवसर पर डॉ. के. बालराजु एवं डॉ. शिव सिंह बघेल द्वारा संपादित पुस्‍तक ‘ग्राम विकास के अभिनव प्रयोग’ का लोकार्पण किया गया। इस दौरान दो दिवसीय कार्यशाला पर आधारित ‘मंथित पीयूष’ का विमोचन विश्‍वविद्यालय के कुलपति एवं मंचासीन अतिथियों द्वारा किया गया।