मेघा सिंह
हर कंपनी किसी उत्पाद बनाने में प्राकृतिक संसाधनों का उपयोग करती है। प्रदूषण को बढ़ावा देती है। उत्पाद बेचकर आय करती है। हालांकि खराब प्रदूषण का नुकसान समाज में रहने वालों को उठाना पड़ता है, क्योंकि इन कंपनियों की उत्पादक गतिविधियों के कारण ही उन्हें प्रदूषित हवा और पानी का उपयोग करना पड़ता है। इन प्रभावित लोगों को कंपनियों की तरफ से किसी भी तरह का सीधे तौर पर मुआवजा नहीं दिया जाता है। इस कारण भारत सहित पूरे विश्व में कंपनियों के लिए यह अनिवार्य बना दिया गया कि वे अपनी आमदनी का कुछ भाग उन लोगों के कल्याण पर भी खर्च करें, जिनके कारण उन्हें असुविधा हुई है। इसे कॉर्पोरेट सोशल रेस्पोंसिबिलिटी (CSR) कहा जाता है।
दायरे में कौन कौन आता है
भारत में कॉर्पोरेट सोशल रेस्पोंसिबिलिटी (CSR) का नियम 1 अप्रैल, 2014 से लागू है। इसके अनुसार जिन कंपनियां की सालाना नेटवर्थ 500 करोड़ रुपये या सालाना आय 1000 करोड़ या सालाना लाभ 5 करोड़ होता है, उनको CSR पर खर्च करना जरूरी होता है। यह खर्च तीन साल के औसत लाभ का कम से कम 2% होना चाहिए। CSR नियम और प्रावधान केवल भारतीय कंपनियों पर ही लागू नहीं होते हैं, बल्कि यह भारत में विदेशी कंपनी की शाखा और विदेशी कंपनी के परियोजना कार्यालय के लिए भी लागू होते हैं।
CSR में ये गतिविधियां की जा सकती हैं
CSR के अंतर्गत कंपनियों को बाध्य रूप से उन गतिविधियों में हिस्सा लेना पड़ता है, जो समाज के पिछड़े या वंचित वर्ग के लोगों के कल्याण के लिए जरूरी हो।
- भूख, गरीबी और कुपोषण को खत्म करना
- शिक्षा को बढ़ावा देना
- मातृ एवं शिशु स्वास्थ्य सुधारना
- पर्यावरणीय स्थिरता सुनिश्चित करना
- सशस्त्र बलों के लाभ के लिए उपाय
- खेल गतिविधियों को बढ़ावा देना
- राष्ट्रीय विरासत का संरक्षण
- प्रधान मंत्री की राष्ट्रीय राहत में योगदान
- स्लम क्षेत्र का विकास करना
- स्कूलों में शौचालय का निर्माण
कंपनियां कितना खर्च कर रहीं हैं
कंपनी मामलों के मंत्रालय के आंकड़ों के अनुसार CSR गतिविधियों पर 9822 करोड़ रुपये खर्च किये गए थे। भारत की कंपनियों द्वारा समाज के निचले तबके के कल्याण को बढ़ावा देना कंपनियों और सरकार दोनों के लिए दोनों हाथों में लड्डू होने जैसा है। CSR में खर्च होने के जहां एक तरफ लोगों के कल्याण के लिए होने वाले खर्च से सरकार को कुछ राहत मिलती है, वहीँ दूसरी तरफ लोगों की नजर में कंपनियों की इमेज भी एक अच्छी कंपनी की बनती है। इससे कंपनी को अपने उत्पादों को बेचने में आसानी होती है।
(लेखक एलएलबी कर चुकी है और सीएस फाइनल की छात्रा है)