घोर नक्सल इलाके में बना सबसे बड़ा बोरीबांध, पानी जमा होते झूमे ग्रामीण

झारखंड सरोकार
Spread the love

खूंटी। जिले के घोर नक्‍सल इलाके में बहने वाले गंगा नाला पर सबसे बड़ा बोरीबांध 21 जनवरी को बना। इसमें पानी जमा होते ग्रामीण झूम उठे। जनशक्ति से जल शक्ति अभियान के तहत जिले में बोरी बांधों का निर्माण किया जा रहा है। इसी क्रम में जिले का सबसे बड़ा बोरीबांध घोर नक्सल प्रभावित इलाके में बसे अड़की प्रखंड के बिरबांकी गांव से होकर बहने वाले गंगा नाला पर बनाया गया। इसकी लंबाई 120 फीट है। बांध के बनने के बाद 200 फीट चौड़ी और लगभग एक हजार फीट लंबे अर्थात एक लाख वर्ग फीट में पानी लबालब भर गया है। पानी देखने के बाद ग्रामीण काफी काफी उत्साहित हैं।

जिला प्रशासन, सेवा वेलफेयर सोसाइटी और क्षेत्र की ग्राम सभाओं द्वारा एक साथ हाथ मिलाकर चलाये जा रहे जलशक्ति अभियान के तहत लगातार बोरीबांध बनाये जा रहे हैं। आजादी के बाद यह पहला मौका है जब इस गांव के गंगा नाला पर बांध बना। वैसे तो बरसात और जाड़े के दिनों में यहां पानी की कमी नहीं होती है, लेकिन गर्मी के दिनों में लोगों को पानी के लिए काफी परेशानियां उठानी पड़ती है।

हाट में आने वाले लोगों को मिलेगी राहत

जिले का बड़ा साप्ताहिक हाट बिरबांकी में लगता है। यहां खरसावां, पश्चिमी सिंहभूम खूंटी और रांची जिले के गांवों के लोग व्यापार करने और अपनी जरूरत के सामानों की खरीदारी करने पहुंचते हैं। हाट बाजार में आए दुकानदार और ग्रामीणों को गर्मी के दिनों में पानी के लिए काफी परेशानी उठानी पड़ती थी।

बिरबांकी के मुखिया जवरा पाहन कहते हैं कि इस बोरीबांध के बनने से हाट बाजार में आने वाले लोगों को पानी के लिए परेशानी नहीं उठानी होगी। बांध में भरे पानी को देख अब किसान खाली पड़े खेतों में फसल लगाने की बात सोचने लगे हैं।

पहले समझ नहीं पाये थे ग्रामीण

आखिर बोरियों से पानी कैसे रूकेगा, क्या इतने बड़े गंगा नाला को बारियों से बांधा जा सकता है। इसके अलावा कईसवाल गांव के लोगों के मन में थी। गांव के लोगों को बोरीबांध कन्सेप्ट समझ में नहीं आ रहा था। हालांकि जब सेवा वेलफेयर सोसाईटी के लोग और इस कार्य में भरपूर सहयोग कर रहे नईमुद्दीन खां ने बोरीबांध ग्रामीणों के साथ मिलकर बनाना शुरू किया, तब गांव के लोगों का उत्साह धीरे-धीरे बढ़ता गया। गंगा नाला में बह रही पतली धार जब बांध का शक्ल लेने लगी, तो लोगों को उत्साह बढ़ता चला गया। लोगों ने पूरी शक्ति लगा दी और पांच घंटे में बोरीबांध कनकर तैयार हो गया।  गांव के लोग इसे जलक्रांति मान रहे हैं। अब इनके द्वारा अन्य स्थानों पर भी बोरीबांध बनाने का मन बनाया जा रहा है।

मदईत परंपरा से बना बांध

गांव के लुकिन मुंडा ने कहा कि पहले पूर्वज मदईत परंपरा से पत्थरों का बांध बनाया करते थे। यह बोरीबांध उसका ही बदला हुआ स्वरूप है। उन्होंने कहा कि मदईत परंपरा में ईली-मंडी (हंड़िया-भात) की परंपरा है। ईली के साथ देसी मुर्गा की व्यवस्था गांव के लोगों द्वारा की गई। बोरीबांध के साथ गांव के लोगों की सामूहिक पिकनिक भी संपन्न हो गयी। इस आवश्यक वस्तुओं की दुकानों को छोड़ गांव के सारे लोग अपनी दुकानें बंद कर बोरीबांध में मदईत कर रहे थे।

बूढ़े और नन्हे हाथों में भी निभाई सहभागिता

पूरे बदन में झुर्रियां थी, लेकिन कंकपाते हाथो से बुजुर्ग बोरीबांध के किनारे पत्थरों को सजा रहे थे, जिससे बांध की मजबूती बढ़ गई। वहीं छोटे बच्चे भी नन्हें हाथों से मिट्टी का एक ढेला बांध में फेंक रहे थे। छोटे, बड़े, बुढ़े सारे लोगों ने जल संरक्षण में अपना योगदान दिया। गांव के हालु मुंडा ने कहा कि सबसे बड़ा फायदा होगा कि भूगर्भिय जलस्तर बढ़ेगा। गांव के कुंआ, तालाब और चापानल नहीं सुखेंगे। मवेशियों के पीने का पानी, गांव के लोगों का नहाने धोने के लिए अब पानी समस्या नहीं बनेगा।

इन लोगों ने किया श्रमदान

प्रदेश कांग्रेस सहकारिता कमेटी के महासचिव नईमुद्दीन खां, मुखिया जवरा पाहन, उपप्रमुख सिरका सोय, सागर मुंडा, रड़सी मुंडा, धीरजु मुंडा, बैजनाथ मुंडा, सोमा मुंडा, हालु मुंडा, सुशील सोय, उपमुखिया धीरजु मुंडा, हरसिंह मुंडा, निबाय मुंडा, सुशारन हंस, लेम्सा मुंडा, लोधा मुंडा समेत सभी ग्रामसभा सदस्यो ने बोरीबांध निर्माण में अपना योगदान दिया।