भारतीय विज्ञान की परंपरा उज्‍ज्‍वल और अनुकरणीय रही है : सहस्त्रबुद्धे

झारखंड
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रांची।
भारतीय विज्ञान की परंपरा उज्‍ज्‍वल और अनुकरणीय रही है। भारत के प्रधानमंत्री आत्मनिर्भता पर विशेष जोर दे रहे हैं। विज्ञान के क्षेत्र में अपना देश अग्रणी बनें, इसपर कार्य तेजी से चल रहा है। उक्‍त बातें विज्ञान भारती के राष्ट्रीय संगठन मंत्री जयंत राव सहस्त्रबुद्धे ने कही। वे 19 जनवरी को आरयूके इंस्टीट्यूट ऑफ लीगल स्टडीज के सभागार में ‘भारतीय विज्ञान का इतिहास’ विषय पर आयोजित संगोष्ठी में बतौर मुख्‍य वक्‍ता बोल रहे थे।

संगोष्‍ठी का आयोजन रांची विश्वविद्यालय की राष्ट्रीय सेवा योजना इकाई एवं विज्ञान भारती, झारखंड के संयुक्त तत्वावधान में हुआ। इसकी अध्यक्षता रांची विश्वविद्यालय के कुलपति डॉ रमेश कुमार पाण्डेय ने की।

मुख्य वक्ता ने कहा कि एक समय ऐसा था कि हमारे देश में ज्ञान की खोज में पूरे दुनिया के लोग आते थे। पूर्व राष्ट्रपति एपीजे अब्दुल कलाम फिर वो दिन लाना चाहते थे। उन्होंने कहा कि भारत विज्ञान के क्षेत्र में काफी आगे रहा है। इसका प्रत्यक्ष उदाहरण रूटलेस आयरन है, जो 800 वर्षों में खराब नहीं हुआ। हमें भारतीय विज्ञान की गाथा को अच्छी तरह से समझना होगा। उन्‍होंने युवाओं से भारतीय विज्ञान की परंपरा को आत्मसात करते हुए आत्मविश्वास के साथ आत्मनिर्भर भारत के पुनर्निर्माण में अपना बहुमूल्य योगदान देने की अपील की।

अध्यक्षीय संबोधन में कुलपति डॉ रमेश कुमार पाण्डेय ने कहा कि भारतीय विज्ञान की चर्चा दुनिया में होती रही है। शून्य का आविष्कार भारत की देन है। उन्होंने ज्यामितीय प्रणाली, दशमलव पद्धति, विंग मशीन, प्लास्टिक सर्जरी, औद्योगिक क्रांति सहित विज्ञान के क्षेत्र में हमारी उपलब्धियां से पूरी दुनिया परिचित है।

अतिथियों का स्वागत रांची विश्वविद्यालय की प्रतिकुलपति डॉ कामिनी कुमार ने किया। संगोष्ठी में विज्ञान भारती के उपेंद्र रॉय, डॉ सतीश (निदेशक, लीगल स्टडीज), डॉ हरिओम पाण्डेय, डॉ सीएसपी लुगुन, डॉ संजय कुमार डे, डॉ एके झा, डॉ लतिका प्रसाद, डॉ अनिल कुमार, डॉ बीआर झा, डॉ सुषमा एक्का, डॉ अरुण कुमार, डॉ आनंद कुमार ठाकुर, डॉ सीमा केसरी, डॉ नैनी सक्सेना, डॉ आरके झा, डॉ सुभाष साहू सहित कई प्राध्यापकों एवं एनएसएस के स्वयंसेवकों की उपस्थिति रही।

संगोष्ठी का संचालन एनएसएस के कार्यक्रम समन्वयक डॉ ब्रजेश कुमार ने किया। धन्यवाद विज्ञान भारती के डॉ अशोक सिंह ने किया। संगोष्ठी को सफल बनाने में एनएसएस के दिवाकर, सुमित, राहुल, दीपा, स्मृति, नेहा, दिव्यांशु, संकेत, पवन आदि का योगदान रहा।