फेलोशिप की घोषणा के साथ संवाद-2022 का समापन

झारखंड
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जमशेदपुर। संवाद फेलोशिप की घोषणा के साथ टाटा स्टील फाउंडेशन द्वारा समर्थित जनजातीय सम्मेलन संवाद 2022 का समापन 19 नवंबर को हो गया।

संवाद फेलोशिप की शुरुआत वर्ष 2017 में की गई थी। फेलोशिप उन पहलों/विचारों का समर्थन करने की कल्पना करता है, जो आदिवासी संस्कृतियों से कम ज्ञात जनजातीय अभ्यासों के संरक्षण के लिए संरेखित हैं। जो कमजोर हैं और किसी बड़े संरक्षण प्रयास का हिस्सा नहीं हैं। इस प्रकार उनके विलुप्त हो जाने का खतरा है।

इस वर्ष आयोजकों को देश के 22 राज्यों और 3 केंद्र शासित प्रदेशों से 68 जनजातियों से 176 आवेदन प्राप्त हुए। इन आवेदनों की जांच की गई। आंतरिक रूप से मूल्यांकन किया गया। फिर 28 आवेदन हमारे जूरी सदस्यों को भेजे गए, जिन्होंने इसका मूल्यांकन किया। अपने स्कोर के आधार पर सर्वश्रेष्ठ 18 ने जूरी के समक्ष अपने प्रोजेक्ट प्रस्तुत किये।

दो दिनों के विचार विमर्श के बाद जूरी ने आठ आवेदकों का चयन किया। जूरी के कुछ सम्मानित सदस्यों में डॉ सोनम वांगचुक, संस्थापक, हिमालयन कल्चरल हेरिटेज फाउंडेशन, डॉ मीनाक्षी मुंडा, सहायक प्रोफेसर, डॉ. श्यामा प्रसाद मुखर्जी विश्वविद्यालय, रांची आदि शामिल थे।

संवाद के अंतिम दिन गोपाल मैदान में सिक्किम, नागालैंड, पश्चिम बंगाल और झारखंड के जनजातीय समुदायों ने सांस्कृतिक कार्यक्रमों की प्रस्तुति दी।

विजेताओं का विवरण

1. सुश्री चांगम वांगसा। चांगम अरुणाचल प्रदेश की वांचो जनजाति से हैं। वास्तुकला में स्नातक, वह “वांचो जनजाति के संगीत रूप त्साई (लैलुंग, माई और शोन) के दस्तावेजीकरण और पुनरुद्धार पर काम करेंगी।” उनका मानना ​​है कि इस संगीत में इतिहास, सांस्कृतिक जड़ें, परंपरा, प्रकृति, अवसर निहित है और इसे संरक्षित करने की जरूरत है।

2. किरत ब्रह्मा असम के बोडो जनजाति से हैं। उन्होंने एन.आई.डी. अहमदाबाद से एनिमेशन और फिल्म डिजाइन में डिप्लोमा किया है। फेलोशिप के माध्यम से, वह समुदाय के बच्चों को उनकी लोककथाओं, भाषाओं के बारे में शिक्षित करने और आदिवासी भविष्य और संस्कृति को सुरक्षित करने के लिए एक टूल के रूप में एनीमेशन का उपयोग करना चाहते हैं।  वह “एनिमेटेड बोरो ट्रेडिशनल फोक राइम्स बनाने के लिए” काम करेंगे।

 3. सुश्री रशीदा कौसर लद्दाख की भोटो जनजाति से हैं। उन्होंने बी.एससी की पढ़ाई की है और पारंपरिक बाल्टी फ़ूड को पुनर्जीवित करना चाहती हैं और स्वादिष्ट भोजन की पेशकश कर इसे क्षेत्र में आने वाले पर्यटकों के लिए आकर्षण भी बनाना चाहती हैं।  उनके शोध का प्रस्तावित क्षेत्र “लद्दाख में पारंपरिक जनजातीय रसोई (थाब-त्संग/ब्यान-सा) और जनजातीय खाद्य पदार्थों का अध्ययन” है।

4. आरिफ अली वर्तमान में 12 वीं कक्षा में आर्ट्स का अध्ययन कर रहे हैं और उनके शोध का प्रस्तावित क्षेत्र “गुर्जर महिलाएं और उनकी शिल्प” है।  इस फेलोशिप के जरिए आरिफ वन गुर्जर समुदाय के पारंपरिक हस्तशिल्प के बारे में ज्ञान का प्रसार करना चाहते हैं और इस प्रकार अपने शिल्प को संरक्षित करना चाहते हैं।

5. सुश्री इनाकली असुमी असम की सुमी नागा जनजाति से हैं। वह सुमी की समृद्ध सांस्कृतिक पहचान को संरक्षित करके भारत की अनूठी सांस्कृतिक विविधता में योगदान देना चाहती हैं और वह “लुप्त हो रहे सुमी लोकगीतों का दस्तावेजीकरण” करेंगी।

6. सुश्री सारा बतूल लद्दाख की बाल्टी जनजाति का प्रतिनिधित्व करती हैं। उनका मानना है कि सांस्कृतिक संपर्क और अंतर-सांस्कृतिक संपर्क ने बाल्टी संस्कृति को कई गुना बदल दिया है और जनजाति की सदियों पुरानी समृद्ध और रंग बिरंगी संस्कृति और परंपरा विलुप्त होने के कगार पर है।  इस प्रकार इस स्वदेशी जनजाति की संस्कृति और परंपरा का संरक्षण करना समय की मांग है। वह “लद्दाख में बाल्टी जनजाति की कला, संस्कृति, परंपरा और भाषा के संरक्षण” पर काम करेंगी।

7. सुश्री सुमन पूर्ति झारखंड की हो जनजाति से हैं। उनके शोध का प्रस्तावित क्षेत्र “हो जनजाति के अनुष्ठानों के मंत्रों  का दार्शनिक विश्लेषण और दस्तावेजीकरण है। 8. ओडिशा के बंजारा समुदाय के भोलेश्वर “ओडिशा के कालाहांडी में बंजारा समुदाय के लोक गीतों और लोक नृत्य के संरक्षण और दस्तावेजीकरण” पर काम करेंगे।