गया। भ्रष्ट वरिष्ठ नौकरशाहों के बीच दहशत व्याप्त करने में कामयाब स्पेशल विजिलेंस यूनिट आखिर क्यों कुंद कर दिया गया? इस अहम सवाल का जवाब सरकार के पास है। लेकिन आम आवाम अंजान है। भ्रष्ट लोकसेवकों के खिलाफ कार्रवाई के बाद आम आदमी की तालियों की गूंज एसवीयू के लिए हुआ करती थी।
एक वरिष्ठ अधिकारी के मुताबिक 1 अगस्त 2006 को मुख्यमंत्री नीतीश कुमार के समक्ष एसवीयू की परिकल्पना को लेकर एक वरिष्ठ पुलिस अधिकारी के साथ चर्चा हुई थी।सीएम नीतीश कुमार इस बात से काफी दुखी थे कि उनका “सुशासन” भ्रष्टाचार का भेंट चढ़ जा रहा है। मुख्यमंत्री नीतीश कुमार को भ्रष्टाचार के खिलाफ “जीरो टालरेंस” की सोच को अमलीजामा पहनाने की जिम्मेदारी एक वरिष्ठ पुलिस अधिकारी को सौंपी गई।
उक्त अधिकारी ने सीबीआई मुख्यालय से संपर्क कर सेवा निवृत एसपी संवर्ग के अधिकारियों की सूची एकत्रित की। सीबीआई के सेवानिवृत्त अधिकारियों को लेकर एसवीयू का गठन किया गया। मुख्यमंत्री नीतीश कुमार ने स्वयं 15 अगस्त को एसवीयू गठन की घोषणा गांधी मैदान की जनसभा को संबोधित करते हुए की थी।
उक्त वरिष्ठ पुलिस अधिकारी के अनुसार सीबीआई के सेवानिवृत्त अधिकारियों को एसवीयू में शामिल करने का मुख्य उद्देश्य यह था कि वे सभी भ्रष्टाचार के खिलाफ कार्रवाई के लिए विशेषज्ञ थे। सीबीआई में दरोगा के पद पर बहाल हुए अधिकारी प्रायःएसपी पद से सेवानिवृत्त होते हैं। इसके पहले बिहार में “सैप” का गठन हो चुका था।सैप में सेना के प्रशिक्षित जवानों को नक्सलवाद के खिलाफ फिल्ड में लड़ने के लिए अनुबंध पर बहाल किया जा चुका था।
एसवीयू की कमान तब अपनी ईमानदारी, विभागीय कार्रवाई में नो कम्प्रोमाइज और निष्पक्षता के लिए विख्यात आईपीएस अभय कुमार उपाध्याय को सौंपी गई। अभय कुमार उपाध्याय के नेतृत्व में एसवीयू की पहली कार्रवाई सूबे के वरिष्ठ आईपीएस और डीजी संवर्ग के एक अधिकारी के घर से लेकर परिजनों के यहां छापामारी/तलाशी से हुई। उसके बाद एसवीयू का वरिष्ठ नौकरशाहों के खिलाफ कार्रवाई रंग लाने लगी।
एसवीयू को भ्रष्ट अखिल भारतीय सेवा के अधिकारियों की जन्म कुंडली मिलने लगी। एसवीयू की एक आईएएस अधिकारी एस एस वर्मा के खिलाफ कार्रवाई ने खूब सुर्खियां बटोरी। लेकिन एसवीयू को एस एस वर्मा के खिलाफ कार्रवाई काफी महंगा पड़ा।एसवीयू के वित्तीय आवंटन पर रोक लगा दी गई। अनुसंधानकर्ताओं को पीन से लेकर कागज-कार्बन तक के लाले पड़ गए। एक-एक कर सीबीआई के सेवानिवृत्त अधिकारी एसवीयू को टाटा-बाई-बाई कर चल दिए।
जबकि एसवीयू के गठन और कारवाई को लेकर स्पष्ट नीति बनी थी।तय हुआ था और आईजी अभय कुमार उपाध्याय भ्रष्ट लोकसेवकों के खिलाफ छापामारी/ तलाशी के पूर्व सिर्फ मुख्यमंत्री नीतीश कुमार को सूचना देंगे। ताकि मुख्यमंत्री नीतीश कुमार को मीडिया या अन्य से एसवीयू कारवाई की सूचना नहीं मिले।
जानकार सूत्रों के अनुसार भ्रष्ट नौकरशाही ने एसवीयू को कुंद करने का काट निकाल लिया।यह कहा गया कि मुख्यमंत्री की इजाजत छापामारी/ तलाशी के पूर्व फाइल पर लेना अनिवार्य हों। इसके बाद एसवीयू की संभावित कार्रवाई की जानकारी क्लर्क से लेकर संबंधित विभाग के अधिकारियों को होना तय था। ऐसे में एसवीयू जिस उद्देश्य से गठित हुई थी।वो लक्ष्य प्राप्त करना असंभव हो जाता। ऐसे में कई सालों तक एसवीयू को कुंद करने में भ्रष्ट लोकसेवक कामयाब हो गए।
1977 बैच के आईपीएस अभयानंद ने पुलिस महानिदेशक बनने के बाद आर्थिक अपराध इकाई का गठन कर एसवीयू की तर्ज पर भ्रष्टाचार में लिप्त लोकसेवकों से लेकर कुख्यात नक्सली, अपराधी, ठेकेदार और आर्थिक अपराधियों के बीच सुशासन का खौंफ पैदा करने में बहुत हद तक सफल रहे थे। ईओडब्ल्यू की कमान तब आईजी प्रवीण वशिष्ठ के पास थी।