उत्तर प्रदेश। इलाहाबाद हाईकोर्ट ने अनुकंपा पर दी आश्रितों को दी जाने वाली नौकरी के मामले में महत्वपूर्ण फैसले दिया है। कोर्ट ने कहा है कि पुत्र के समान पुत्री भी परिवार की सदस्य है। चाहे वह अविवाहित हो या विवाहित। मृतक के आश्रितों को अनुकंपा पर दी जाने वाली नौकरी में बेटी को भी नियुक्ति का अधिकार है।
हाईकोर्ट ने मृतक आश्रित सेवा नियमावली में अविवाहित शब्द को लिंग के आधार पर भेदभाव करने वाला मानते हुए असंवैधानिक घोषित कर दिया है। कोर्ट ने कहा कि पुत्री के आधार पर आश्रित की नियुक्ति पर विचार किया जायेगा। कोर्ट ने कहा इसके लिए नियम संशोधित करने की आवश्यकता नहीं है। जस्टिस जेजे मुनीर की एकल पीठ ने यह आदेश दिया।
हाईकोर्ट ने बीएसए प्रयागराज के याची के विवाहित होने के आधार पर मृतक आश्रित के रूप मे नियुक्ति देने से इनकार करने के आदेश को रद्द कर दिया। कोर्ट ने बीएसए प्रयागराज को दो माह में निर्णय लेने का निर्देश दिया है। कोर्ट ने मंजुल श्रीवास्तव की याचिका स्वीकार करते हुए यह आदेश दिया। दरअसल, याची की मां प्राथमिक विद्यालय चाका में प्रधानाध्यापिका थीं, जिनकी हार्ट अटैक से मौत हो गई थी। पिता बेरोजगार हैं। परिवार में आर्थिक संकट है, जिसको देखते हुए आश्रित कोटे में याची ने नियुक्ति की मांग की है।
याची मंजुल श्रीवास्तव की याचिका को स्वीकार करते हुए न्यायमूर्ति जेजे मुनीर ने यह आदेश दिया है। याचिका पर अधिवक्ता घनश्याम मौर्य ने बहस की। एडवोकेट घनश्याम मौर्य का कहना था कि विमला श्रीवास्तव केस में कोर्ट ने नियमावली में अविवाहित शब्द को असंवैधानिक करार देते हुए रद्द कर दिया है। इसलिए विवाहित पुत्री को आश्रित कोटे में नियुक्ति पाने का अधिकार है। उन्होंने कहा कि बीएसए ने कोर्ट के फैसले के विपरीत आदेश दिया है, जो अवैध है।