झारखंड के साहित्यकार रणेंद्र को मिला श्रीलाल शुक्ल स्मृति इफको साहित्य सम्मान

झारखंड
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रांची । झारखंड के साहित्‍‍‍यकार रणेंद्र को वर्ष 2020 का श्रीलाल शुक्ल स्मृति इफको साहित्य सम्मान म‍िला है। उनके नाम की घोषणा सुप्रसिद्ध आलोचक डॉ नित्यानंद तिवारी की अध्यक्षता वाली चयन समिति ने की। समिति में वरिष्ठ कथाकार श्रीमती चंद्रकांता, कवि पत्रकार विष्णु नागर, लेखक व प्रोफेसर रवि भूषण, वरिष्ठ आलोचक मुरली मनोहर प्रसाद सिंह और वरिष्ठ कवि डॉ दिनेश कुमार शुक्ला शामिल थे। इफको के प्रबंध निदेशक डॉ उदय शंकर अवस्थी ने ट्वीट कर रणेंद्र को बधाई दी है। सम्मान के लिए चुने जाने पर आदिवासी जीवन पर लिखने वाले कथाकार रणेंद्र ने चयन समिति के प्रति आभार जताया है।

रणेंद्र का जन्म 10 फरवरी 1960 को बिहार के नालंदा जिले के एक निम्न मध्यवर्गीय परिवार में हुआ। उन्होंने आदिवासी जीवन को अपनी लेखनी का मुख्य विषय बनाया है। अपनी रचनाओं में वह वैश्वीकरण एवं विकास के दौर में आदिवासी समूह समुदायों के अंदर हो रहे आर्थिक और सांस्कृतिक परिवर्तनों की बारीकी से पड़ताल की है। अपने पहले ही उपन्यास ‘ग्लोबल गांव के देवता’ से साहित्य जगत में चर्चा में आए। असुर के जीवन के माध्यम से इस उपन्यास में आदिवासी समाज को देखने का एक नया दृष्टिकोण प्रस्तुत किया है। दूसरा उपन्यास ‘गायब होता देश’ है, में मुंडा आदिवासियों के जीवन संघर्ष का चित्रण किया है।

अपनी इन रचनाओं में रणेंद्र ने अशिक्षा, गरीबी, बेरोजगारी, विस्थापन, घुसपैठ, स्त्री के शोषण, धार्मिक अस्मिता जैसे प्रश्नों को संवेदनशीलता के साथ उठाया है। उन्होंने आदिवासी जीवन को उनकी संपूर्णता में चित्रित किया है। आदिवासियों की सामाजिक, सांस्कृतिक, धार्मिक, विकास, धार्मिक जीवन की विशेषताओं के साथ-साथ उनकी विसंगतियों को भी हो सामने लाते हैं। कहानी और उपन्यास के साथ-साथ उन्होंने कविताएं भी लिखी है। उनकी रचनाएं प्रतिष्ठित पत्र-पत्रिकाओं में लगातार प्रकाशित होती रही है।

अब तक उनकी दो कहानी संग्रह ‘रात बाकी और अन्य कहानियां’ एवं ‘छप्पन छुरी बहत्तर पेंच’ नाम से प्रकाशित हो चुकी है। उनकी कविताओं का संकलन ‘थोड़ा सा स्त्री होना चाहता हूं’ नाम से प्रकाशित है। रणेंद्र ने 1999 से 2005 के दौरान ‘कांची’ नामक त्रैमासिक साहित्यिक पत्रिका का संपादन भी किया है। शास्त्रीय संगीत के गानों पर आधारित उनका उपन्यास ‘गूंगी रुलाई का काेरस’ जल्द प्रकाशित होने वाला है।

मूर्धन्य कथा शिल्पी श्रीलाल शुक्ल की स्मृति में वर्ष 2011 में शुरू किया गया यह सम्मान प्रत्येक वर्ष ऐसे हिंदी लेखकों को दिया जाता है, जिनकी रचनाएं मुख्यत: ग्रामीण व कृषि जीवन और हाशिए के लोग, विस्थापन आदि से जुड़ी समस्य, आकांक्षा एवं संघर्षों का चित्रण करती है। यह सम्मान विद्यासागर नौटियाल, शेखर जोशी, संजीव, मिथिलेश्वर, अष्टभुजा शुक्ल, कमलाकांत त्रिपाठी, रामदेव धुरंधर, रामधारी सिंह ‘दिवाकर’ और महेश कटारे को दिया जा चुका है।

सम्मानित साहित्यकार को एक प्रतीक चिन्ह, प्रशस्ति पत्र और 11 लाख रुपये की राशि का चेक प्रदान किया जाता है। रणेंद्र को यह सम्मान 31 जनवरी 2021 को नई दिल्ली में एक समारोह में प्रदान किया जाएगा। जानकारी हो कि रणेंद्र झारखंड कैडर के सेवानिवृत्त आइएएस हैं।